राहुल गांधी की री-लॉन्चिंग में अशोक गहलोत कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। गहलोत को उम्मीद है कि राहुल गांधी को अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह सफलता मिलेगी।

4 सितंबर को दिल्ली में हुई कांग्रेस की महंगाई विरोधी रैली में गांधी परिवार के सलाहकार और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को संबोधित करते हुए कहा, राहुल जी मुझे आज देश में 1978 जैसा माहौल नजर आ रहा है। आप नेतृत्व करे, पूरा देश आपके साथ है। राजनीति के जानकारों को पता होगा कि 1975 में प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। आपातकाल में जो जादतियां हुई उसका का परिणाम रहा कि 1977 में संयुक्त विपक्ष की सरकार बनी, लेकिन विपक्ष के अंतर विरोध के कारण सरकार ढाई वर्ष में ही गिर गई। 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बनी। ढाई साल की अवधि में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी भी हुई। कांग्रेस सरकार के शासन में हुई जादतियों के लिए जांच आयोग का गठन भी किया गया। लेकिन इन सबसे कांग्रेस और इंदिरा गांधी को ही फायदा हुआ। गहलोत को लगता है कि 1978 फायदा राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को मिल सकता है। गहलोत का इशारा नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ की ओर था। 1978 में जो समर्थन इंदिरा गांधी को मिला वैसा 2022 में कांग्रेस को मिलेगा या नहीं इसका पता इसी वर्ष गुजरात और हिमाचल में होने वाले विधानसभा चुनाव में चल जाएगा। लेकिन अशोक गहलोत अपनी ओर से राहुल गांधी की री लाँचिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि राजनीति में राहुल गांधी की लाँचिंग कई बार हो चुकी है, लेकिन कांग्रेस को चुनाव में लगातार हार मिल रही है। चूंकि इन दिनों गहलोत गांधी परिवार के मुख्य सलाहकार बने हुए हैं, इसलिए एक बार फिर से राहुल गांधी की लॉन्चिंग की जा रही है। 4 सितंबर की रैली को सफल बनाने के लिए गहलोत 3 सितंबर को ही दिल्ली पहुंच गए। रैली में राहुल गांधी की हौसला अफजाई करने के बाद गहलोत सीधे अहमदाबाद आ गए। 5 सितंबर को राहुल गांधी ने अहमदाबाद में गुजरात चुनाव के मद्देनजर बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से जो संवाद किया उस कार्यक्रम की तैयारी भी गहलोत के दिशा निर्देशन में हुई। यह बात अलग है कि राहुल गांधी के आने से एक दिन पहले ही विश्वनाथ सिंह बाघेला ने गुजरात यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। गहलोत की योजना के मुताबिक ही राहुल गांधी 7 सितंबर से भारत जोड़ों यात्रा शुरू कर रहे हैं। यानी जब यह यात्रा शुरू होगी, तब गहलोत भी उपस्थित रहेंगे। इससे पहले भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान गहलोत ने ही दिल्ली में रहकर मोर्चा संभाल रखा था। गहलोत की पहल पर ही दो माह पहले उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर भी हुआ। गहलोत को लगता है कि इस बार जो रणनीति बना रहे हैं उससे कांग्रेस को फायदा होगा और राहुल गांधी एक मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आएंगे। वहीं कांग्रेस की राजनीति के जानकारों का मानना है कि अशोक गहलोत इतनी मशक्कत इसलिए कर रहे हैं, ताकि उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष न बनना पड़े। हालांकि अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर कार्यक्रम घोषित हो गया है, लेकिन राहुल गांधी ने अभी तक भी अध्यक्ष बनने पर सहमति नहीं दी है। जानकारों का मानना है कि यदि राहुल गांधी अपनी जिद पर अड़े रहे तो गहलोत को ही कांग्रेस का अध्यक्ष बनना पड़ेगा। यही वजह है कि गहलोत लगातार कार्यक्रम आयोजित कर राहुल गांधी की हौसला अफजाई कर रहे हैं। राहुल गांधी को यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह संघर्ष कर एक दिन देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे। गहलोत अपने मंसूबों में कितने कामयाब होते हैं यह आना वाला समय ही बताएगा, लेकिन 1978 और 2022 के माहौल में रात-दिन का अंतर है। उस समय विपक्ष में ऐसा कोई राजनीतिक दल नहीं था, जिसकी स्वीकार्यता राष्ट्रीय स्तर पर हो, जबकि आज 2022 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की स्वीकार्यता पूरे देश में है। देश के 12 राज्यों में भाजपा की सरकार है और मोदी के नेतृत्व में जो केंद्र सरकार चल रही है उसकी ख्याति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी है। 545 में से 303 सांसद भाजपा के हैं। जबकि कांग्रेस के सांसदों की संख्या मात्र 52 है और देश के दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य में 403 विधायकों में से कांग्रेस के मात्र 3 विधायक है। पश्चिम बंगाल जैसे सीमावर्ती राज्य में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। ऐसी स्थिति कांग्रेस के कई राज्यों में है। कांग्रेस के वोट बैंक पर क्षेत्रीय दलों ने कब्जा कर लिया है। हालत इतनी खराब है कि गुजरात में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से संघर्ष करना पड़ रहा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (05-09-2022)
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