राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में अब अशोक गहलोत का एक छत्र राज। कांग्रेस की सरकार बनवाने में सचिन पायलट की भूमिका है, इस आवाज को 2020 में कुचल दिया गया। भूल जाओ, माफ करो, की बात नहीं समझने वाला अनाड़ी है। मुख्यमंत्री गहलोत का यह कथन बहुत मायने रखता है।
वर्ष 2020 का अंतिम दिन 31 दिसम्बर भी गुजर गया। यह वर्ष कोविड-19 के कारण तो जाना ही जाएगा, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गया है। दिसम्बर 2018 में जब कांग्रेस हाई कमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई, तब यह माना गया कि प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के हक को दरकिनार किया गया है। डेढ़ वर्ष तक सरकार और संगठन में यह आवाज उठती रही कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवाने में सचिन पायलट की भूमिका है। लेकिन पिछले पांच माह से इस आवाज को पूरी तरह कुचल दिया गया है। अब कांग्रेस का कोई नेता यह कहने की स्थिति में नहीं है कि सरकार बनवाने में पायलट की भूमिका है। हालात ऐसे हो गए हैं संगठन और सरकार में पायलट का नाम लेने से भी डर लगता है। मीडिया में पायलट के प्रभाव के बारे में कितना भी छपे लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल पर जो कहा वह बहुत मायने रखता है। गहलोत से जब सचिन पायलट की भूमिका के बारे में सवाल पूछा गया तो गहलोत ने कहा कि अगस्त माह में जब हमारे विधायक जैसलमेर की होटल से रवाना हुए थे, तब मैंने कहा कि भूल जाओ और माफ करो। मेरा यह कथन जो अभी भी नहीं समझे, वह अनाड़ी है। गहलोत का यह इशारा सचिन पायलट की ओर ही था। सब जानते हैं कि एक माह तक कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ दिल्ली में रहने के बाद पायलट जब 13 अगस्त को जयपुर लौटे तब कहा था कि हम डॉक्टर (राहुल गांधी को अपना) मर्ज बता आए है और अब डॉक्टर ही इलाज करेगा। इस कथन के बाद उम्मीद जताई गई कि गहलोत और पायलट में तालमेल हो जाएगा। लेकिन पिछले पांच माह की गतिविधियाँ बताती हैं कि सरकार और संगठन में पायलट का कोई महत्व नहीं रहा है। पायलट को हटाकर प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए गोविंद सिंह डोटासरा पिछले पांच माह से अकेले ही कांग्रेस संगठन को चला रहे है। प्रदेश से लेकर ब्लॉक तक कार्यकारिणी भंग पड़ी है। लाख खबरों के बाद भी मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो रहा है। पायलट सहित जिन तीन मंत्रियों को हटाया गया, उनके विभाग भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास ही है। मुख्यमंत्री के पास कोई 15 विभाग बताए जा रहे हैं जिसमें गृह, वित्त, जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी हैं। कांग्रेस और कांग्रेस को समर्थन देने वाले किसी भी विधायक में इतनी हिम्मत नहीं कि वह मंत्री बनने के लिए गहलोत को कह सके। सचिन पायलट के समर्थक चाहे कितना भी दावा करें लेकिन राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में गहलोत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलेगा। इसे अशोक गहलोत की राजनीतिक कुशलता ही कहा जाएगा कि सचिन पायलट को हिट विकेट करवा दिया। जो सचिन पायलट कांग्रेस की सरकार बनवाने का दावा करते थे, वे आज सिर्फ विधायक बन कर रह गए हैं। अब सरकार और संगठन में वो ही हो रहा है जो गहलोत चाहते हैं। गंभीर बात तो यह है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में भी पायलट की सक्रियता नजर नहीं आ रही है। किसान आंदोलन पर भी दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय पर गोविंद सिंह डोटासरा की ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाई गई। पायलट फिलहाल ट्वीटर तक ही सीमित रह गए हैं। पायलट की राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी अजय माकन से मुलाकात भी गहलोत की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नही कि मौजूदा समय में राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में गहलोत का एक छात्र राज है। राजस्थान लोक सेवा आयोग में पांच सदस्यों की नियुक्ति का मामला हो या फिर सूचना आयोग में सदस्यों की भर्ती। गहलोत ने अपने नजरिए से की है। मुख्य सचिव पुलिस महानिदेशक स्तर के आईएएस और आईपीएस की सेवानिवृत्त के बाद जिस तरह महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जा रहा है उससे अफसरवादी गहलोत के इशारे पर नाच कर रहे हैं। यानि विरोध की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं है।
S.P.MITTAL BLOGGER (31-12-2020)
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