वसुंधरा राजे के कारण ही तो राजस्थान में भाजपा की हार हुई है। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा को प्रस्तुत नहीं किया जाता तो आज अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं होते। 6 माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश की सभी 25 सीटें मिली। सीएम के पुत्र तक चुनाव हार गए। 15 फरवरी को दिल्ली में फिर मिलीं वसुंधरा राजे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से।

14 फरवरी को कोटा में पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत के समर्थकों की एक बैठक हुई। इस बैठक में कहा गया कि राजस्थान में भाजपा की कमान पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सौंपी जाए। राजावत के समर्थकों ने कहा कि यदि वसुंंधरा राजे को नेतृत्व सौंपा जाता है तो प्रदेश में एक बार फिर भाजपा सरकार बन जाएगी। राजावत और उनके समर्थकों की राय अपनी जगह है, लेकिन पूरा प्रदेश जानता है कि दिसम्बर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा राजे को ही मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत किया था। उस समय भी वसुंधरा राजे ही राजस्थान की मुख्यमंत्री थीं। तब भाजपा में ही वसुंधरा राजे के नेतृत्व को लेकर आपत्तियां उठाई गई थीं, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को ही आगे रखा। तब कोटा में खुद भवानी सिंह राजावत भी चुनाव हार गए। यदि विधानसभा चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाता तो आज अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं होते। जिन लोगों ने राजे के मुख्यमंत्री रहते मलाई खाई वो आज कुछ भी कहे, लेकिन विधानसभा के चुनाव में ज्यादा नाराजगी वसुंधरा की कार्यशैली को लेकर ही थी। चुनाव में भाजपा नहीं बल्कि वसुंधरा राजे हारीं। इस बात का पता 6 माह बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम से लगता है। माई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से वसुंधरा राजे को दूर रखा गया। प्रदेश की सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत हुई। यहां तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी जोधपुर से चुनाव हार गए। जबकि जोधपुर पिता-पुत्र का गृह जिला है। राजावत के समर्थक याद करें, उस समय प्रदेश भर में वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल था। यदि भाजपा के खिलाफ माहौल होता तो 6 माह बाद लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत नहीं होती। राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश से सत्ता गवाने के बाद भी भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया। अमित शाह ही नहीं बल्कि जेपी नड्डा की कार्यकारिणी मेंं भी राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए रखा गया है। जबकि पिछले दो वर्ष राजे ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर पार्टी में सक्रियता नहीं दिखाई है। सवाल उठता है कि राजस्थान में ही सक्रिय रहने की इतनी छटपटाहट क्यों हैं? राजे जब स्वयं को पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता मानती है तो फिर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर सक्रियता क्यों नहीं दिखाती? आखिर क्यों उनके समर्थक प्रदेश में उछलकूद करते हैं? यह माना कि राजे का भाजपा को मजबूत करने में बड़ा योगदान है। लेकिन मौजूदा समय में देश जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें वसुंधरा राजे को भी राष्ट्रीय नेतृत्व का कहना मानना चाहिए। कई बार जिद और घमंड आदमी को बहुत छोटा कर देता है।

जेपी नड्डा से मुलाकात:

15 फरवरी को राजे ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिल्ली में मुलाकात की। इससे पहले राजे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिल चुकी हैं। शाह से मुलाकात के बाद उम्मीद जताई जा रह थी कि राजे पश्चिम बंगाल के चुनाव में भूमिका निभाएंगी। लेकिन अभी तक भी राष्ट्रीय स्तर पर राजे की सक्रियता नजर नहीं आई है।

S.P.MITTAL BLOGGER (15-02-2021)

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