तो निकाय प्रमुख चुनाव में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट फैला रहे थे भ्रम।
तो निकाय प्रमुख चुनाव में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट फैला रहे थे भ्रम। अभी भी गहलोत सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं।
राजस्थान में कांग्रेस सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री माने जाने वाले नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने कहा है कि बाहर से लोगों को निकाय प्रमुख पदों पर थोपने के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है। सरकार ने 16 अक्टूबर को जो अधिसूचना जारी की है, उस पर अभी भी कायम है। धारीवाल के बयान से सवाल उठता है कि क्या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट अब तक भ्रम फैला रहे थे? असल में पायलट ने निकाय प्रमुख के चुनाव में हाईब्रिड फैसले का विरोध किया था। पायलट 16 अक्टूबर के बाद कई बार कहा कि पार्षद चुने और बाहर के व्यक्ति को निकाय प्रमुख का उम्मीदवार बनाने का फैसला पूरी तरह अलोकतांत्रिक है। पायलट ने यह भी कहा कि सरकार का यह फैसला कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की भावनाओं के विपरीत है। पायलट 19 अक्टूबर से लेकर 24 अक्टूबर तक अपने विरोध पर कायम रहे, लेकिन बीच में न तो सीएम अशोक गहलोत ने और न शांति धारीवाल ने कोई सफाई दी। उल्टे धारीवाल ने सख्त लहजे में कहा कि अब सरकार अपना फैसला नहीं बदलेगी। यानि पार्षद चुने बगैर भी निकाय प्रमुख बना जा सकता है। सवाल यह भी है कि यदि सरकार की मंशा पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख चुनने की थी तो पायलट को बार बार भ्रम फैलाने का मौका क्यों दिया गया? सरकार को पहले दिन ही कह देना चाहिए था कि पार्षद ही मेयर आदि का चुनाव करेंगे। मीडिया में वो ही छपा जो सरकार और पायलट ने कहा।
अभी भी मंशा स्पष्ट नहीं :
25 अक्टूबर को विज्ञप्ति जारी कर सरकार ने हाईब्रिड फैसले पर जो सफाई दी, उससे सरकार की मंशा अभी भी स्पष्ट नहीं हो रही है। अब सरकार ने राजनीतिक दलों को यह अधिकार दिया है कि निकाय प्रमुख की आरक्षित सीट के लिए यदि किसी दल के प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो उस दल की प्रदेश इकाई को यह अधिकार होगा कि वह अपनी पार्टी के किसी आरक्षित वर्ग के नेता को प्रत्याशी बना दे। यानि पार्षद चुने बगैर ही निकाय प्रमुख के लिए दावेदारी कर सकेंगे। सवाल उठता है कि ऐसे में आरक्षित वर्ग के निर्दलीय पार्षद को निकाय प्रमुख बनने का अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है? हालांकि सरकार की सफाई का पायलट ने स्वागत कर दिया है, लेकिन सरकार की मंशा अभी भी स्पष्ट नहीं है। सरकार ने पार्षद चुने बगैर निकाय प्रमुख बनाने का रास्ता निकाल रखा है। अब यह पायलट को स्पष्ट करना है कि सरकार की सफाई के क्या मायने हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 19 अक्टूबर को पायलट के खुले विरोध के बाद इस मुद्दे पर सीएम गहलोत ने अपनी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष से कोई संवाद नहीं किया है। सीएम गहलोत की इस बेरुखी से भी पायलट खासे नाराज बताए जा रहे हैं।
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