आखिर शिवसेना महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार क्यों नहीं बनाती?

आखिर शिवसेना महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार क्यों नहीं बनाती? अब राष्ट्रपति शासन के आसार। 

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8 नवम्बर को भी भाजपा और शिवसेना में सरकार बनाने को लेकर कोई समझौता नहीं हो सका। ऐसे में माना जा रहा है कि अब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। मौजूदा विधानसभा के कार्यकाल का 8 नवम्बर को ही अंतिम दिन रहा। अब जब कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर रहा है तो संवैधानिक दृष्टि से राज्यपाल भगत सिंह कोशिआरी को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी ही पड़ेगी। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने 24 अक्टूबर के बाद से कई बार कहा कि यदि भाजपा ने उनकी शर्त नहीं मानी तो सरकार बनाने के और भी विकल्प हैं। राउत का यह बयान आते ही कांग्रेस ने शिवसेना को समर्थन देने की घोषणा कर दी तथा कांग्रेस के सहयोगी दल एनसीपी से समर्थन लेने के लिए शिवसेना के शेर राजनीतिक के घाघ शरद पवार के दरवाजे पर पहुंच गए। 288 में से 56 विधायक वाली शिवसेना ने 105 विधायक वाली भाजपा को साफ कर दिया कि अब हम उनके भरोसे नहीं है। जब शिवसेना के शेरों ने चौराहे पर खड़े होकर ऐसी दहाड़ मारी तो सवाल उठता है कि साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश क्यों करती है? आखिर शिवसेना को कांग्रेस से समर्थन लेने में झिझक क्यों हैं?
सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की जरुरत है, जबकि शिवसेना के 56, एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायकों के जोड़े 154 होता है। यानि शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे को अपने 26 वर्षीय पुत्र आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का सपना पूरा हो सकता है। लेकिन जानकारों की माने तो आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए शिवसेना के विधायकों में ही मतभेद हैं। यही वजह है कि अब उद्धव ठाकरे के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखना मुश्किल हो रहा है। सात नवम्बर को मुम्बई के जिस रंगशारदा होटल में विधायकों को रखा गया, अब 8 नवम्बर को शिवसेना के विधायकों को इस होटल से निकाल कर अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाया जा रहा है। शिवसेना को लगता है कि भाजपा के साथ सरकार नहीं बनाने पर कई विधायक इधर-उधर भाग जाएंगे। हालांकि अभी भाजपा ने तोडफ़ोड़ की राजनीति शुरू नहीं की है। लेकिन शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी तीनों दलों को अपने विधायकों पर ही भरोसा नहीं है। चूंकि भाजपा की ओर से फिलहाल तोडफ़ोड़ की राजनीति शुरू नहीं की गई है, इसलिए माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में अब राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। राष्ट्रपति शासन के दौरान भी सरकार बनाने की गतिविधियां चल सकती है। देखना होगा कि अब महाराष्ट्र की राजनीति की करवट बैठती है। जहां तक एनसीपी के प्रमुख शरद पवार का सवाल है तो उन्हें राजनीति का घाघ माना जाता है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद भी शरद पवार ने यह कहा कि महाराष्ट्र की जनता ने एनसीपी को विपक्ष में बैठने का निर्णय दिया है। ऐसे में  शिवसेना  के साथ मिलकर सरकार बनाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है।
एस.पी.मित्तल) (08-11-19)
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