सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय आने से पहले ही प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों ने अभिभावकों को फीस वसूली का नोटिस थमाया। कोरोना काल की फीस वसूली के नोटिस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लेख। आखिर गरीब और मध्यमवर्गीय अभिभावक कहां से लाए एक लाख रुपए तक की फीस।
राजस्थान के प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधक कोरोना काल (स्कूलें बंद रहीं) की सौ प्रतिशत फीस वसूल सकते हैं या नहीं, इस पर अभी सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय आना है। अभिभावकों, राज्य सरकार और प्राइवेट स्कूलों की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, लेकिन गत 8 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया, उसी को आधार बना कर प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों ने वर्ष 2020-21 की फीस का नोटिस अभिभावकों को थमा दिया है। कोई तीन हजार छात्राओं वाली अजमेर की सेंट मेरी कॉनवेंट स्कूल की प्रिंसिपल ने 16 फरवरी को ही एक नोटिस सभी अभिभावकों को भिजवा दिया है। इस नोटिस में सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी के आदेश का उल्लेख करते हुए अभिभावकों के समक्ष कुल फीस की 6 किश्तें प्रस्तावित की है। पहली किश्त 5 मार्च को जमा करवानी है, जबकि अंतिम किश्त अगस्त माह में जमा करवानी है। कॉनवेंट की तरह ही अजमेर और प्रदेश के अन्य शहरों की प्राइवेट स्कूलों को ऐसे नोटिस थमा दिए हैं। चूंकि नोटिस में सुप्रीम कोर्ट का उल्लेख किया गया है, इसलिए अभिभावक डरे हुए हैं। विरोध करने पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने का आरोप लग सकता है। कई स्कूलों की एक लाख रुपए सालना तक फीस हैं, ऐसे में अभिभावकों को अगस्त तक एक लाख रुपए की फीस जमा करवानी होगी। गरीब और मध्यमवर्गीय अभिभावक इतनी फीस कहां से जमा करवाएगा? सब जानते हैं कि कोरोना काल में मार्च 2020 से लेकर जनवरी 2021 तक राजस्थान भर में सरकारी और प्राइवेट स्कूल बंद रहे। घर बैठे ऑन लाइन पढ़ाई की सच्चाई सबके सामने हैं। क्या पांचवीं कथा तक का विद्यार्थी मोबाइल पर ऑनलाइन पढ़ाई कर सकता है? ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एड्रॉयड फोन भी दिलवाना अनिवार्य हो गया। कोरोना काल में अभिभावकों को आर्थिक संकट का भी सापना करना पड़ा। लेकिन अभिभावकों के सभी तर्कों को दरकिनार कर सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को कोरोना काल की भी 100 प्रतिशत फीस वसूलने का अंतरिम आदेश दे दिया। जबकि राजस्थान हाईकोर्ट ने 70 प्रतिशत फीस वसूलने का आदेश दिया था। अभिभावकों की ओर से पैरवी करते हुए प्रदेश के प्रमुख वकील सुनील समदाडिय़ा ने 70 प्रतिशत फीस का भी विरोध किया। समदाडिय़ा का कहना रहा कि कोरोना काल में जब स्कूल खुले ही नहीं तो फिर फीस कैसे ली जा सकती है? राजस्थान सरकार भी इस मुद्दे पर अभिभावकों के साथ खड़ी नजर आई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों के तर्कों का ही समर्थन किया। सुप्रीम कोर्ट के समर्थन को देखते हुए ही अंतिम आदेश आने से पहले ही फीस वसूली के नोटिस अभिभावकों को थमा दिए गए हैं। सवाल उठता है कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में अंतरिम आदेश में बदलाव कर दिया तो क्या होगा? सब जानते हैं कि प्राइवेट स्कूलें किस तरह से वसूली होती है। मोटा मुनाफ़ा होने की वजह से शृंखलाबद्ध तरीके से स्कूलें खोली जा रही है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि स्कूलें बंद रहने की आड़ लेकर प्रबंधकों ने शिक्षकों और अन्य स्टाफ को या तो वेतन नहीं दिया है या फिर निर्धारित वेतन का मात्र 25 प्रतिशत दिया गया है। कई कर्मचारियों को तो स्कूल से हटा भी दिया है। अच्छा हो कि अंतिम आदेश देने से पहले सुप्रीम कोर्ट प्राइवेट स्कूलों के मुनाफ़े और हकीक़त को देख ले।
S.P.MITTAL BLOGGER (17-02-2021)
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