निकाय चुनाव में हाईब्रिड फार्मूला लागू होता तो आज सबसे ज्यादा कांग्रेस को फायदा होता। 

निकाय चुनाव में हाईब्रिड फार्मूला लागू होता तो आज सबसे ज्यादा कांग्रेस को फायदा होता। 

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19 नवम्बर को राजस्थान के 49 शहरी निकायों के चुनाव परिणाम घोषित हो गए, हालांकि कई निकायों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन अनेक निकाय ऐसे हैं, जहां निकाय प्रमुख बनाने की चाबी निर्दलीय पार्षदों के पास है। झुंझुनूं के पिलानी में लगभग सभी वार्डों में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए हैं। कई निकायों में भाजपा का बहुमत किनारे पर है। यदि अशोक गहलोत का हाईब्रिड फार्मूला लागू रहता तो आज सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को होता। इस फार्मूले में प्रावधान रखा गया था कि गैर पार्षद भी निकाय प्रमुख का चुनाव लड़ सकता है। यानि निकाय प्रमुख बनने के लिए पार्षद का चुनाव जीतना अनिवार्य नहीं था। यानि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में किसी प्रभावशाली या धनाढ्य व्यक्ति को कांग्रेस का उम्मीदवार घोष्तिा किया जा सकता था। चूंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए इस फार्मूले का फायदा सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही होता। इससे उन निकायों में भी कांग्रेस का बोर्ड बनता जहां बहुमत नहीं मिला है, क्योंकि प्रभावशाली और धनाढ्य व्यक्ति जोड़तोड़ कर कांग्रेस का बोर्ड बनवा देता। लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के खुले विरोध के चलते गहलोत को हाईब्रिड फार्मूला वापस लेना पड़ा था। अब निर्वाचित पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख का चुनाव करना होगा। भरतपुर नगर निगम के 65 वार्डों से 21 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं, जबकि 18 वार्डों में कांग्रेस के वहीं 26 वार्डों में निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं। चूंकि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के पार्षदों की संख्या ज्यादा है, इसलिए भाजपा का बोर्ड बनने की उम्मीद है। यदि हाईब्रिड वाला फैसला लागू होता तो प्रभावशाली उम्मीदवार निर्दलीयों और कांग्रेस पार्षद की मदद से कांग्रेस का बोर्ड बनवा देता। असल में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान के राजनीतिक हालातों को देखते हुए हाईब्रिड फार्मूले की घोषणा की थी। सरकार को पता था कि शहरी क्षेत्रों में राष्ट्रवाद का मुद्दा जोरों पर है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का असर भी मदाताओं पर है। ऐसे में जीत के लिए कांग्रेस को राजनीति करनी ही पड़ेगी। पांच माह पहले हुए लोकसभा के चुनाव में भी कांग्रेस को सभी 25 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में निकाय चुनाव कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण थे। लेकिन जब सरकार ने गैर पार्षद को निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे का निर्णय लिया तो सबसे पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने विरोध किया। पायलट के विरोध के बाद यह मामला कांग्रेस आला कमान तक पहुंचा। चूंकि पायलट अपनी ही सरकार के फैसले का सार्वजनिक तौर पर विरोध कर चुके थे, इसलिए हाईब्रिड फार्मूले को वापस लेना पड़ा। चूंकि अब पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख का चुनाव होगा, इसलिए भाजपा भी कोई कसर नहीं छोड़ेगी। जहां भाजपा को बहुमत नहीं मिला है, वहां भी बोर्ड बनाने की कोशिश की जाएगी।
एस.पी.मित्तल) (19-11-19)
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