कोरोना काल में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन कितना उचित? इधर कांग्रेस ने समर्थन दिया, उधर पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रदर्शन से सुपर स्प्रेडर की आशंका जताई। 26 मई को भारत बंद का भी आव्हान।
केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान संयुक्त मोर्चा ने 26 मई को देशभर में काला दिवस मनाने की घोषणा की है और भारत बंद का आव्हान भी। चूंकि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन को 26 मई को 6 माह पूरे हो रहे हैं, इसलिए किसानों ने नए सिरे से प्रदर्शन का ऐलान किया है। इसके लिए पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर जमा होने लगे हैं। कांग्रेस ने किसानों के प्रदर्शन और काला दिवस को एक बार फिर समर्थन देने की घोषणा की है। यानी 26 मई को दिल्ली की सीमाओं पर जब किसान प्रदर्शन करेंगे तो कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता भी उपस्थित रहेंगे। वहीं कांग्रेस शासित प्रदेश पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने किसानों से प्रदर्शन को टालने की अपील की है। उन्होंने आशंका जताई कि ऐसे प्रदर्शन से कोरोना का सुपर स्प्रेडर हो सकता है। किसानों के प्रदर्शन पर कांग्रेस कैसी राजनीति कर रही है यह तो कांग्रेस के नेता ही जाने, लेकिन सवाल उठता है कि जब देश में कोरोना की जबरदस्ती दूसरी लहर है और अभी भी प्रतिदिन ढाई लाख से भी ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं, तब क्या किसानों का प्रदर्शन और काल दिवस मनाना उचित है? सब जानते हैं कि जब लोग समूह के रूप में एकत्रित होते हैं, तब सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होता है और न ही लोग मास्क लगाते हैं। कोरोना काल में यदि हजारों लोग सोशल डिस्टेंसिंग की अवहेलना कर दिल्ली की सीमाओं पर एकत्रित होंगे तो भयावहता की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भीड़ में यदि दो चार किसान भी संक्रमित होंगे तो वे हजारों को संक्रमित कर सकते हैं। कोरोना की चैन को तोड़ने के लिए पंजाब से लेकर राजस्थान तक में लॉकडाउन लगा हुआ है। संक्रमण की चैन को तोड़ने के लिए एक और करोड़ों लोग अपने घरों में कैद हैं तो दूसरी ओर कुछ हजार लोग एक साथ सड़कों पर आकर संक्रमण को फैलने की दावत दे रहे हैं। सवाल यह भी उठता है कि क्या किसानों को कोरोना से डर नहीं लगता? जबकि पूरी दुनिया देख रही है कि कोरोना किसी से भी नहीं डर रहा हे। अब तो कोरोना का स्वरूप ब्लैक फंगस में बदल रहा है। कोरोना की वजह से हालात बहुत खराब हैं। यह माना कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन प्रदर्शनकारी जब संक्रमित होकर लौटेंगे तो उनके घर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मामले में केन्द्र सरकार को भी सकारात्मक पहल करनी चाहिए, क्योंकि यह प्रदर्शन देशवासियों के जीवन से भी जुड़ा है। पांच राज्यों के चुनाव में राजनीतिक दलों के नेताओं ने जो गलती की उसका परिणाम देश की जनता ने कोरोना की दूसरी लहर के रूप में भुगतान हे। किसान संयुक्त मोर्चा को देशहित में अपने प्रदर्शन पर पुनर्विचार करना चाहिए। S.P.MITTAL BLOGGER (24-05-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9602016852To Contact- 9829
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