क्या हाथ ऊंचा करवा देने से वसुंधरा राजे संतुष्ट हो जाएंगी? भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने वसुंधरा राजे को रायता नहीं, रस मलाई का ऑफर किया था। राजस्थान भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक के पांच सत्रों में से एक में भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का संबोधन नहीं हुआ।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी तो 2 मार्च को जयपुर में राजस्थान भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में हुई। बैठक के दौरान लंच में परोसी गई खाद्य सामग्री को लेकर राजस्थान का मीडिया विभाजित नजर आया। एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र में प्रथम पृष्ठ पर फोटो के साथ लिखा कि प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को दही से बना रायता ऑफर किया। इस अखबार ने रायते को वसुंधरा और पूनिया की आपसी खींचतान से भी जोड़ दिया। वहीं एक अन्य अखबार ने लिखा कि पूनिया ने वसुंधरा को रस मलाई ऑफर की। इस अखबार के भी रस और मलाई को लेकर खबर छापी। लंच के समय मौजूद रहे नेताओं के अनुसार सतीश पूनिया ने रस मलाई के साथ अन्य मिठाईयां भी वसुंधरा राजे को ऑफर की थीं, लेकिन राजे ने मिठाई स्वीकार नहीं की, लेकिन पूनिया की आवभगत की प्रशंसा वसुंधरा राजे ने भी की। कार्यसमिति के सभी सदस्यों को भोजन करवाने के बाद ही पूनिया ने स्वयं भोजन ग्रहण किया। आमतौर पर प्रदेशाध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ बैठ कर ही लंच डिनर करते हैं, लेकिन 2 मार्च को पूनिया ने प्रदेशाध्यक्ष के नाते मेहमान नवाजी की। वसुंधरा राजे अब 8 मार्च को अपने जन्मदिन के उपलक्ष में भले ही धार्मिक यात्रा निकाल कर शक्ति प्रदर्शन करें, लेकिन सतीश पूनिया ने अपनी ओर सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पूनिया ने पहले ही कहा है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने जो ज़िम्मेदारी दी है उसी का निर्वहन कर रहा हंू। प्राप्त जानकार के अनुसार जयपुर में अपने स्वागत और फिर कार्यसमिति की बैठक की तैयारियों को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने भी पूनिया की पीठ थपथपाई है। राजस्थान में पूर्व सीएम राजे के समर्थकों की गतिविधियों को देखते हुए ही नड्डा ने कहा कि किसी नेता के अकेले चलने का कोई महत्व नहीं है। किसी नेता ने पार्टी के लिए क्या किया, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि अब आपकी वजह से पार्टी को क्या फायदा हो रहा है। पार्टी की कार्यकर्ता को नेता बनाती है। किसी नेता को यह नहीं समझना चाहिए कि पार्टी उसकी वजह से है। जानकार सूत्रों के अनुसार दो मार्च को प्रदेश कार्य समिति की बैठक में पांच सत्र हुए, लेकिन किसी सत्र में पूर्व सीएम राजे का संबोधन नहीं हुआ। सूत्रों के अनुसार राजे से भी संबोधन का आग्रह किया था, लेकिन राजे ने स्वयं ने ही संबोधन से इंकार कर दिया, इसलिए बैठक के प्रोग्राम में किसी भी सत्र में राजे का नाम नहीं लिखा गया। सूत्रों अनुसार दो मार्च को राष्ट्रीय अध्यक्ष के आग मन पर भले ही राजे ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी हो, लेकिन राजे अभी भी मन से भाजपा के साथ नहीं है। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने मीडिया के सामने वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया का एक साथ हाथ ऊंचा करवाया, लेकिन राजे के चेहरे के भाव से जाहिर था कि वे संतुष्ट नहीं है। सतीश पूनिया के साथ हाथ ऊंचा कर लेने से राजे खुश नहीं होएंगी। राजे के समर्थक लगातार मांग कर रहे हैं कि प्रदेश भाजपा का नेतृत्व राजे को सौंपा जाएं। यह बात अलग है कि वर्ष 2018 में राजे के नेतृत्व में ही भाजपा को विधानसभा चुनाव में हार मिली थी। यदि तब राजे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाता तो भाजपा की हार नहीं होती। राजे को लेकर लोगों में ज्यादा नाराज़गी थी। इसका ख़ामियाज़ा भाजपा को उठाना पड़ा। विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी राष्ट्रीय नेतृत्व ने सम्मान देते हुए राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया, लेकिन राजे की रुचि प्रदेश की राजनीति में ही है। यही वजह है कि राजे भाजपा में असंतुष्ट गतिविधियों को हवा दे रही हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-03-2021)
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