जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला का बयान देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता है-सुप्रीम कोर्ट। विपक्ष और अवार्ड लौटाने वाले कलाकार बताएं कि अभिव्यक्ति की आजादी और कितनी चाहिए।
फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप, अभिनेत्री तापसी पन्नू और निर्माता विकास बहल पर 3 मार्च को जब टैक्स चोरी के आरोप में आयकर विभाग ने जांच पड़ताल की तो विपक्षी नेताओं और अवार्ड लौटाने की धमकी देने वाले कलाकारों ने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रही है। चूंकि अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू ने किसान आंदोलन का समर्थन किया था, इसलिए आयकर विभाग के माध्यम से बोलने की आजादी पर अंकुश लगवाया जा रहा है। किसी टैक्स चोर पर कार्यवाही होने से अभिव्यक्ति की आजादी कैसे जुड़ जाती है यह तो आरोप लगाने वाले ही बताएं, लेकिन इसे हमारे देश के लोकतंत्र की मजबूती ही कहा जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के बयान भी देशद्रोह की श्रेणी में नजर नहीं आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने 3 मार्च को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें फारुख अब्दुल्ला पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने के आदेश देने की मांग की गई थी। न्यायाधीश कौल ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सका कि फारुख अब्दुल्ला का बयान देशद्रोह के दायरे में आता है। न्यायाधीश कौल ने न केवल याचिका को खारिज किया, बल्कि याचिका दायर करने वाले संस्था पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू जैसे कलाकारों ने तो सिर्फ किसान आंदोलन का समर्थन किया था, जबकि फारुख अब्दुल्ला तो जम्मू कश्मीर में अलगावादियों के समर्थक रहे हैं। अब्दुल्ला कई बार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की मध्यस्थता की बात कह चुके हैं। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने पर चीन को लेकर भी अब्दुल्ला ने विवादित बयान दिया। फारुख अब्दुल्ला पाकिस्तान में बैठे उन कट्टरपंथियों के समर्थक भी है जो कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में आतंकी वारदातें करवाते हैं। जब फारुख अब्दुल्ला को बोलने की इतनी आजादी है तो फिर अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू वाले बयान क्या मायने रखते हैं? जिन लोगों ने 26 जनवरी को लाल किले पर तिरंगे का अपमान किया और दिल्ली में 400 पुलिस वालों को जख्मी कर दिया, उन उपद्रवियों के समर्थन में भी विपक्ष के नेता खड़े हुए हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने तो दिल्ली हिंसा के आरोपियों के मुकदमे लडऩे की बात तक कही है। देश के प्रधानमंत्री के लिए खुले आम अपशब्द कहे जाते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री की बुजुर्ग माता जी के बारे में भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। यह भारत का लोकतंत्र ही है ऐसे देश विरोधी बयानों को न्यूज चैनलों पर भी प्रसारित किया जाता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जब टैक्स चोरों पर कानूनी कार्यवाही होती है, तो उसे अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ दिया जाता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (04-03-2021)
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