कृषि कानूनों को बदलने के लिए दिल्ली के आसपास जुटे किसान। किसानों के जाम से लाखों लोग परेशान। तो फिर किसी राजनीतिक दल को चुनाव जीतने की क्या जरुरत है?
29 नवम्बर को भी हजारों किसान देश की राजधानी दिल्ली के आसपास जुटे हुए हैं। पंजाब, उत्तरप्रदेश और हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश करने वाले मार्ग जाम हो गए है। कृषि कानूनों को बदल दिया जाए। एक विचारधारा विशेष के किसानों ने जिस तरह देश की राजधानी को घेरा है, उससे सवाल उठता है कि अब किसी राजनीतिक दल को चुनाव जीतने की क्या जरुरत है। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कुछ हजार या लाख लोग को एकत्रित कर सरकार के फैसलों को बदलने का दबाव बनाया जा सकता है। लोकतंत्र में यह माना जाता है कि जो राजनीतिक दल चुनाव जीत कर अपनी सरकार बनाएगा, वह अपनी घोषणा के अनुरूप कानून भी बना सकता है। ऐसे कानूनों की मंजूरी संसद के दोनों सदनों से लिया जाना अनिवार्य है कि विपक्षी दलों के सांसद भी कानून के प्रस्तावों पर अपनी राय रख सके। सब जानते हैं कि इस समय नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार है। इस गठबंधन के पास 545 में से 350 सांसद हैं। कृषि कानून को लोकसभा और राज्यसभा से भी अनुमोदित करवाया है। विपक्षी दलों को उम्मीद थी कि कृषि कानूनों को राज्यसभा से अनुमति नहीं मिलेगी, लेकिन भाजपा गठबंधन से बाहर रहने वाले राजनीतिक दलों ने समर्थन देकर कृषि कानूनों को राज्यसभा से भी मंजूर करवा दिया। बाद में राष्ट्रपति ने भी कानूनों पर अपनी मुहर लगा दी। यानि लोकतंत्र में कानून बनाने के लिए जो वैधानिक प्रक्रिया है उसे अपनाकर ही कृषि कानून बनाए गए। ऐसे में सवाल उठता है कि संविधान सम्मत बने कानूनों का विरोध क्यों किया जा रहा है? यदि मौजूदा सरकार के कानून पलटना ही है तो नाराज लोगों को अगले लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना चाहिए। देश की जनता ने जब भाजपा गठबंधन को सरकार चलाने का मौका दिया है तो फिर विरोध के नाम पर दिल्ली को क्यों घेरा जा रहा है? सब जानते हैं कि कुछ हजार किसानों के पीछे वे राजनीतिक दल खड़े हैं जो चुनाव हार चुके हैं। ऐसे लोग अब किसानों को आगे कर अपना राजनीतिक मकसद पूरा कर रहे हैं। जहां तक आम किसान का सवाल है तो नए कृषि कानूनों का स्वागत हो रहा है। नए कानून से कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक आएगी, जिसका सीधा लाभ किसान को ही मिलेगा। सवाल यह भी है कि जब कांग्रेस शासित राज्यों ने केन्द्र सरकार के कृषि कानून को मानने से इंकार कर दिया है, तब कांग्रेस के नेता किसानों को आंदोलन के लिए क्यों उकसा रहे हैं? देश पहले ही कोरोना महामारी के दौर से गुजर रहा है। आए दिन घर परिवार में मौत हो रही है। कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ऐसे किसानों के प्रदर्शन को किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता। टीवी चैनलों पर किसान अंादोलन के जो दृश्य सामने आ रहे हैं उनमें अधिकांश किसान बगैर मास्क के हैं। स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा बार बार कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क लगाना जरूरी है। यदि भीड़ में मास्क नहीं लगाया तो कोरोना का संक्रमण बढ़ जाएगा। सवाल उठता है कि किसान आंदोलन से कोरोना का संक्रमण बढ़ता है तो कौन जिम्मेदार होगा? केन्द्र और राज्य सरकारों ने कोरोना को लेकर जो नियम कायदे बनाए हैं वे किसान आंदोलन से कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। आंदोलन के दौरान ऐसे कानूनों की धज्जियां उड़ रही है।
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