अब किसी के लिए आसान नहीं है राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार गिराना। जुलाई में सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए थे उनमें से कई अब सरकार के साथ हैं। तो फिर किस रणनीति के तहत सरकार गिराने के षडयंत्र की बात कर रहे हैं गहलोत?

राजस्थान में दो सौ विधायक हैं। मौजूदा समय में तीन विधायको का निधन हो चुका है। यानि अब 197 सदस्यों की ही विधानसभा हैं। कांग्रेस के पास अपने 98 विधायक हैं। 13 निर्दलीय विधायकों का भी कांग्रेस को ही समर्थन है। इसके साथ सीपीएम के दो, बीटीपी के दो तथा आरएलपी के एक सदस्य का भी समर्थन कांग्रेस के साथ है। यानि अशोक गहलोत की सरकार के समर्थन में करीब 115 विधायक है। लेकिन इसके बाद भी सीएम अशोक गहलोत कह रहे हैं कि भाजपा के नेता उनकी सरकार को गिराने का षडयंत्र कर रहे हैं। यह माना कि जुलाई माह में सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायक नाराज होकर दिल्ली चले गए थे। कांग्रेस के जो विधायक दिल्ली गए थे, उनमें कई विधायक अब सीधे मुख्यंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं। पायलट वाले विधायक ही अब गहलोत को बता रहे हैं कि दिल्ली में किन-किन भाजपा नेताओं से मुलाकात हुई थी। सवाल यह भी है कि जब पायलट सहित 19 विधायकों के चले जाने के बाद भी सरकार नहीं गिरी तो अब 19 विधायकों के साथ रहते हुए सरकार कैसे गिरेगी? भाजपा के पास तो मौजूदा समय में मात्र 71 विधायक ही हैं। अभी तो यह भी नहीं पता कि हनुमान बेनीवाल आरएलपी के तीन विधायकों का भी समर्थन भाजपा को मिलेगा या नहीं। सीएम गहलोत इस सच्चाई को भी जानते हैं कि कांग्रेस का जो विधायक व्हिप जारी होने के बाद कांग्रेस के पक्ष में वोट नहीं देगा, उसका विधायक का पद छिन जाएगा। जुलाई में तो कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं आने पर ही बर्ख़ास्तगी का नोटिस भिजवा दिया था। दिल्ली गए विधायकों में विधायकी छीनने की भी बेचेनी थी, इसलिए सचिन पायलट को अपने समर्थक विधायकों के साथ चुपचाप वापस आना पड़ा। अब सचिन पायलट की भी पहले जैसी राजनीतिक हैसियत नहीं है। पायलट को भी पता है कि इस बार विधायकों को एकत्रित करना आसान नहीं है। कोई भी विधायक अपना विधायक पद गंवाना नहीं चाहेगा। सरकार गिराने के लिए अशोक गहलोत से कम से कम 20 विधायक छीनना जरूरी है। मौजूदा समय में किसी भी राजनेता में इतना दम नहीं कि गहलोत के खेमें से 20 विधायक उठा लाए। भले ही गहलोत ने विधायकों की बाड़ाबंदी नहीं कर रखी हो, लेकिन निगरानी बाड़ाबंदी से भी तगड़ी है। एक-एक विधायक पर कड़ी निगरानी है। जुलाई में दर्ज मुकदमे का आश्वासन भी विधायकों को है। देशद्रोह जैसी धाराओं में विधायकों के खिलाफ मुकदमें दर्ज हुए। अब तो सीएम गहलोत ने निरंजन आर्य को मुख्य सचिव और एमएल लाठर को पुलिस महानिदेशक बना कर अपनी स्थिति को और मजबूत कर लिया है। ये दोनों अधिकारी भी जानते हैं कितने अधिकारियों की वरिष्ठता को लांघ कर इस पद पर बैठे हैं। ऐसे में सरकार की हिफाज़त करना इन दोनों अधिकारियों की नैतिक जिम्मेदारी है। राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से इतनी मजबूत स्थिति होने के बाद भी अशोक गहलोत को अपनी सरकार गिरने का डर है। क्या यह डर हकीक़त में है? जानकारों की माने तो गहलोत ने एक रणनीति के तहत सरकार गिराने के षडयंत्र की बात कही है। यह रणनीति कांग्रेस की आंतरिक राजनीति से जुड़ी हुई है। इस रणनीति का आने वाले दिनों में खुलासा होगा। फिलहाल अशोक गहलोत यही दिखाना चाहते हैं कि राजस्थान में वे ही कांग्रेस की सरकार चला सकते हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (07-12-2020)

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