अब कांग्रेस को ही शरद पवार पर भरोसा नहीं।
अब कांग्रेस को ही शरद पवार पर भरोसा नहीं।
अशोक गहलोत से लेकर अहमद पटेल तक से सोनिया गांधी नाराज।
तो भाजपा के लिए जासूसी कर रहे थे अजीत पवार।
23 नवम्बर को महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडऩवीस के सीएम और एनसीपी के अजीत पवार के डिप्टी सीएम की शपथ लेने के बाद जब कांग्रेस को ही एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार पर भरोसा नहीं है। यही वजह रही कि कांग्रेस ने एनसीपी और शिवसेना के साथ होने वाली संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस का ऐनमौके पर बहिष्कार कर दिया। यानि अब कांग्रेस शरद पवार से कोई संबंध नहीं रखना चाहती है। अपने भतीजे अजीत पवार की बगावत पर शरद पवार अब कुछ भी सफाई दें, लेकिन कांग्रेस का मानना है कि पवार ने विश्वास घात किया है। कल तो जो कांग्रेस महाराष्ट्र में सरकार बनाने के सपने देख रही थी आज उसी कांग्रेस को लगता है कि शरद पवार राजनीति के सबसे बुरे नेता हैं। कांग्रेस के अनेक नेताओं का कहना है कि अजीत पवार ने अपने चाचा शरद पवार को बता कर ही भाजपा का समर्थन किया है। शरद पवार अब भले ही अपने भतीजे की आलोचना करें, लेकिन अंदर से चाचा-भतीजे मिले हुए हैं। कांग्रेस के अनेक नेता अब उन कांग्रेस नेताओं को कोस रहे हैं जिन्होंने सरकार बनाने को लेकर शरद पवार पर भरोसा किया। जबकि शरद पवार की फितरत को सब जानते हैं। सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताते हुए शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई थी। 2014 में अल्पमत वाली देवेन्द्र फडऩवीस की सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने में सहयोग किया। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ब्राजील यात्रा को सरल बनाने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल को दोपहर को ही सरकार नहीं बनाने वाला पत्र दे दिया। जब महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रयास हो रहे थे, तब 20 नवम्बर को शरद पवार ने अकेले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह से मुलाकात की। शरद पवार को किसानों की इतनी ही चिंता थी तो अपने साथ कांग्रेस और शिवसेना के प्रतिनिधियों को भी ले जाना चाहिए था। जाहिर है कि शरद पवार अंदर ही अंदर दूसरी खिचड़ी पका रहे थे। देखा जाए तो शरद पवार ने कांग्रेस को पूरी तरह एक्सपोज कर दिया। पवार ने यह दर्शा दिया कि कांग्रेस सत्ता के लालच में शिवसेना जैसी हिन्दुत्ववादी पार्टी के साथ भी गठजोड़ कर सकती है। पवार ने कांग्रेस को एक्सपोज करने के बाद सरकार का लाभ भी नहीं लेने दिया। जहां तक शिवसेना का सवाल है तो राजनीतिक दृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना को ही हुआ है। सवाल यह भी है कि जब अजीत पवार एनसीपी के विधायकों को तोड़ रहे थे, तब शरद पवार को भनक क्यों नहीं लगी? डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के बाद अजीत पवार ने कहा कि मैंने अपने रुख के बारे में दस दिन पहले ही शरद पवार को बताया दिया था।
सोनिया गांधी नाराज:
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी खासी नाराज हैं। शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की जिम्मेदारी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल, प्रभारी मल्लिकार्जुन खडग़े, महासचिव वेणु गोपाल आदि को दी गई थी। अशोक गहलोत की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी इसका अंदाजा महाराष्ट्र के 44 कांग्रेस विधायकों का जयपुर में पांच दिनों तक प्रवास से लगाया जा सकता है। इन विधायकों को गहलोत की पहल पर ही जयपुर लाया गया। जिस पांच सितारा सुविधायुक्त रिसोर्ट में कांग्रेसी विधायकों को ठहराया गया, वहां गहलोत ने जाकर विधायकों से मुलाकात की। 22 नवम्बर को भी गहलोत दिल्ली मेंही थे। गहलोत कांग्रेस के साथ एनसीपी और शिवसेना के नेताओंके भी सम्पर्क में रहे। देश के सबसे बड़े भूभाग वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के बाद भी अशोक गहलोत को एनसीपी में फूट की जानकारी नहीं हुई। अहमद पटेल को तो राजनीति का घाघ खिलाड़ी माना जाता है, लेकिन पटेल को जानकारी नहीं हो सकती। अशोक गहलोत अहमद पटेल जैसे नेता सरकार में हिस्सेदारी की कवायद करते रहे और उधर अजीत पवार ने बगावत कर भाजपा की सरकार बनवा दी। सूत्रोंके अनुसार सोनिया गांधी इस बात से नाराज है कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बगावत की भनक तक नहीं लगी। श्रीमती गांधी ने पूरे घटनाक्रम पर रिपोर्ट तलब की है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस के बड़े नेताओं को फिलहाल शरद पवार और शिवसेना से दूरी बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।
तो भाजपा के जासूस थे अजीत पवार:
डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के बाद अजीत पवार ने कहा कि उन्होंने अपने रुख से शरद पवार को दस दिन पहले ही अवगत करवा दिया था। इस बयान से साफ जाहिर होता है कि अजीत पवार भाजपा के लिए जासूसी कर रहे थे। अजीत पवार 22 नवम्बर को हुई कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना की संयुक्त बैठक में भी उपस्थित थे। अजीत इस बैठक में रात 8 बजे तक देखे गए। इसी बैठक में फैसला हुआ कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनेगी। तीनों दलों की ओरसे 23 नवम्बर को सरकार बनाने का दावा पेश किया जाता, इससे पहले ही रात को भाजपा की सरकार बनाने के प्रयास शुरू हो गए। यदि अजीत पवार नहीं होते तो भाजपा को तीनों दलों की अंदर की बातों की जानकारी नहीं होती। कांग्रेस के दिग्गज नेता अजीत की जासूसी को भी नहीं भांप पाए।
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