राहुल गांधी के राजस्थान दौरे में सिर्फ दिखाने के लिए सचिन पायलट को साथ रखा। राहुल की हर सभा में सीएम अशोक गहलोत ने कहा-मेरी सरकार को गिराने का भी षडयंत्र हुआ। क्या अब सचिन पायलट के कांग्रेस में रहने के कोई मायने हैं? क्या गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट की जगह ले सकते हैं? राहुल गांधी के दौरे से कांग्रेस का आंतरिक विवाद और बढ़ा। क्या पायलट अब भी केन्द्र के खिलाफ किसान महापंचायत करेंगे?

कोई सात बरस तक राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और डेढ़ वर्ष तक डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट अब यदि अपना कलेजा निकाल कर भी रख दें तो उनकी कांग्रेस के प्रति वफ़ादारी नहीं मानी जाएगी। यह बात कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के 12 व 13 फरवरी के राजस्थान दौरे साबित हो गई है। राहुल गांधी का दौरा प्रदेश के किसानों को केन्द्र सरकार के खिलाफ संगठित करने के उद्देश्य से था, लेकिन राहुल के दौरे से कांग्रेस का आंतरिक विवाद और बढ़ गया है। दौरे में जिस प्रकार पायलट की उपेक्षा हुई उससे जाहिर था कि सीएम अशोक गहलोत के जख्मों के घाव अभी भरे नहीं है, इसलिए उन्होंने राहुल के सामने हर सभा में कहा कि मेरी सरकार को भी गिराने का षडय़ंत्र किया गया था। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई-अगस्त में जब सचिन पायलट कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर दिल्ली में डेरा जमाए रहे, तब गहलोत ने आरोप लगाया था कि पायलट भाजपा से मिलकर उनकी सरकार को गिराने का प्रयास कर रहे हैं। तब गहलोत ने पायलट को मक्कर, नकारा, निकम्मा, धोखेबाज़ तक कहा। हालांकि बाद में राहुल गांधी से मुलाकात कर पायलट जयपुर लौट आए और विधानसभा में गहलोत सरकार को विश्वास मत भी हासिल करवाया, लेकिन राहुल गांधी के दौरे में साफ नजर आया कि अब कांग्रेस में पायलट की कोई अहमियत नहीं है। राजस्थान में अब वो ही होगा जो सीएम गहलोत कहेंगे। सवाल अकेले सीएम गहलोत का नहीं है। दौरे में स्वयं राहुल गांधी ने भी पायलट को तवज्जों नहीं दी। विधानसभा चुनाव में प्रचार और दिसम्बर 2018 में सरकार बनने के बाद जो राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों पर गहलोत और पायलट के हाथ पकड़ कर ऊंचे करवाते थे, उन राहुल गांधी ने 12 व 13 फरवरी को किसान सम्मेलनों में मंच पर सचिन पायलट को अपने पास बैठाना भी मुनासिब नहीं समझा। जिन सचिन पायलट को राहुल गांधी का दोस्त माना जाता था वो पायलट किशनगढ़ एयरपोर्ट पर लाइन में खड़े होकर राहुल से मिले। पायलट दौरे में राहुल के साथ तो रहे, लेकिन सिर्फ दिखाने के लिए। राहुल की कई सभाओं में तो पायलट को बोलने तक नहीं दिया। मकराना की सभा में पायलट तब राहुल के पास बेठ पाए जब प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भाषण देने चले गए। भाषण खत्म होने से पहले ही पायलट को डोटासरा की कुर्सी से उठना पड़ा। पायलट के साथ कांग्रेस में यह तब हो रहा है, जब प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा से सत्ता में लाने का श्रेय पायलट को दिया जाता है। वर्ष 2013 में जब अशोक गहलोत ने सत्ता भाजपा को सौंपी, तब कांग्रेस के मात्र 21 विधायक थे। तब पायलट को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। पायलट के नेतृत्व में भी कांग्रेस ने दिसम्बर 2018 में 100 सीटें जीत कर बहुमत हासिल किया, लेकिन पायलट की जगह गहलोत को सीएम बनाया गया। तभी राजस्थान कांग्रेस में खींचतान चल रही है। गत वर्ष जुलाई-अगस्त के कदम ने पायलट को कांग्रेस में बाहर का रास्ता दिखा दिया है। देखना होगा कि राहुल गांधी के दौरे के सचिन पायलट कितने दिनों तक कांग्रेस में रहते हैं? राहुल गांधी के दो दिन के दौरे में सचिन पायलट ने अपने चेहरे से मास्क नहीं हटाया, ताकि चेहरे का तनाव बाहर न दिखे, लेकिन पायलट की बॉडी लेग्वेज बहुत कुछ कह रही थी। पायलट के भी अब यह समझ आ गया है कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते, उनका कांग्रेस में कोई भविष्य नहीं है। अब राहुल गांधी के सामने सचिन पायलट जिंदा बाद के नारे भी कोई मायने नहीं रखते हैं। राहुल के सामने गहलोत की पैरवी करने वालों में केसी वेणुगोपाल से लेकर अजय माकन तक शामिल हैं, जबकि पायलट की पीड़ा को समझाने वाला कोई नहीं है। पायलट केन्द्र के कृषि कानूनों के विरोध में अपने दम पर महापंचायतें कर रहे हैं, लेकिन देखना होगा कि राहुल के दौरे के बाद पायलट की कितनी महापंचायतें होती हैं। फिलहाल कांग्रेस की राजनीति में गहलोत का पलड़ा भारी है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (14-02-2021)

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