ट्रेनों को रोकने से आखिर किसी परेशानी हुई? ट्रेनों को रोकने में किसानों से ज्यादा राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय। लेकिन राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी सक्रिय नहीं।

दिल्ली की सीमाओं पर जब लगातार किसानों की संख्या कम हो रही है, तब 18 फरवरी को देश के अनेक स्थानों पर ट्रेने रोकी गईं। सवाल उठता है कि इन ट्रेनों के रुकने से आखिर किसी परेशानी हुई? सब जानते हैं कि ट्रेनों में आम व्यक्ति ही सफर करता है। इसमें किसानों के परिवार भी शामिल हैं। क्या आम व्यक्ति को परेशान कर सरकार पर दबाव डाला जा सकता है? 18 फरवरी को जिन स्थानों पर ट्रेने रुकी उनमें सवार यात्रियों से परेशानी के बारे में पता लगाया जा सकता है। हालांकि रेल रोकने का देशव्यापी आह्वान था, लेकिन विरोध का ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब, यूपी, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में ही देखा गया। उत्तर पूर्व और दक्षिण के राज्यों में ज्यादा प्रभाव नहीं दिखाई दिया। हालांकि यह आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से किया गया था, लेकिन ट्रेनों को रोकने में किसानों से ज्यादा कांग्रेस, सपा, लेफ्ट आदि पार्टियों के कार्यकर्ता सक्रिय नजर आए। ट्रेनों को रुकने का आह्वान करने वाले किसान संयुक्त मोर्चा के प्रमुख राकेश टिकैत माने या नहीं लेकिन 18 फरवरी को कांग्रेस से लेकर लेफ्ट तक के कार्यकर्ता यदि सक्रिय नहीं होते तो उत्तर भारत में ट्रेनों का चक्का जाम होना मुश्किल था। टिकैत कहते रहे हैं कि किसानों के आंदोलन का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। लेकिन 18 फरवरी को रेल रोको आंदोलन राजनीति के रंग में नजर आया। बिहार में जहां पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ट्रेने रोकी तो वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता ट्रेक पर आकर खड़े हो गए। राजस्थान में कांग्रेस से भी ज्यादा लेफ्ट के कार्यकर्ता सक्रिय दिखे। रेल यूनियनों ने भी वामपंथी का प्रभाव है। ट्रेनों के ड्राइवर, गार्ड आदि स्टाफ लेफ्ट यूनियनों से जुड़े हुए हैं। उत्तर भारत में जगह जगह ट्रेनों को रोकने से लोगों का भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि आह्वान को देखते हुए रेल मंत्रालय ने अनेक ट्रेनों को पहले ही रद्द कर दिया था। इससे भी यात्रियों को ही परेशानी हुई।

बेनीवाल की पार्टी सक्रिय नहीं:

रेल रोको आंदोलन में 18 फरवरी से राजस्थान में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली आरएलपी के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं दिखे। हालांकि बेनीवाल ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है और तीनों कृषि कानूनों के विरोध में ही एनडीए सरकार से अपना समर्थन वापस लिया है। बेनीवाल नागौर से सांसद हैं और युवा वर्ग में बेनीवाल का खास प्रभाव है। 12 और 13 फरवरी को राजस्थान में राहुल गांधी की हुई किसान पंचायतों के संबंध में बेनीवाल का कहना था कि आने वाले दिनों में उनकी ओर से किसान महापंचायतें की जाएंगी। महापंचायतों के माध्यम से ही केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया जाएगा। बेनीवाल ने राहुल गांधी की किसान पंचायतों को पूरी तरह फेल बताया था। 

S.P.MITTAL BLOGGER (18-02-2021)

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