तो क्या अब सहाड़ा के उपचुनाव में लादूराम पितलिया के समर्थकों के वोट भाजपा को मिल जाएंगे? ऐसी धमकियों से तो राजस्थान में पूरी सरकार ही बच गई।

राजस्थान में सुजानगढ़ राजसमंद और सहाड़ा विधानसभा के उपचुनाव 17 अप्रैल को होने हैं। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा भीलवाड़ा जिले के सहाड़ा चुनाव की हो रही है। इसका कारण भाजपा के बागी उम्मीदवार लादूराम पितलिया का नामांकन वापस होना है। आरोप है कि पितलिया को डरा धमका कर नाम वापस करवाया गया है। अब जब नाम वापस हो ही गया है तो सवाल उठता है कि क्या पितलिया के समर्थक अब भाजपा के पक्ष में वोट देंगे? अधिकांश तौर पर निर्दलीय प्रत्याशियों की ज्यादा हैसियत नहीं होती है, लेकिन सहाड़ा में पितालिया का महत्व इसलिए है कि वर्ष 2018 में जब पितालिया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, तब उन्हें 30 हजार वोट मिले थे, तब चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कैलाश त्रिवेदी की जीत हुई थी। त्रिवेदी के निधन के बाद हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने उनकी पत्नी को ही उम्मीदवार बनाया है। 30 हजार वोटों को देखते हुए भाजपा ने पितलिया को पार्टी में शामिल कर लिया। तब पितलिया को भरोसा दिलाया गया कि अगली बार उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। पितालिया को यह सौदा अच्छा लगा, अब जब उप चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया तो पितलिया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया। भाजपा ने राजनीतिक तौर तरीके अपनाकर नाम वापस करवा दिया। स्वाभाविक है कि पितलिया गुस्से में है, ऐसे में क्या पितलिया के समर्थक भाजपा को वोट देंगे? पितलिया भले ही सहाड़ा से विधायक बनने का ख्वाब रखते हो, लेकिन उनका कारोबार कर्नाटक के बेंगलुरु में है। अपने पैसों के दम पर ही पितलिया ने गत बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। इस बार भी पितलिया को अपने पैसों पर भरोसा था, लेकिन बेंगलुरु में पितलिया के कारोबार पर संकट आ गया तो बेटे ने पिता का हाथ पकड़ कर नाम वापस करवा दिया। इसलिए यह जरूरी नहीं की पितालिया के समर्थक भाजपा को वोट दे भाजपा ने यहां से रतन लाल जाट को उम्मीदवार बनाया है।धमकियों से तो पूरी सरकार बच गई:कहा जा रहा है कि कर्नाटक में धमकियां दिलवाकर पितलिया का नाम वापस करवाया गया है। ऐसे आरोपों में सच्चाई भी हो सकती है, क्योंकि राजस्थान में गत वर्ष ऐसी धमकियों के चलते ही पूरी सरकार ही बच गई थी। गत वर्ष दो साधारण से व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर सत्तारूढ़ पार्टी और निर्दलीय विधायकों पर शिकंजा कसा गया। कोरोना की आड़ लेकर प्रदेश की सीमाएं सील कर दी गई। रातों-रात मुख्य सचिव बदल दिए गए। ऐसा माहौल बना दिया गया कि लोग सरकार का नाम लेने से भी डरने लगे , लेकिन बाद में उन्हीं 2 मुकदमों में एफआर लगा दी गई । यानी राजस्थान में तो धमकियों का खेल चलता ही रहता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो रोजाना केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर धमकाने का आरोप लगाते हैं। गहलोत का तो यह भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट भी दबाव में काम कर रहा है। राजस्थान में जब विधायकों पर राजद्रोह का मुकदमा हो सकता है तब पितालिया को धमकाने का मामला कोई खास नहीं है। राजनीति में ऐसी चालें चलती ही रहती हैं।

S.P.MITTAL BLOGGER (03-04-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 960201

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