सचिन पायलट के विवाद को अब अशोक गहलोत ही निपटाएं। भले ही गहलोत, सरकार टिकाए रखने में सक्षम हों, लेकिन दो वर्ष बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पायलट की जरूरत होगी।

कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद पंजाब में कांग्रेस की जो फजीहत हो रही है, उसे देखते हुए कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में दखलंदाजी अथवा दबाव के कोई प्रयास नहीं करेगा। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के 25 विधायक पहले ही दिल्ली में डेरा डाल कर बैठे हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने मोर्चा खोल रखा है। कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार के खिलाफ कांग्रेस के अंदर ही जी-23 समूह सक्रिय हो गया है। राजस्थान भाजपा में जब तक पूर्व सीएम वसुंधरा राजे संतुष्ट नहीं होंगी, तब तक वैसे भी कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है। सीएम गहलोत को महात्मा गांधी का अनुयायी माना जाता है, इसलिए गहलोत सरकार ने 2 अक्टूबर से प्रशासन शहरों और गांवों के संग अभियान चला कर आम लोगों को राहत देने के प्रयास किए हैं। महात्मा गांधी नफरत और द्वेषता के साथ खिलाफ थे। वे दुश्मन का दिल भी प्यार मोहब्बत से जीतना चाहते थे। महात्मा गांधी के ऐसे विचारों का असर ही अशोक गहलोत पर पड़ा है। ऐसे में गांधी परिवार को संकट से उबारने और कांग्रेस को मजबूती देने का दायित्व भी गहलोत पर है। यह सही है कि अशोक गहलोत अपनी सरकार को अगले दो वर्ष तक चला सके हैं। लेकिन दो वर्ष बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सचिन पायलट जैसे कद्दावर नेता की जरूरत पड़ेगी। सब जानते हैं कि पिछले चुनाव में पायलट ने जो मेहनत की उसी का परिणाम रहा कि कांग्रेस सत्ता में आई। पूरे प्रदेश में भाजपा का एक भी गुर्जर उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। ऐसे में पायलट की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जहां तक गत वर्ष पायलट का 18 विधायकों को लेकर दिल्ली जाने का सवाल है तो उसका राजनीतिक हिसाब गहलोत ने पिछले एक वर्ष में चुकता कर दिया है। इस एक वर्ष में पायलट और उनके समर्थक 18 विधायकों को राजनीतिक दृष्टि से अपमानित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। लेकिन इसके बावजूद भी पायलट ने धैर्य बनाए रखा है, लेकिन अब पायलट का विवाद अशोक गहलोत को ही निपटाना है। यदि गहलोत महात्मा गांधी के सिद्धांतों का अनुसरण कर पायलट को बुलाकर संवाद करते हैं तो सबसे ज्यादा दिल्ली में गांधी परिवार के सदस्यों को मिली। गहलोत और पायलट के बीच अब कोई बड़ा विवाद भी नहीं है। मुख्यमंत्री की कमान गहलोत के पास ही रहेगी। गहलोत यदि आगे चलकर सम्मानपूर्वक पायलट को बुलाते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। बदली हुई परिस्थितियों में पायलट में भी बड़ा बदलाव आया है। मध्यस्थता के लिए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को शामिल किया जा सकता है। यदि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में एकजुटता नहीं होती है तो फिर 2013 के परिणाम 2023 में भी सामने आ सकते हैं। राजस्थान में कांग्रेस का भविष्य अब अशोक गहलोत के हाथ में ही है। सत्ता की वजह से गहलोत को अपनी स्थिति अभी मजबूत दिखती है, लेकिन जब सत्ता चली जाती है, तब स्थिति का सही आकलन होता है। गहलोत सभी दौर से गुजरे हैं। विधायकों खासकर बसपा और निर्दलीय विधायकों को किस प्रकार राजी कर रखा है, यह गहलोत अच्छी तरह जानते हैं। सरकार चलाने की मजबूरी है कि मंत्रियों पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। मंत्रियों का घमंड सातवें आसमान पर है। समर्थन देने वाले विधायकों और मंत्रियों के घमंड का खामियाजा कांग्रेस को चुनाव में उठाना पड़ेगा। अब देखना होगा कि गहलोत किस तरह हालातों को संभालते हैं।S.P.MITTAL BLOGGER (02-10-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511

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