अशोक गहलोत की बगावत से सदमे में है गांधी परिवार। भारत जोड़ों यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने केसी वेणुगोपाल को केरल से दिल्ली भेजा। राजस्थान के संकट पर अब सोनिया गांधी फैसला लेंगी। अधिकांश विधायक पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं-अजय माकन।

राजस्थान में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अशोक गहलोत ने जो खुली बगावत की है। उससे गांधी परिवार सदमे में है। भारत जोड़ों यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को केरल से दिल्ली भेज दिया है। विधायकों से रायशुमारी करने आए वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडग़े और प्रदेश प्रभारी अजय माकन को दिल्ली बुला लिया गया है। गहलोत की बगावत का सबसे ज्यादा सदमा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को लगा है। असल में गांधी परिवार में गहलोत की सबसे बड़ी समर्थक सोनिया गांधी ही थी। जानकार सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी को इस बात का मलाल है कि अशोक गहलोत ने अपने विधायकों का अलग गुट बना लिया है। गहलोत को तो हमेशा कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ माना गया। अच्छा होता कि गहलोत के समर्थक विधायक अपनी भावनाओं को पर्यवेक्षक खडग़े और अजय माकन के समक्ष व्यक्त करते 93 विधायकों के इस्तीफों की धमकी दिलवाकर गहलोत ने कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व को ही चुनौती देदी है। सवाल उठता है कि कपिल सिब्बल और अशोक गहलोत में क्या फर्क है। राज्यसभा का दोबारा सदस्य न बनाने पर सिब्बल ने कांग्रेस छोड़ दी। अब मर्जी का सीएम न बनाने पर गहलोत ने 93 विधायकों का अलग गुट बना लिया। सिब्बल तो कांग्रेस छोड़ कर चले गए, लेकिन गहलोत तो कांग्रेस में रह कर बगावत कर रहे हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार केरल में पदयात्रा कर रहे राहुल गांधी ने गहलोत की बगावत को गंभीरता से लिया है। हाल ही में गहलोत ने कोच्चि में जब राहुल गांधी से मुलाकात की, तभी राहुल गांधी ने नए मुख्यमंत्री के नाम के संकेत गहलोत को दे दिए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि  गहलोत तभी से अपना गुट बनाने में सक्रिय हो गए थे। 93 विधायकों को एकजुट करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन गहलोत ने कोच्चि से लौटने के दो दिन में 93 विधायकों को एकजुट कर दिया। राजनीति में ऐसा कार्य अशोक गहलोत जैसा नेता ही कर सकता है। असल में गहलोत चाहते थे कि नए मुख्यमंत्री का चयन कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद हो। लेकिन गहलोत को हाईकमान की ओर से निर्देश दिए गए की नामांकन के साथ ही वे मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दें। गहलोत को गांधी परिवार का यह निर्देश नागवार लगा। यही वजह रही कि सोनिया गांधी द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों को जयपुर में बेइज्जत होना पड़ा। गांधी परिवार को अशोक गहलोत से ऐसी उम्मीद नहीं थी, जब गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ी, तब भी उन्हें सत्ता का लालची बताया गया। खुद अशोक गहलोत ने बताया कि गुलाम नबी आजाद कितने समय तक केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। गहलोत ने कांग्रेस छोड़ने पर आजाद की जमकर आलोचना की, लेकिन आज वही अशोक गहलोत गांधी परिवार के सामने सीना तान कर खड़े हैं। गहलोत के समर्थक विधायक खुलेआम कह रहे कि हम गांधी परिवार के निर्णय से सहमत नहीं है। गहलोत की इस बगावत से जाहिर है कि अब कांग्रेस में वही लाग रहेंगे, जिन्हें सत्ता मिली हुई है। जिस प्रकार गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस में रह कर सत्ता का सुख भोगा उसी प्रकार अशोक गहलोत ने भी कांग्रेस में रहकर सत्ता का मजा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब जब गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा कर संगठन की जिम्मेदारी दी जा रही है तो उन्होंने खुली बगावत कर दी है। जब अशोक गहलोत जैसा नेता ही बगावत कर रहा है, तब गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल की बगावत बेमानी है।
पायलट के पक्ष में नहीं:
26 सितंबर को दिल्ली रवाना होने से पहले जयपुर में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने कहा कि राजस्थान के ताजा राजनीतिक संकट पर अब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ही फैसला लेंगी। उन्होंने कहा कि वे चाहते थे कि मुख्यमंत्री के बारे में कांग्रेस विधायकों की राय ली जाए। कांग्रेस के जो विधायक बैठक में नहीं आए उनसे संवाद किया जाएगा। माकन ने माना कि कांग्रेस के अधिकांश विधायक सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने हय भी कहा कि मुख्यमंत्री बनाने पर अभी किसी भी विधायक का नाम तय नहीं हुआ है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (26-09-2022)
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