तालिबान के कब्जे से जब रूस, चीन और पाकिस्तान खुश है तथा बांग्लादेश चुप है, तब अफगानिस्तान में भारत अपनी सेना क्यों भेजे? अफगानिस्तान में सेना भेजने का मतलब है पाकिस्तान और चीन से लडऩा। अफगानिस्तान के हालात से भारत के नेताओं को सबसे ज्यादा सबक लेने की जरुरत। राजदूत और दूतावास के कर्मचारी काबुल से सकुशल लौटे। भारत अफगानिस्तान में अपने प्रोजेक्ट पूरे करे -तालिबान।
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत में रहने वाले कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय सेना को भेज कर अफगान नागरिकों खासकर महिलाओं को तालिबान के जुल्मों से बचाया जाए। यह सही है कि दुनिया के किसी भी कोने में अत्याचार नहीं होना चाहिए, लेकिन अफगानिस्तान में भारतीय सेना को भेजने की मांग करने वालों को यह समझना चाहिए कि तालिबान के साथ रूस, पाकिस्तान और चीन खड़ा है तथा मुस्लिम राष्ट्र बांग्लादेश तटस्थ बना हुआ है। तालिबान की सरकार को सबसे पहले यही देश मान्यता देंगे। ऐसे में यदि भारतीय सेना को भेजा जाता है तो अफगानिस्तान में हमें चीन और पाकिस्तान से लड़ना पड़ेगा। भारत का कोई भी नागरिक नहीं चाहेगा कि हम दूसरे देश में जाकर चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र से लड़े। हम लद्दाख सीमा पर चीन से और कश्मीर में पाकिस्तान के साथ पहले ही संघर्ष कर रहे हैं। सब जानते हैं कि तालिबानी लड़ाकों में सबसे ज्यादा युवा पाकिस्तान के ही हैं। कब्जे से पहले तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला अब्दुल बरादर ने चीन पहुंच कर सैन्य अधिकारियों से मुलाकात की थी। चीन और पाकिस्तान का साथ होने के कारण ही तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हो पाया है। असल में अफगानिस्तान से अमरीका को भगाने के लिए रूस, चीन और पाकिस्तान से साझा रणनीति बनाई। अब यही रणनीति मजबूती के साथ तालिबान के साथ खड़ी है। यदि तालिबान बेगुनाह अफगान नागरिकों खासकर महिलाओं के साथ जुल्म कर रहा है तो सबसे पहली जिम्मेदारी पाकिस्तान और चीन की है। सवाल यह भी है कि तालिबानियों से जब महा शक्तिशाली देश अमरीका ही हार गया तब भारत की क्या स्थिति है? सब जानते हैं कि पिछले 20 वर्षों में करीब ढाई हजार अमेरिकी सैनिक शहीद हुए तथा 60 हजार अफगानी सैनिक मारे गए। लाखों की संख्या में तालिबान भी मौत के घाट उतारे गए, लेकिन फिर भी तालिबानी सोच जिंदा रही और आज इसी सोच के लोगों ने अमरीका को भगाकर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। आखिर कब्जा करने वाले भी इस्लाम को मानने वाले हैं। इस्लाम में तो जरूरतमंदों की मदद और महिलाओं के सम्मान की शिक्षा दी गई है। उम्मीद है कि तालिबान भी इस्लाम की शिक्षाओं का अनुसरण करेगा। अफगानिस्तान में जिस प्रकार बिना संघर्ष के तालिबान ने कब्जा कर लिया है उसी प्रकार उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात सामान्य होंगे। सवाल यह भी है कि जब 75 हजार तालिबानी लड़ाकों से साढ़े तीन लाख सैनिक ही नहीं लड़े तो फिर भारतीय सेना अफगानिस्तान क्यों जाए? 20 साल तक अमरीका से प्रशिक्षित होने के बाद जिस बुजदिली से अफगान सैनिकों ने सरेंडर किया, उसे इतिहास याद रखेगा। वामपंथी विचारधारा के हमारे फिल्मकार और लेखक फिल्मों में अफगानी पठानों की छवि ताकतवर व्यक्तियों के तौर पर प्रस्तुत करते रहे, लेकिन आज वही पठान अपने ही देश में कुछ लड़ाकों से हार गए। ऐसे लेखकों और फिल्मकारों ने भी भारत की सनातन संस्कृति को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। अफगानिस्तान के हालात से सबसे ज्यादा सबक भारतीय नेताओं को लेना चाहिए। जिन लोगों ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर आए हिंदुओं को अपने ही देश में नागरिकता देने का विरोध किया, अब वे बताएं कि अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाके किस पर जुल्म कर रहे हैं।सकुशल वापसी:काबुल में भारतीय राजदूत आर टंडन, दूतावास के कर्मचारी आईटीबीपी के जवान और अन्य भारतीय 17 अगस्त को सकुशल अपने देश लौट आए हैं। एयरफोर्स के विशेष विमान से 150 सदस्यों का दल गुजरात के जामनगर एयरपोर्ट पर पहुंचा। राजदूत आर टंडन ने कहा कि अफगानिस्तान पर पूरी तरह तालिबान का कब्जा हो चुका है। ऐसे हालातों पर भारत सरकार की नजर लगी हुई है। अफगानिस्तान में अभी भी भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं। ऐसे लोगों को सकुशल वापस लाने के प्रयास हो रहे हैं।भारत अपने प्रोजेक्ट पूरे करे:तालिबान की ओर से कहा गया है कि भारतीय मूल के लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत सरकार ने डवलपमेंट के जो प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में शुरू कर रखे हैं उन्हें पूरा किया जाए। तालिबान इन प्रोजेक्टों को पूरा करने में सहयोग देगा। S.P.MITTAL BLOGGER (17-08-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511