इसलिए जरूरत होती है सत्ताधारी दल को अपने राष्ट्रपति और राज्यपाल की।

इसलिए जरूरत होती है सत्ताधारी दल को अपने राष्ट्रपति और राज्यपाल की। महाराष्ट्र में राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने कांग्रेस और शिवसेना के मंसूबों पर पानी फेरा। 

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राजनीति में रुचि रखने वाले पाठकों ने 22 नवम्बर की देर रात तक टीवी देखकर यही अंदाजा लगाया कि अगले दो-तीन दिन में महाराष्ट्र में कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार बन जाएगी, लेकिन 23 नवम्बर को जब ऐसे पाठक दर्शक सुबह जागे तो न्यूज चैनलों पर महाराष्ट्र में भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस के मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजीत पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की खबरें आ रही थीं। कई बार यह सवाल पूछा जाता है कि आखिर केन्द्र में सत्तारूढ़ दल को अपने राष्ट्रपति और राज्यपाल की जरूरत क्यों होती हैं? इस सवाल का जवाब महाराष्ट्र का ताजा राजनीतिक घटनाक्रम दे सकता है। सब जानते हैं कि 23 नवम्बर को दिल्ली में देशभर के राज्यपालों का सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए अधिकांश राज्यपाल 22 नवम्बर को ही दिल्ली पहुंच गए। लेकिन महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 22 नवम्बर को ही दिल्ली के सम्मेलन में भाग लेने से असमर्थता प्रकट कर दी। तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि 23 नवम्बर को सुबह आठ बजे कोश्यारी मुम्बई में देवेन्द्र फडऩवीस को भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलवाएंगे। लेकिन पूरे देश ने देखा कि राज्यपाल ने बगैर ना नुकर किए राजभवन में फडऩवीस और पवार को शपथ दिलवा दी। यदि भगत सिंह कोश्यारी केन्द्र की भाजपा सरकार के भरोसे के नहीं होते तो क्या ऐसा संभव था? जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन की सरकार की कवायद चल रही थी, तब राज्यपाल की ओर से साफ कहा गया कि वे समर्थन देने वाले विधायकों की परेड भी करवा सकते हैं। तीनों दलोंके नेताओं को निर्देश दिए कि समर्थन वाले पत्र पर विधायक के मूल हस्ताक्षर होने चाहिए तथा मोबाइल नम्बर और नाम साफ अक्षरों में लिखा होना चाहिए, साथ ही आधार कार्ड की प्रति भी लगी होनी चाहिए। लेकिन 23 नवम्बर की सुबह जब फडऩवीस को शपथ दिलवाई गई तो ऐसे सभी दिशा निर्देश धरे रह गए। एनसीपी के नेता नवाब मलिक का कहना है कि विधायकों की जो सूची बैठक की उपस्थिति के लिए तैयार की गई थी उसे ही राज्यपाल ने भाजपा सरकार को समर्थन देने वाला पत्र मान लिया। चूंकि हमारे संघीय ढांचे में राज्यपाल को असीमित अधिकार है, इसलिए राज्यपाल के विवेक को चुनौती नहीं दी जा सकती है। चूंकि फडऩवीस ने भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, इसलिए कोश्यारी ने वो ही किया जो भाजपा के लिए फायदेमंद रहा। सब जानते हैं कि 22 नवम्बर की आधी रात तक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था, लेकिन 23 नवम्बर की सुबह आठ बजे फडऩवीस के शपथ लेने से पहले राष्ट्रपति शासन भी हट गया। यानि राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद ने 23 नवम्बर की तड़के ही राष्ट्रपति शासन समाप्त करने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किए होंगे। राष्ट्रपति शासन को समाप्त करने की भी एक प्रक्रिया है, जो केन्द्रीय गृहमंत्रालय से होकर गुजरती है। लेकिन यह सारी प्रक्रिया चार पांच घंटे में पूरी कर ली गई। ऐसे में यदि राष्ट्रपति और राज्यपाल केन्द्र की भाजपा सरकार के अनुरूप नहीं होते तो ऐसा संभव नहीं होता। यह भी सब जानते हैं कि एक सप्ताह पहले भी राज्यपाल की सिफारिश पर महाराष्ट्र में हाथों हाथ राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस समय तो प्रधानमंत्री को ब्राजील के दौरे पर भी जाना था, लेकिन फटाफट मंत्रिमंडल  की बैठक कर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी गई। राष्ट्रपति और राज्यपाल का इस्तेमाल भाजपा से ज्यादा कांग्रेस ने किया है। कांग्रेस ने अपने 60 वर्ष के शासन में गैर कांग्रेसी सरकारों के मुख्यमंत्रियों को ऐसे हटाया जैसे किसी चतुर्थ श्रेणी के अनुपस्थित कर्मचारी को बर्खास्त किया जाता है। असल में अपने एजेंडे के अनुरूप सरकार चलाने के लिए सत्ताधारी दल को अपना राष्ट्रपति और राज्यपाल चाहिए ही। महाराष्ट्र के घटनाक्रम से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल जगदीप धनकड़ की ताकत का अंदाजा लगा लेना चाहिए। जब महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी ताकतवर पार्टी हाथ मसलते रह गई, तब तृणमूल कांग्रेस की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है। बंगाल में तो ममता को कांग्रेस का समर्थन भी नहीं है।
एस.पी.मित्तल) (23-11-19)
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