राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अभी भी कांग्रेस में बगावत का डर है। विधानसभा के सातवें सत्र को बंद नहीं करने का यही कारण बताया। केंद्र सरकार की साजिश में राज्यपाल कलराज मिश्र को भी शामिल बताया। विधायक सुरेश रावत की गाय भाग गई।
जुलाई 2020 में सचिन पायलट के नेतृत्व में राजस्थान कांग्रेस में जो बगावत हुई थी, वैसी ही बगावत का डर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब भी है। गहलोत का कहना है कि मौका मिलते ही केंद्र सरकार, मेरी सरकार को गिरा देगी, इसलिए मैं अब केंद्र सरकार को कोई मौका नहीं देना चाहता हंू। 15वीं विधानसभा के सातवें सत्र (मानसूत्र सत्र) को समाप्त (बंद सत्रावसान) नहीं करने की रणनीति के पीछे भी यही बात रही है। मालूम हो कि विधानसभा का सत्र 19 सितंबर से ही शुरू हुआ है। इस सत्र के लिए सरकार ने राज्यपाल कलराज मिश्र से अनुमति नहीं ली, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने सातवें सत्र को समाप्त करने की घोषणा नहीं की, इसलिए 19 सितंबर से शुरू हुई विधानसभा की कार्यवाही को सातवें सत्र का दूसरा चरण माना गया। पूर्व में यदि सातवें सत्र का सत्रावसान (समाप्त) कर दिया जाता तो अब विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल की अनुमति लेनी होती। सीएम गहलोत ने कहा कि राज्यपाल पर केंद्र सरकार का दबाव है। इसलिए वे विधानसभा का सत्र बुलाने की अनुमति नहीं देते। जो जुलाई 2020 में जब सियासी संकट हुआ था, तब भी राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने में विलंब किया। तब हमने सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल को मजबूर किया। गहलोत ने कहा कि केंद्र सरकार की राज्य सरकारों को गिराने की नीति अभी भी चल रही है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में इसी तरह सरकार गिराई गई। हाल ही में ऐसा प्रयास झारखंड में भी किया गया। मैं नहीं चाहता कि मेरी सरकार पर दोबारा से कोई संकट आए। हमने संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही विधानसभा के सातवें सत्र को निरंतर जारी रखा है। हालांकि इससे हमें नुकसान ही हुआ है। हम कई बिल इस सत्र में नहीं ला पा रहे हैं। गहलोत ने जिस अंदाज में 19 सितंबर को यह बातें कहीं उस से प्रतीत होता है कि गहलोत को कांग्रेस विधायकों में बगावत का डर अभी भी बना हुआ है। सवाल उठता है कि यदि विधायकों में बगावत का डर न होता तो राज्यपाल क्या कर सकते थे। राज्यपाल यदि विलंब से सत्र बुलाते हैं तो कांग्रेस की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है? फर्क तो पड़ेगा जब विधायकों में फूट की आशंका हो। गहलोत की सरकार तभी गिरेगी जब कांग्रेस के विधायक बगावत करें। सवाल उठता है कि मौजूदा समय में गहलोत को कांग्रेस में बगावत का डर क्यों हैं? जबकि अगस्त 2020 में दिल्ली से लौटने के बाद सचिन पायलट लगातार सीएम गहलोत के साथ खड़े हैं। पिछले दिनों राज्यसभा की तीन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत का मामला हो या फिर हाल ही में राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव। सभी में पायलट ने पूरा सहयोग किया है। मौजूदा समय में पायलट और उनके समर्थकों की ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है, जिसकी वजह से सरकार को खतरा हो। लेकिन इसके बावजूद भी गहलोत ने कांग्रेस में बगावत की आशंका जताई है। हो सकता है कि यह गहलोत की रणनीति का हिस्सा हो। यह सही है कि पिछले दिनों सचिन पायलट के समर्थक विधायकों ने पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की थी। लेकिन किसी भी विधायक ने बगावत की बात नहीं की।
रावत की गाय भाग गई:
19 सितंबर को जयपुर में विधानसभा के बाहर एक रोचक मामला देखने को मिला। अजमेर के पुष्कर के भाजपा विधायक सुरेश रावत अपने साथ एक गाय को भी ले गए। रावत गाय के साथ खड़े होकर जब मीडिया के समक्ष लम्पी स्किन डिजीज के बारे में बोल रहे थे, तभी गाय भाग गई। मीडिया कर्मियों ने अपने कैमरे रावत से हटा कर भागती गाय की ओर लगा दिए। हालांकि गाय को नियंत्रित करने के लिए रावत एक ग्रामीण युवक को भी अपने साथ लाए थे, लेकिन मीडिया के कैमरे देखकर गाय बिदक गई। रावत ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार की लापरवाही की वजह से प्रदेश में लम्पी रोग से गायों की मौत हो रही है।
S.P.MITTAL BLOGGER (19-09-2022)
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