राजस्थान में कांग्रेस को सचिन पायलट के कार्यकाल से कमजोर नहीं दिखाना चाहते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। पंचायतीराज चुनाव में हार के बाद भी अनूठा तर्क दे रहे हैं मुख्यमंत्री। प्रदेशाध्यक्ष का काम भी खुद कर रहे हैं।

राजस्थान के 21 जिलो में जिला परिषद और पंचायत समितियों के वार्ड सदस्यों के चुनाव हुए। राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि इन 21 जिलों की 222 पंचायत समितियों में से कांग्रेस को सिर्फ 81 पंचायत समितियों में ही बहुमत मिला है। लेकिन इसके बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि राजस्थान में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई हैं। असल में सीएम गहलोत कांग्रेस की तुलना भाजपा से करने के बजाए सचिन पायलट के कार्यकाल से कर रहे हैं और यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि वर्ष 2015 में जब सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे, तबके मुकाबले कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। यही वजह है कि वे सब अनूठे तर्क दिए जा रहे हैं जिनसे लगे कि अशोक गहलोत के कार्यकाल में कांग्रेस कमजोर नहीं हो रही। गहलोत के रणनीति कारों ने यह सवाल बड़ी सफाई से गौण कर दिया कि जब दो वर्ष से गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है तो पंचायतीराज चुनाव में कांग्रेस की इतनी बुरी गत क्यों हुई? पंचायतीराज चुनाव परिणाम पर पहले तो सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि हम अपनी सरकार की उपलब्धियों को मतदाताओं तक नहीं पहुंचा सके, इसलिए कांग्रेस की हार हुई, लेकिन दूसरे ही दिन 11 दिसम्बर को सीएम गहलोत ने कहा कि पंचायतीराज के चुनाव में तो कांग्रेस हारी ही नहीं है। गहलोत ने तर्क दिया कि भले ही 222 पंचायत समितियों में से कांग्रेस को मात्र 81 पंचायत समितियों में ही बहुमत मिला हो, लेकिन भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं। भाजपा को 40.58 प्रतिशत, जबकि कांग्रेस को 40.87 प्रतिशत वोट मिले हैं। यानि 0.23 प्रतिशत वोट कांग्रेस को ज्यादा मिले हैं। सब जानते हैं कि वर्ष 2015 में राजस्थान मे भाजपा का शासन था और सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे। उस समय पायलट ही कांग्रेस का चेहरा थे। अब सीएम गहलोत का कहना है कि वर्ष 2015 के पंचायतीराज के चुनाव में इन 21 जिलों की पंचायत समितियों में कांग्रेस को मात्र 67 समितियों में ही बढ़त मिली थी, जबकि 2020 में 81 समितियों में बढ़त है। सीएम का यह भी तर्क है कि 2015 के चुनाव भाजपा के 14 जिला प्रमुख बने थे, लेकिन 2020 में भाजपा के 13 जिला प्रमुख ही बने हैं। सीएम गहलोत ने जो अनूठे तर्क दिए हैं वे तो उनके रणनीति कार ही जाने, लेकिन इन अनूठे तर्कों से प्रतीत होता है कि सीएम गहलोत कांग्रेस में चल रही अंतरकलह से वे परेशान हैं। भले ही गहलोत ने पायलट को सरकार और संगठन से दरकिनार कर रखा हो, लेकिन सीएम गहलोत पर पायलट का साया हमेशा छाया रहता है। जब तब गहलोत कांग्रेस और सरकार को पायलट से दूर ले जाना चाहते हैं तब तब पायलट का प्रदेशाध्यक्ष पद का कार्यकाल गहलोत पर हावी हो जाता है। यह भी सब जानते हैं कि 2013 के विधानसभा में अशोक गहलोत के कारण ही कांग्रेस को मात्र 21 सीटे मिली थी और तब पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभालते हुए भाजपा से संघर्ष किया था। तब यदि मरी हुई कांग्रेस को 67 पंचायत समितियों में बहुमत मिला तो यह वाकई उपलब्धि थी, लेकिन अब तो दो वर्ष से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और तब भी 81 समितियों में ही बहुमत मिला है। इससे गहलोत स्वयं अंदाजा लगा लें कि राजस्थान में कांग्रेस कहां खड़ी है? सीएम गहलोत को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि पायलट के अलग होने से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। आमतौर पर चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष ही राजनीतिक बयान देते हैं, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बजाए सीएम गहलोत ही पार्टी अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। इससे प्रतीत होता है कि राजस्थन में कांग्रेस संगठन सरकार की गोद में बैठा हुआ है। गहलोत की मेहरबानी से ही डोटासरा प्रदेशाध्यक्ष होने के साथ साथ शिक्षा मंत्री भी बने हुए हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (12-12-2020)

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