मोहम्मद शरीफ, अदनान सामी और मुन्ना मास्टर को पद्मश्री मिलना बहुत मायने रखता है।

मोहम्मद शरीफ, अदनान सामी और मुन्ना मास्टर को पद्मश्री मिलना बहुत मायने रखता है। क्या इससे सीएए का विरोध खत्म हो जाएगा?

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वर्ष 2020 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिन लोगों को पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है उनमें फैजाबाद के 80 वर्षीय मोहम्मद शरीफ, पाकिस्तानी गायक अदनान सामी और जयपुर के मुन्ना मास्टर भी शामिल हैं। इससे पहले भी गणतंत्र दिवस के मौकों पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को पद्मश्री सम्मान दिया जाता रहा है, लेकिन इस बार ऐसे सम्मान के खास मायने हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग ही दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर पश्चिम बंगाल के कोलकाता तक में धरना प्रदर्शन कर संशोधित नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम प्रतिनिधियों का कहना है कि यह कानून मुस्लिम विरोधी है। कांग्रेस, वामपंथी, टीएमसी आदि के नेता भी इस कानून को मुस्लिम विरोधी और भारत के संविधान की भावनाओं के विपरीत मान रहे हैं। इसको लेकर पूरे देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। केन्द्र सरकार की ओर से अभियान चला कर यह समझाने की कोशिश की गई है कि सीएए से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता नहीं छीनेगी। लेकिन इस कोशिश का अधिकांश मुसलमानों पर असर नहीं हुआ है। देश भर में लगातार विरोध प्रदर्शन जराी है। ऐसे माहौल में मोहम्मद शरीफ, अदनान सामी और मुन्ना मास्टर को पद्मश्री के लिए चयन होना बहुत मायने रखता है। अदनान सामी तो पाकिस्तान गायक है, लेकिन वर्ष 2016 में उन्होंने नियमों के तहत भारत की नागरिकता ले ली है। सरकार ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भारत में पाकिस्तान के मुसलमानों को भी पद्मश्री सम्मान मिलता है। सब जानते हैं कि जयपुर के मुन्ना मास्टर बचपन से ही रामायण व अन्य हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के भजनों को गाते रहे हैं। उन्होंने अपने बेटे फिरोज खान को भी संस्कृत भाषा में अध्ययन करवाया है। पिछले दिनों ही फिरोज खान को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में नियुक्त किया गया था, तब कुछ छात्रों ने फिरोज की नियुक्ति का विरोध किया। अब उन्हीं फिरोज खान के पिता मुन्ना मास्टर को पद्मश्री दिया जा रहा है। यानि यह दिखाने की कोशिश की है कि केन्द्र सरकार किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करती है। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सम्मान यूपी के फैजाबाद के 80 वर्षीय मोहम्मद शरीफ को दिया जाना है। यह सम्मान शरीफ की समाज के प्रति सच्ची सेवा के कारण दिया गया है। शरीफ पिछले 25 वर्षों से लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करवाते आ रहे हैं। अब तक 25 हजार से भी ज्यादा शवों को कब्रिस्तान में दफन करवाया या फिर श्मशान स्थल पर अग्नि को समर्पित किया। शवों को दफन करने में मोहम्मद शरीफ ने कभी भेदभाव नहीं किया। ऐसे मोहम्मद शरीफ को सम्मान देने से पद्मश्री का ही सम्मान बढ़ा है। पद्मश्री सम्मान पर वाकई मोहम्मद शरीफ जैसे समाजसेवी का ही हक है।
(एस.पी.मित्तल) (27-01-2020)
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