गुजरात दंगों के झूठ पर नरेंद्र मोदी ने शिव की तरह विष पिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने दंगों के सच पर मोहर लगा दी है। गोधरा में जब ट्रेन में आग लगाकर 60 यात्रियों को जिंदा जला दिया, तब प्रतिक्रिया में हिंसा हुई। लेकिन इस जन आक्रोश को रोकने में गुजरात सरकार ने भरसक प्रयास किया। गुजरात दंगों पर आरोप लगाने वालों पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का तीखा हमला।

25 जून को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के मद्देनजर उन राजनीतिक दलों, स्वयंसेवी संगठनों और मीडिया घरानों पर जमकर हमला बोला, उन्होंने एक साजिश के तहत तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम किया। शाह ने कहा कि आज जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम निर्णय दे दिया है, तब वे इस मुद्दे पर बोल रहे हैं। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह माना कि दंगे राज्य सरकार द्वारा प्रेरित नहीं थे। उल्टे राज्य सरकार ने दंगों को रोकने के लिए समुचित और प्रभावी कदम उठाए। जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट पर अपनी याचिका में जो सवाल उठाए उन सवालों का जवाब भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता के साथ दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह याचिका झूठ को बनाए रखने के लिए है। अमित शाह ने कहा कि गुजरात दंगों की आड़ में नरेंद्र मोदी को 20 वर्षों तक कटघरे में खड़ा रखा गया। लेकिन अब सच सबके सामने आ गया है। नरेंद्र मोदी ने शिव की तरह विष पिया, लेकिन अब उनके पास सोने की तरह चमक है। अमित शाह ने कहा कि सच तो यह है कि गोधरा में ट्रेन में आग लगाकर चालीस यात्रियों को जिंदा जला दिया गया। तब प्रतिक्रिया स्वरूप जनआक्रोश सामने आया। इस जन आक्रोश को नियंत्रित करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जो भी कर सकते थे वो किया। यहां तक की सेना की मदद भी मांगी गई। यह कहना पूरी तरह गलत है, पुलिस फायरिंग में सिर्फ मुसलमान ही मारे गए। पुलिस फायरिंग में अन्य धर्मों के लोग भी मारे गए। सब जानते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ और उसके एनजीओ ने गुजरात के शहरों में झूठी एफआईआर दर्ज कराई। झूठ को बढ़ावा देने में तीस्ता और उसके एनजीओ की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। तीस्ता एक सामाजिक कार्यकर्ता बन कर किसके इशारे पर कार्यवाही कर रही थी, यह सब को पता है। तीस्ता के एनजीओ को उस समय केंद्र सरकार से भारी अनुदान मिला। गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग ने भी तब की राज्य सरकार को क्लीन चिट दी। इसके बाद गठित एसआईटी ने भी माना कि दंगे राज्य सरकार द्वारा प्रेरित नहीं थे। शाह ने कहा कि इस एसआईटी में गुजरात पुलिस के अधिकारी नहीं थे। बल्कि दूसरे राज्यों के अधिकारियों को शामिल किया गया। जिला अदालत ने भी एसआईटी की रिपोर्ट को सही माना लेकिन फिर भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने भी एसआईटी की रिपोर्ट पर मोहर लगाई, लेकिन कांग्रेस के सांसद की पत्नी जाकिया जाफरी ने एक बार फिर एसआईटी की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं जाकिया जाफरी पर तो कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन जिन राजनीतिक दलों, एनजीओ और मीडिया घरानों ने 20 वर्षों तक झूठ को चलाए रखा उन्हें अब जवाब देना चाहिए। शाह ने कहा कि ऐसे लोगों को अब सार्वजनिक तौर पर क्षमा याचना करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब एसआईटी के अधिकारियों ने लगातार कई घंटों तक पूछताछ की। लेकिन मोदी ने कभी भी अपने कार्यकर्ताओं को धरना प्रदर्शन किए गए नहीं उकसाया और न ही पूछताछ के दौरान कोई आपत्ति दर्ज करवाई। लेकिन पिछले दिनों राहुल गांधी से जब ईडी ने पूछताछ की तो कांग्रेस ने कितनी नाटकबाजी की इसे पूरे देश ने देखा। अमित शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के बाद अब गुजरात दंगों का झूठ समाप्त हो जाना चाहिए। मैंने पिछले 20 वर्षों में नरेंद्र मोदी के उस दर्द को भी देखा है जो उन्होंने कई अवसरों पर सहन किया। एक निर्दोष व्यक्ति को बेवजह तंग किया जाता रहा। लेकिन मोदी ने पिछले बीस वर्षों में झूठे आरोपों पर कभी संयम नहीं खोया। इतना ही नहीं मोदी जब विदेश दौरे पर जाते तब संबंधित देश के अखबारों में मोदी विरोधी आर्टिकल छपवाए जाते थे। सुप्रीम कोर्ट में भी वकील कपिल सिब्बल ने झूठ को बनाए रखने के लिए बहुत से तर्क दिए, लेकिन मुझे संतोष है कि सुप्रीम कोर्ट ने उस एसआईटी की रिपोर्ट को सही माना तो तथ्यों पर आधारित है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (25-06-2022)
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