दिल्ली के दो करोड़ वोटरों के खातिर न्यूज चैनलों पर देश भर के दर्शक बंधक बने हुए हैं? क्या यह दर्शकों के अधिकारों और पैसों का हनन नहीं है?
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माना कि दिल्ली देश की राजधानी है और दिल्ली से भाजपा के चुनाव खास महत्व रखते हैं। लेकिन यह भी सही है कि दिल्ली में मात्र दो करोड़ वोटर हैं और विधानसभा की हैसियत देश के किसी नगर निगम जैसी ही है। दिल्ली सरकार के पास अन्य राज्यों की तरह विशेष अधिकार भी नहीं है। अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री रहते हुए चार वर्ष तक अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे। यानि देश भर के लोगों की फुल टाइम रुचि दिल्ली चुनावों में नहीं है। लेकिन दर्शकों को खासकर हिन्दी भाषी लोगों को न्यूज चैनलों पर मजबूरन दिल्ली चुनाव की खबरें देखनी और सुननी पड़ रही है। सभी चैनलों पर अधिकांश समय दिल्ली चुनाव की खबरें ही प्रसारित हो रही है। चूंकि दिल्ली में आठ फरवरी को मतदान होना है, तब देशभर के दर्शकों को न्यूज चैनलों पर दिल्ली की ही खबरें जबरन देखनी होगी। चैनल के मालिक और सम्पादक माने या नहीं लेकिन दिल्ली के बाहर के राज्यों के दर्शको की रुचि दिल्ली चुनाव में कम ही है। अच्छा हो कि चैनल वाले दिल्ली चुनाव की खबरों के लिए एक समय निर्धारित कर लें और उसी समय पर खबरें दिखाएं, ताकि देशभर के दर्शक अन्य खबरें भी देख सके। न्यूज चैनल वालों को यह भी समझना चाहिए कि अब दर्शक न्यूनतम तीन सौ रुपए से लेकर एक हजार रुपए प्रति माह का भुगतान कर टीवी देखता है। ऐसे में दर्शक को सिर्फ दिल्ली चुनाव की खबरें ही दिखाना, उसके अधिकारों का भी हनन है। जब चैनल वाले कहते हैं उनका चैनल दर्शकों का चैनल है तो फिर देश भर के दर्शकों को परेशान क्यों किया जा रहा है? न्यूज चैनल मालिकों और सम्पादकों को दिल्ली से बाहर के दर्शकों के हितों का भी ख्याल रखना चाहिए। न्यूज चैनलों की नीतियों की वजह से इन दिनों प्रमुख घटनाओं पर दिल्ली चुनाव भारी पड़ रहा है। जबकि नगर निगम जैसी दिल्ली विधानसभा के मात्र 70 विधायक चुने जाने हैं। दिल्ली की सरकार से ज्यदा अधिकार तो मुम्बई महानगर पालिका के पास हैं।
(एस.पी.मित्तल) (28-01-2020)
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