जब पार्षद ईमानदार होंगे, तब अधिकारी ठेले वालों से भी मंथली वसूलेंगे।
जब पार्षद ईमानदार होंगे, तब अधिकारी ठेले वालों से भी मंथली वसूलेंगे।
रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार अजमेर नगर निगम की राजस्व अधिकारी रेखा जैसवानी का प्रकरण।
रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार अजमेर नगर निगम की राजस्व अधिकारी श्रीमती रेखा जैसवानी को एसीबी की विशेष अदालत में पेश किया जाएगा। एसीबी की टीम ने 5 मार्च की शाम को एक गरीब ठेले वाले से तीन हजार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में जैसवानी को गिरफ्तार किया था। कमलेश सिंधी नामक युवक अजमेर के प्राइम स्थान बजरंगगढ़ चौराहा के निकट सोडा वाटर का ठेला लगाता है। चूंकि यह ठेला आम रास्ते पर अतिक्रमण कर लगाया जाता है, इसलिए कमलेश सिंधी को प्रतिमाह निगम की राजस्व अधिकारी को रिश्वत देनी पड़ती है। पांच मार्च को भी जब कमलेश सिंधी घर पर रिश्वत देने पहुंचा तो रेखा जैसवानी ने घर में खड़े स्कूटर की डिक्की में तीन हजार रुपए रख देने के निर्देश दिए। जब ठेलेवाला स्कूटर की डिक्की में रिश्वत की राशि रख रहा था, तब जैसवानी घर के अंदर ही थीं। एसीबी ने स्कूटर से नोट बरामद कर जैसवानी को हिरासत में ले लिया। सवाल यह नहीं है कि अजमेर नगर निगम में भाजपा का बोर्ड है और रिश्वत का आलम यह है कि गरीब ठेलेवालों से भी वसूली हो रही है। अहम सवाल यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बने सवा साल हो गया है और भ्रष्टाचार का आलम वही पुराना है। यानि सरकार किसी की भी हो, लेकिन भ्रष्टाचार अपनी जगह कायम रहता है। कहा जाता है कि पुरुषों के मुकाबले महिला अधिकारी कम भ्रष्टाचारी होती हैं, लेकिन इस मामले में रेखा जैसवानी की हिम्मत की दाद देनी होगी। भ्रष्टाचार की कथित शिकायतों पर जैसवानी को 28 फरवरी को नगर निगम से हटा कर जयपुर स्थित मुख्यालय पर तलब कर लिया था, लेकिन इसके बावजूद भी जैसवानी निगम में राजस्व अधिकारी की हैसियत से काम करती रहीं। आम तौर पर जब कोई अधिकारी एपीओ हो जाता है तो बेहद सतर्कता बरतता है। एसीबी के रिकॉर्ड के मुताबिक जैसवानी तो मोबाइल पर बेहिचक रिश्वत की मांग करती रहीं। सवाल यह भी है कि क्या जैसवानी अकेले दम पर ठेलेवालों से रिश्वत वसूल रही थीं? जब सरकार ने 28 फरवरी को ही एपीओ कर दिया था तो फिर जैसवानी को नगर निगम से रिलीव क्यों नहीं किया गया? जहां तक अजमेर नगर निगम के पार्षदों का सवाल है तो उनकी ईमानदारी पर कोई शक नहीं कर सकता है। यदि पार्षद बेईमान होते तो सोडा वाटर का ठेला लगाने वाले कमलेश सिंधी से कोई अधिकारी रिश्वत नहीं लेता। पिछले दिनों ही नगर निगम की साधारण सभा में भाजपा पार्षद चन्द्रेश सांखला ने पार्षदों को सफाई ठेकेदार से प्रतिमाह मिलने वाले लिफाफे का मुद्दा उठाया तो सांखला के विरुद्ध कांगे्रस, भाजपा और निर्दलीय पार्षद एकजुट हो गए। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर सांखला को सभा से बाहर निकलवा दिया। निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने भी कहा है कि कोई भी पार्षद सफाई ठेकेदार से लिफाफा नहीं लेता है। ऐसे आरोपों से ईमानदार पार्षदों की छवि खराब होती है। जिस नगर निगम में इतने ईमानदार पार्षद हों, वहां ठेले वालों से मंथली वसूली तो होगी ही। जब एक सोडा वाटर ठेले वाले से रिश्वत ली जा रही है, तब भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब अदालत में जैसवानी को ईमानदार साबित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। जैसवानी तो अभी भी कह रही है कि उन्होंने कोई रिश्वत नहीं ली है। यदि कोई व्यक्ति द्वेषतावश उसके स्कूटर में पैसे रख दे तो वह कैसे बेईमान हो सकती हैं? हो सकता है कि जैसवानी 28 फरवरी के बाद से स्वयं को निगम का राजस्व अधिकारी ही नहीं माने। एसीबी के लिए अदालत में आरोप साबित करना बड़ी चुनौती होगा।
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