अजमेर में स्मार्ट सिटी के 105 करोड़ रुपए पांच माह पहले ही यश बैंक से निकाल कर एयू फाइनेंस बैंक में जमा करवाए गए। लेकिन अभी भी तीन करोड़ रुपए यश बैंक में ही हैं।
आखिर सरकारी पैसा प्राइवेट बैंकों में क्यों जमा करवाया जाता है?
आरबीआई के प्रतिबंध से यश बैंक के ग्राहकों में हड़कंप।
286 रुपए वाला शेयर 5 रुपए तक पहुंचा।
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डूबने के कगार पर खड़ा प्राइवेट यश बैंक पर आरबीआई ने जो प्रतिबंध लगाए हैं उससे देश भर के खाताधारकों में हड़कंप मच गया है। आरबीआई के आदेश के मुताबिक अब कोई भी ग्राहक यश बैंक से पचास हजार रुपए तक ही निकाल सकता है। जिन ग्राहकों के बैंक में लाखों रुपए जमा हैं। उन्हें अब भारी परेशानी हो रही है। कहा जा रहा है कि लोन देने की वजह से एक लाख करोड़ रुपया डूब रहा है। ग्राहकों का बैंक में दो लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा जमा है। बैंक ने दो लाख 15 हजार करोड़ रुपए के लोन दे रखे हैं। हालांकि 3 लाख 47 हजार करोड़ रुपए की बैंक सम्पत्तियां मानी जा रही है। लेकिन शेयर बाजार में आरबीआई के प्रतिबंध के बाद यश बैंक का शेयर 6 मार्च को 5 रुपए के न्यूनतम स्तर पर आ गया। जबकि यश बैंक का शेयर 286 रुपए में भी बिका है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यश बैंक की आर्थिक स्थिति कितनी खराब हो गई है। जिन ग्राहकों का पैसा यश बैंक में जमा है उनकी आंखों में आंसू आ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए भारत सरकार की ओर से करोड़ रुपया उपलब्ध करवाया जा रहा है। स्मार्ट सिटी लिमिटेड का सीईओ अजमेर कलेक्टर को बना रखा है। पूर्व में स्मार्ट सिटी का खाता यश बैंक की वैशाली नगर स्थित शाखा में खोला गया। बैंक में सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि जमा करवाई गई। लेकिन पांच माह पहले ही 105 करोड़ रुपए निकाल कर एयू फाइनेंस बैंक में जमा करवाए गए। लेकिन अभी भी करीब तीन करोड़ रुपए यश बैंक में स्मार्ट सिटी के जमा है। अब देखना होगा कि स्मार्ट सिटी के अधिकारी किस प्रकार से यश बैंक से जमा राशि निकलवाते हैं। सवाल यह भी उठता है कि आखिर सरकारी पैसा प्राइवेट बैंकों में क्यों जमा करवाया जाता है? एयू फाइनेंस बैंक भी प्राइवेट बैंक ही है। यश बैंक के हालात देश के सामने हैं। आमतौर पर केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा भेजा गया पैसा भारतीय स्टेट बैंक अथवा अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक में ही जमा करवाया जाता है। स्मार्ट सिटी का पैसा भी भारत सरकार द्वारा ही भेजा जाता है। ऐसे में स्मार्ट सिटी का खाता भी स्टेट बैंक जैसी राष्ट्रीयकृत बैंक में ही खुलना चाहिए। लेकिन स्मार्ट सिटी योजना में बड़े अधिकारियों की दखलंदाजी की वजह से प्राइवेट बैंकों में खाते खोले जा रहे हैं। सब जानते हैं कि प्राइवेट बैक अधिकारियों से मिल कर किस प्रकार अपने यहां राशि जमा करवाते हैं। सौ करोड़ रुपए की राशि कम नहीं होती है। स्मार्ट सिटी का पैसा एक तरह से जनता का पैसा ही है। ऐसे में जनता के पैसे को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग की है। सवाल यह भी है कि जब स्मार्ट सिटी योजना में राज्य सरकार की राशि को राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करवाया जाता है, तब केन्द्र सरकार की राशि को किसी प्राइवेट बैंक में क्यों जमा करवाया जा रहा है?
(एस.पी.मित्तल) (06-03-2020)
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