परीक्षा पे चर्चा, प्रधानमंत्री मोदी की एक सकारात्मक पहल।
परीक्षा पे चर्चा, प्रधानमंत्री मोदी की एक सकारात्मक पहल।
लेकिन सच्चाई यह है कि कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढऩे वाले विद्यार्थी ही प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होते हैं। सरकारी संस्थानों में एडमिशन के लिए 95 प्रतिशत अंक भी कम पड़ते हैं।
20 जनवरी को प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी ने परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में देशभर के करोड़ों विद्यार्थियों से सीधा संवाद किया और परीक्षा के समय तनाव मुक्त रहने के टिप्स दिए। इसे प्रधानमंत्री की सकारात्मक पहल ही माना जाएगा, क्योंकि दसवीं और बारहवीं की परीक्षा के समय तनाव तो होता ही है। अभिभावक भी अपने बच्चों के रिजल्ट को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जो विद्यार्थी राजस्थान के कोटा जैसे शहर के कोचिंग सेंटरों में पढ़ते हैं उन्हीं का चयन प्रतियोगी परीक्षाओं में होता है। ऐसे बहुत कम विद्यार्थी होंगे जो अपने घर और स्कूल में पढ़ाई करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा में सफल हों। इंजीनियर, डॉक्टर, सीए आदि बनने के लिए विद्यार्थी कोटा के कोचिंग सेंटरों में दसवीं कक्षा से ही प्रवेश ले लेते हैं। यानि इधर, प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग होती है तो उधर, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं की परीक्षा की पढ़ाई भी कोचिंग सेंटरों के मालिकों का दावा होता है कि जो विद्यार्थी उनके कोचिंग सेंटर में प्रवेश लेगा उसे गारंटी के साथ दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण करवाई जाएगी। चूंकि गारंटी सच निकलती है, इसलिए अभिभावक अपने बच्चों को पढऩे के लिए कोटा जैसे शहरों में भेजते हैं। चिंताजनक बात तो यह है कि ऐसे कोचिंग सेंटरों के मालिक ही उन प्राइवेट स्कूलों का इंतजाम करते हैं जो विद्यार्थियों को सिर्फ वार्षिक परीक्षा दिलवाते हैं। यानि विद्यार्थी कोटा के कोचिंग सेंटर में पढ़ाई करता है, लेकिन बोर्ड की परीक्षा देने के लिए स्कूल जाता है। यानि ऐसे स्कूल डमी के तौर पर काम करते हैं। चूंकि विद्यार्थी दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी करता है, इसलिए मानसिक तनाव कुछ ज्यादा ही होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माने या नहीं, लेकिन इस तनाव की वजह से ही कोचिंग सेंटरों वाले प्रमुख शहरों में विद्यार्थियों के आत्महत्या किए जाने की खबरें आए दिन आती हैं। राजस्थान के कोटा शहर में देशभर के विद्यार्थी कोचिंग सेंटरों में अध्ययन करते हैं। इसलिए आए दिन आत्महत्याओं की खबरें आती है। आत्महत्या से पूर्व अनेक विद्यार्थी पत्र में अपने माता-पिता से क्षमा मांगते है। मार्मिक शब्दों में माता-पिता से कहा जाता है कि वह उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरे हैं, इसलिए आत्महत्या कर रहे हंै। चूंकि विद्यार्थी बोर्ड प्रतियोगी परीक्षा के लिए कोचिंग करता है, इसलिए अभिभावकों को शुल्क भी डबल देना होता है। एक तरफ स्कूल की वर्षभर की फीस तो दूसरी ओर कोचिंग सेंटर की प्रतिमाह की मोटी फीस। ऐसे में अभिभावक भी अपने बच्चे से उम्मीद करता है कि वह हर हाल में सफल हो। प्रधानमंत्री मोदी को यह भी पता होना चाहिए कि प्रतियोगी परीक्षा में जिन विद्यार्थियों के 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक प्राप्त होते हैं उन्हें ही सरकार के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिल पाता है। 95 या 90 प्रतिशत से कम अंक लाने वाले विद्यार्थियों को मजबूरन प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना होता है। डॉक्टर बनने के लिए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में बीस लाख रुपए तक का डोनेशन देना होता है। सवाल दसवीं और बारहवीं परीक्षा उत्तीर्ण करने का नहीं है। देश में ऐसे करोड़ों विद्यार्थी होंगे जिन्होंने 80 प्रतिशत अंक लाकर बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण की है। विद्यार्थियों के सामने बड़ी चुनौती प्रतियोगी परीक्षा की है। जब सरकारी संस्थानों में प्रवेश के लिए 95 प्रतिशत अंक भी कम पड़ते हों, तब युवाओं की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। असल में सरकार को मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में ही आमूल चूल परिवर्तन करने की जरूरत है। जब तब हमारी शिक्षा प्रणाली किताबों पर आधरित रहेगी तब तक परीक्षा के दौरान युवा तनाव में ही रहेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री ने परीक्षा के दौरान तनाव मुक्त रहने को लेकर एक पुस्तक भी लिखी है और इस पुस्तक में प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के टिप्स बनाए गए हैं, लेकिन सच्चाई तो यही है कि जो विद्यार्थी कोटा के कोचिंग सेंटर में एडमिशन लेता है उसे ही प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलती है। कोटा जैसे शहरों के कोचिंग सेंटरों के आए दिन अखबरों में विज्ञापन प्रकाशित होते हैं। इन विज्ञापनों में दावा किया जाता है कि उनके कोचिंग सेंटर में पढऩे वाले इतने विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हुए हैं। एक तरह से कोचिंग सेंटरों के विज्ञापन युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सरकार को ऐसे विज्ञापनों पर भी ध्यान देना चाहिए।
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