ममता बनर्जी की तरह चंद्रबाबू नायडू ने भी विपक्ष की एकता का झंडा उठाया था। लेकिन अपने गृह प्रदेश आंध्र प्रदेश में ही बुरी तरह हार गए। नायडू जैसा हाल हो सकता है ममता का। ममता बनर्जी ने अब माना जगदीप धनकड़ को राज्यपाल।
कहावत है कि दीये में तेल कम होता है तब लौ तेजी से फड़फड़ाती है। ऐसी ही राजनीतिक फड़फड़ाहट वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू में देखी गई थी। राजनीति में रुचि रखने वालों को स्मरण होगा कि मई 2019 में लोकसभा के समय ही आंध्र विधानसभा के चुनाव भी हुए थे। तब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ नायडू के मन में जबर्दस्त गुस्सा था। चुनाव परिणाम आने से पहले ही नायडू दिल्ली पहंुंच गए तथा सोनिया गांधी से लेकर वामपंथी नेताओं तक से मुलाकात की। नायडू का प्रयास था कि भाजपा और मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट किया जाए, लेकिन आंध्र के परिणाम आने पर नायडू की सारी अकड़ धरी रह गई। 175 में से नायडू की तेलगू देशम पार्टी को मात्र 23 सीटों पर जीत मिली। जबकि प्रतिद्वंदी वाईएसआर को मात्र 151 सीटें मिली। आज चन्द्रबाबू राजनीति में किस स्तर पर खड़े हैं यह सबको पता है। इन दिनों पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा फड़फड़ाहट पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हो रही है। नायडू की तरह चुनाव परिणाम आने से पहले ही ममता भी विपक्ष के नेताओं को एकजुटता के लिए पत्र लिख दिया है। जो ममता बनर्जी कांग्रेस से बगावत कर बहार आई थीं, उन्हीं ममता को अब राहुल गांधी का नेतृत्व भी स्वीकार है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते अब ममता को भी देश में लोकतंत्र खतरे में नजर आता है। ममता चाहती है कि नरेंद्र मोदी को तत्काल प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया जाए। बंगाल के परिणाम भी दो मई को आंएगे, लेकिन ममता की राजनीति फड़फड़ाहट को देखकर लगता है कि जो हाल चन्द्रबाबू नायडू का हुआ, वैसा ही हाल ममता बनर्जी का होगा। ममता ने पिछले दस वर्षों से बंगाल के हालात उत्तर प्रदेश से भी बदतर कर दिए हैं। अब पश्चिम बंगाल की जनता चाहती है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने गुंडा तत्वों के जो हाल किए, वैसी ही हाल पश्चिम बंगाल में किए जाए, ताकि शरीफ लोग निर्भय होकर रह सके। ममता बनर्जी अब कितनी भी राजनीतिक चालें चल लें, लेकिन पश्चिम बंगाल की जनता ने अपना मन बना दिया है। बंगाल में बदलते हालातों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ममता को अब राज्यपाल जगदीप धनकड़ से गुहार लगानी पड़ रही है। धनकड़ पिछले दो वर्षों से बंगाल के राज्यपाल हैं, लेकिन घमंडी ममता ने कभी भी धनकड़ को राज्यपाल नहीं माना। ममता के अफसरों ने राज्यपाल की हैसियत से धनकड़ के समारोह तक नहीं होने दिए। धनकड़ राजभवन में बैठकर गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन ममता ने कोई परवाह नहीं की। लेकिन एक अप्रैल को ममता ने धनकड़ को फोन कर मदद मांगी। धनकड़ ने अपना संवैधानिक कर्त्तव्य निभाते हुए मदद भी की। एक अप्रैल को बंगाल के नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान हुआ है। ममता इसी क्षेत्र से टीएमसी की उम्मीदवार हैं। परिणाम आने से पहले ही ममता ने हार स्वीकार कर ली है। ममता का कहना है कि नंदीग्राम में 80 प्रतिशत मतदान फर्जी हुआ है। ममता का मुकाबला भाजपा के शुभेन्द्र अधिकारी से हैं। शुभेन्द्र ने पहले ही कहा था कि ममता को 50 हजार मतों से हराउंगा। लेकिन तब ममता ने शुभेन्द्र की घोषणा को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अब कह रही हैं कि नंदीग्राम में फर्जी मतदान हुआ है। सवाल उठता है कि ममता बनर्जी के रहते क्या फर्जी मतदान हो सकता है! सच्चाई यह है कि एक अप्रैल को मतदान वाले दिन भी ममता के समर्थकों ने शुभेन्द्र के काफिले पर पथराव किया। नंदीग्राम में फर्जी मतदान नहीं बल्कि केंद्रीय सुरक्षा बलों के रहते हुए हकीकत में फर्जी मतदान नहीं हुआ। ममता बनर्जी फर्जी मतदान की बात कह कर नंदीग्राम के मतदाताओं का अपमान कर रही है।
S.P.MITTAL BLOGGER (02-04-2021)
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