सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए ममता बनर्जी से संघर्ष करने के कारण जगदीप धनखड़ को एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। चुनाव तीना तय। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र सबक ले सकते हैं। जो अशोक गहलोत दिन भर मोदी-शाह को कोसते हैं, उन्हीं से अपनी पुस्तक का विमोचन करवाते हैं मिश्र।
अजमेर में मेरे जैसे कई लो मिल जाएंगे जो यह कह सकते हैं कि देश के भावी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से सीधी पहचान है। धनखड़ ने 1991 में अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1993 में धनखड़ अजमेर जिले के किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। यानी धनखड़ का अजमेर के लोगों से सीधा संबंध रहा है। अब जब धनखड़ को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन ने उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है, तब अजमेर में भी उत्साह का माहौल है। मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि राजस्थान में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने धनखड़ को उम्मीदवार बनाया है। यानी राजस्थान के जाट समुदाय के मतदाता भाजपा को वोट देंगे। धनखड़ जाट समुदाय के हैं। धनखड़ को किसी जाति का प्रतीक मानना उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा। असल में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद पर रहते हुए धनखड़ ने सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ जो संघर्ष किया, उसी का परिणाम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सहयोगी दलों के नेताओं ने धनखड़ को देश का उपराष्ट्रपति बनाने का निर्णय लिया। सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में गत वर्ष किन हालातों में ममता बनर्जी ने विधानसभा का चुनाव जीता। इस जीत के बाद बंगाल में कितनी मार काट मची , यह किसी से छिपा नहीं है। हिन्दुओं की बस्तियों में आग लगाना लोगों का नरसंहार किया गया। तब धनखड़ ने राजभवन से बाहर निकल सनातनियों की हिम्मत बधाई। राज्यपाल के पद पर रहते हुए धनखड़ ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था नहीं रही है। हालात इतने बिगड़े कि खुद धनखड़ की जान को खतरा हो गया। कई बार ऐसे मौके आए जब आक्रमणकारियों ने धनखड़ को घेर लिया। और कोई राज्यपाल होता तो कोलकाता का राजभवन छोड़कर दिल्ली भाग आता। जगदीप धनखड़ ने पश्चिम बंगाल में रहकर ही आक्रमणकारियों से संघर्ष किया। यदि धनखड़ जैसा धाकड़ राज्यपाल नहीं होता तो पश्चिम बंगाल में सनातनियों की ज्यादा हत्याएं होती। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने धनखड़ के हौसले पस्त करने के लिए हर हथकंडा अपनाया, लेकिन धनखड़ ने हिम्मत नहीं हारी। सनातन धर्म की रक्षा करने वाला कोई व्यक्ति यदि भारत का उपराष्ट्रपति बनता है तो यह देश के लिए गर्व की बात है। कहा जा सकता है कि जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन भावनाओं के अनुरूप निर्णय लिया है। उपराष्ट्रपति सरकारी बंगले तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसे राज्यसभा का संचालन भी करना होता है। मौजूदा समय में राज्यसभा में संयुक्त विपक्ष के मुकाबले में एनडीए के सांसदों की संख्या कम है। ऐसे में राज्यसभा को सुचारू चलाना चुनौतीपूर्ण काम है। जहां तक धनखड़ की जीत का सवाल है तो इसमें कोई संदेह नहीं है। लोकसभा में 545 में से एनडीए के 250 सांसद हैं। 100 सांसद राज्यसभा में है। ऐसे में धनखड़ की जीत तय है।
मिश्र ले सकते हैं सबक:
धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र सबक ले सकते हैं। एक और जगदीप धनखड़ जैसे राज्यपाल हैं जो सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए ममता बनर्जी से संघर्ष करते रहे तो दूसरी तरफ कलराज मिश्र जैसे राज्यपाल हैं जो मोदी शाह को कोसने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अच्छा राज्यपाल होने का सर्टिफिकेट लेने में लगे हैं। गहलोत जैसे मुख्यमंत्री से अपनी प्रशंसा करवाने के लिए कलराज मिश्र ने अपनी पुस्तक का विमोचन भी करवाया। दिनभर मोदी शाह को कोसने वाले अशोक गहलोत ने कई अवसरों पर राज्यपाल मिश्र की प्रशंसा की है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्त करने का अधिकार राज्यपाल से छीन लिया, जबकि कलराज मिश्र इस बात से खुश रहे कि उत्तर प्रदेश के कुछ चहेते शिक्षाविदों को राजस्थान में कुलपति बनाने की सिफारिश सीएम गहलोत ने कर दी। ममता बनर्जी ने तो धनखड़ को सरकारी प्लेन की सुविधा भी बंद कर दी, जबकि राजस्थान सरकार का प्लेन हमेशा मिश्र की सेवा में रहता है। मिश्र चाहे जितनी बार अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश जाएं कोई पूछने वाला नहीं है। सनातन धर्म की रक्षा करने की जरुरत तो राजस्थान में भी है, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र तो अशोक गहलोत द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही सुख सुविधाओं में ही आनंदित है। मिश्र राज्यपाल के साधारण अधिकारों का भी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (17-07-2022)
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