महाराष्ट्र में शिवसेना अब बेबस और लाचार।

महाराष्ट्र में शिवसेना अब बेबस और लाचार।
क्या कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के 154 विधायक एकजुट रह पाएंगे?
एनडीए से गठबंधन भी तोड़ा। 

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11 नवम्बर को शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे को एनसीपी के प्रमुख शरद पवार से मिलने के लिए मुम्बई की ताज होटल में जाना पड़ा। हो सकता है कि उद्धव ठाकरे को सोनिया गांधी से मुलाकात करने के लिए दिल्ली में 10 जनपथ भी जाना पड़े। महाराष्ट्र की राजनीति में कल तक जो लाचारी और बेबसी भाजपा के नेताओं की थी वो ही अब शिवसेना और उसके नेताओं की नजर आ रही है। भाजपा से गठबंधन के समय भाजपा के सभी नेताओं को उद्धव ठाकरे से मुलाकात के लिए उनके निवास मातोश्री में ही जाना होता था। यहां तक कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी उद्धव से मातोश्री में ही मुलाकात की। गत पांच वर्षों तक सीएम देवेन्द्र फडऩवीस को भी ढोक लगाने के लिए उद्धव ठाकरे के पास ही जाना होता था। पिछले तीस वर्षों से महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा ही चल रहा था, लेकिन यह पहला अवसर रहा जब शिवसेना के शेरों को अपनी गुफा से बाहर निकल कर आना पड़ा है। जिन उद्धव ठाकरे ने सीएम फडऩवीस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया था वो ही उद्धव ठाकरे अब शरद पवार से मिलने के लिए होटल में जा रहे हैं। उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार कैसे चलाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के 154 विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती है। कांग्रेस के 44 विधायकों में ऐसे कई विधायक हैं जो शिवसेना को समर्थन देने के सख्त खिलाफ हैं। इसी प्रकार शिवसेना के 56 विधायकों में से ऐसे कई विधायक हैं जो भाजपा के साथ गठबंधन तोडऩे के खिलाफ हैं। ऐसे विधायकों का मानना है कि शिवसेना की छवि हिन्दुत्ववादी दल की है जो भाजपा के साथ मेल खाती है। इसी प्रकार एनसीपी के 54 विधायक में से भी अनेक शिवसेना का मुख्यमंत्री मानने को तैयार नहीं है। ऐसे विधायक एनसीपी का मुख्यमंत्री चाहते हैं। यही वजह है कि अब तीनों दलों के 154 विधायकों को एकजुट रखना चुनौती पूर्ण हो गया है। भले ही राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी शिवसेना के उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दें, लेकिन ठाकरे के लिए विधानसभा में बहुमत साबित करना आसान नहीं होगा। 288 विधायकों में से कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के विधायकों की संख्या 154 है, जबकि बहुमत के लिए 145 विधायकों का समर्थन चाहिए। यानि बहुमत के आंकड़े से मात्र 10 विधायक ज्यादा है। गत बार भाजपा ने 122 विधायकों के दम पर अकेले ही बहुमत साबित किया था, तब एनसीपी के विधायकों ने बहिष्कार किया था। मालूम हो कि गत बार भी शिवसेना ने भाजपा को विधानसभा में बहुमत के समय सहयोग नहीं दिया था, हालांकि बाद में शिवसेना सरकार में शामिल हो गई थी।
कांग्रेस की शर्त पर सावंत का इस्तीफा:
कांग्रेस ने शर्त लगाई थी कि समर्थन से पहले शिवसेना एनडीए से गठबंधन तोड़े और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल अपने केबिनेट मंत्री अरविंद सावंत का इस्तीफा करवावे। कांग्रेस की शर्त को स्वीकार करते हुए 11 नवम्बर को सावंत ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इसके साथ एनडीए से भी गठबंधन टूट गया।
एस.पी.मित्तल) (11-11-19)
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