हरियाणा के जिंद में किसान ने अपनी ही फसल बर्बाद कर दी। रकेश टिकैत ने कहा था कि किसान फसलों को जला देंगे। किसान आंदोलन को सक्रिय रखने के लिए कांग्रेस ने ताकत झोंकी। राजस्थान के रूपनगढ़ की तर्ज पर केरल में राहुल गांधी का ट्रेक्टर मार्च। जिद से नहीं संवाद से निकलेगा हल-कृषि मंत्री तोमर।

22 फरवरी को मीडिया खबरों में बताया गया कि हरियाणा के जिंद के कुलकानी गांव में एक किसान ने गेहंू की तैयार फसल पर ट्रेक्टर चलाकर बर्बाद कर दी। पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि सरकार ने कृषि कानून वापस नहीं लिए तो खेत में खड़ी फसल को जला दिया जाएगा। जिंद के किसान ने राकेश टिकैत के कहे पर अमल कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर विरोध का यह कौन सा तरीका है? माना कि किसान ने जिस फसल को नष्ट किया, वह उसकी संपत्ति थी, लेकिन क्या इस फसल का उपयोग अकेला किसान करता? फसल उगाने के बाद गेहंू पर देश के नागरिकों का भी हक होता है। आखिर इसलिए तो किसान को अन्नदाता कहा गया है। अब यदि अन्नदाता ही फसल को बर्बाद करेगा तो राकेश टिकैत के आह्वान पर सवाल उठेंगे ही। टिकैत भी जानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर दिया जा रहा धरना धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा है। यही वजह है कि स्वयं टिकैत भी दिल्ली को छोड़कर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि में सभाएँ कर रहे हैं। इसी प्रकार किसान आंदोलन को सक्रिय रखने के लिए कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में लगातार किसान सम्मेलन कर रही हैं तो भाई राहुल गांधी ने 22 फरवरी को केरल में ट्रेक्टर मार्च किया। यह ट्रेक्टर मार्च 13 फरवरी को राजस्थान के रूपनगढ़ (अजमेर) में हुए ट्रेक्टर मार्च की तर्ज पर रहा। राहुल गांधी 12 व 13 फरवरी को राजस्थान में भी किसान सम्मेलन कर चुके हैं। कांग्रेस शासित राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ही किसान आंदोलन चला रही है। सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता 19 फरवरी का जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अब सीएम गहलोत स्वयं महापंचायतें कर रहे हैं। 27 फरवरी को चित्तौड में सीएम की किसान पंचायत होगी। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी यूपी में किसान पंचायतें करेंगे। यानि आने वाले दिनों में किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वहीं 22 फरवरी को केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने एक बार फिर कहा कि जिद से कोई हल नहीं निकलेगा। हल बातचीत से ही निकल सकता है। किसान नेता और किसानों के समर्थन में खड़े राजनीतिक दल यह बताएं कि आखिर कृषि कानूनों में क्या ख़ामियाँ हंै? ऐसी ख़ामियों को दूर करने के लिए सरकार तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि यह कानून वैकल्पिक है। यदि कोई किसान इस कानून के दायरे में नहीं आना चाहता है तो वह मौजूदा व्यवस्था के तहत खेती करे और अपनी फसल मंडियों में बेचने के लिए स्वतंत्र है। प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद तो आंदोलन का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (22-02-2021)

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