दिल्ली के शाहीन बाग में 37 दिनों से धरने पर बैठे लोग बताएं कि हिन्दुओं को कश्मीर से क्यों भगाया? तब क्यों नहीं किया विरोध?

दिल्ली के शाहीन बाग में 37 दिनों से धरने पर बैठे लोग बताएं कि हिन्दुओं को कश्मीर से क्यों भगाया? तब क्यों नहीं किया विरोध? प्रताडऩा के 30 वर्ष पूरे। 

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पाकिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताडि़त होकर आए हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, बौध जैन व पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता नहीं मिले, इसको लेकर दिल्ली के शाहीन बाग में हजारों लोग पिछले 37 दिनों से धरने पर हैं। धरना देने वालों में अधिकांश मुस्लिम महिला एवं पुरुष हैं। चूंकि धरना बीच सड़क पर दिया जा रहा है, इसलिए देश की राजधानी दिल्ली की यातायात व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है। हाईकोर्ट के निर्देश और पुलिस की समझाइश के बाद भी धरना समाप्त नहीं हो रहा है। धरना देने वालों को बलपूर्वक हटाने की हिम्मत पुलिस ने अभी तक भी नहीं दिखाई है। पाकिस्तान से प्रताडि़त होकर आए हिन्दुओं को नागरिकता देना संविधान के विरुद्ध बताया जा रहा है, जबकि कश्मीर से हिन्दुओं को पीट पीट कर भगा दिया गया, तब शाहीन बाग जैसा धरना प्रदर्शन नहीं हुआ। 19 जनवरी को देशभर में कश्मीरी हिन्दुओं के प्रति समर्थन जताया गया, क्योंकि आज ही के दिन 19 जनवरी 1990 से हिन्दुओं को कश्मीर से भगाने की शुरुआत हुई थी। सबने देखा कि पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों ने खुलेआम ऐलान किया कि हिन्दू लोग कश्मीर छोड़ कर चले जाएं। दहशत फैलाने के लिए हिन्दू पुरुषों को बीच चौराहे पर गोली मार दी गई तथा महिलाओं और बच्चियों के साथ ज्यादती की गई। दहशत के इस माहौल में 5 लाख से भी ज्यादा हिन्दुओं को कश्मीर छोडऩा पड़ा। जो लोग आज शाहीन बाग के धरने के समर्थन में खड़े हैं, वे तब कहां गए थे, जब कश्मीर से हिन्दुओं को भगाया जा रहा था? आज पाकिस्तान में प्रताडि़त हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने का विरोध किया जा रहा है, लेकिन कश्मीर से हिन्दुओं को भगाने पर चुप्पी साधे रखी? जब हम भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र मानते हैं, तब कश्मीर से हिन्दुओं को भगाने पर धर्म निरपेक्षता क्यों नहीं दिखाई गई? आज कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई है, क्या यही धर्म निरपेक्षता है? संशोधित नागरिकता कानून से देश के किसी भी मुसलमान की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है, लेकिन इसके बाद भी शाहीन बाग में हजारों मुसलमान धरने पर बैठे हैं तथा प्रत्येक शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद दरगाहों और मस्जिदों से जुलूस निकाले जा रहे हैं। कहा जाता है कि भारत में हिन्दू और मुसलमान भाई चारे के साथ रहते हैं। इफ्तार दावतों को साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है, जबकि आज प्रताडि़त हिन्दुओं को नागरिकता देने का ही विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस शासित राज्यों ने पाकिस्तान से आए प्रताडि़त हिन्दुओं को नागरिकता देने से इंकार कर दिया है। जबकि आंकड़े बताते हैं कि प्रताडि़त हिन्दुओं में ज्यादातर दलित वर्ग के हैं।
एस.पी.मित्तल) (19-01-2020)
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