अशोक गहलोत के करतबों के सामने लाचार हैं गांधी परिवार। मुख्यमंत्री के कथनों के मायने अशोक गहलोत ही जानते हैं। झूठ न बोलने को लेकर संविधान की शपथ ले रखी है।
2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर अशोक गहलोत ने जो कुछ भी कहा उससे जाहिर है कि अब वे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। कमजोर हो चुके गांधी परिवार में अब इतनी हिम्मत नहीं कि वह गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहे। गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने की लाचारी साफ नजर आ रही है। एक अक्टूबर को बीकानेर में गहलोत ने कहा था कि उनके कथनों के मायने होते हैं। सही भी है कि गहलोत मुख्यमंत्री होने के नाते संवैधानिक पद पर बैठे हैं। अशोक गहलोत ने झूठ न बोलने की शपथ भी ले रखी है। गहलोत महात्मा गांधी के अनुयायी हैं और महात्मा गांधी को सत्य अहिंसा का पुजारी माना जाता है। स्वभाविक है कि आप जिस व्यक्ति के अनुयायी होते हैं, उनके विचारों को भी अपनाते हैं। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर गहलोत ने कहा कि 25 सितंबर को कांग्रेस के जो दो पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खडग़े और अजय माकन जयपुर आए थे, उन्हें राजस्थान के 102 कांग्रेसी विधायकों का भी ख्याल रखना चाहिए था। गहलोत यह बात अब सात दिन बाद कह रहे हैं, जबकि 29 सितंबर को गहलोत ने दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कहा कि कांग्रेस की परंपरा के अनुरूप विधायक दल की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पास (मुख्यमंत्री का फैसला हाईकमान करेगा) नहीं हो सका, इसके लिए मैं जिम्मेदार हंू। नैतिकता के नाते अब मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी नहीं लडूंगा। 25 सितंबर की घटना के बाद लोग मुझे सत्ता का लालची समझ रहे हैं, इसलिए मेरे मुख्यमंत्री रहने या नहीं रहने पर निर्णय सोनिया गांधी करेंगी। गहलोत ने यहां तक कहा कि मैं तो सब कुछ छोड़ कर राहुल गांधी के साथ एक साधारण कार्यकर्ता की तरह पद यात्रा करना चाहता हंू। अपने पार्टी विरोधी कृत्य के लिए गहलोत ने सोनिया गांधी से माफी मांगने की बात भी कही। सोनिया गांधी से माफी मांगने की बात गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर 30 सितंबर को भी स्वीकार की। जिन अशोक गहलोत ने झूठ नहीं बोलने की शपथ ले रखी है, वे अशोक गहलोत बताएं कि 29 सितंबर वाला कथन सही है या फिर 2 अक्टूबर वाला? अशोक गहलोत के कथनों के मायने राजस्थान की जनता तो समझने में असमर्थ है। अपने कथनों के मायने गहलोत को ही बताने होंगे। चूंकि गहलोत महात्मा गांधी के अनुयायी हैं, इसलिए उम्मीद है कि मायने बताते समय गहलोत झूठ फरेब का सहारा नहीं लेंगे। गहलोत ने खुद कहा है कि जब मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा होती है तो अफसरशाही भी सरकार का सहयोग नहीं करती है। इससे सरकार के कामकाज पर भी असर पड़ता है। गहलोत माने या नहीं, लेकिन उनके कथनों का खामियाजा राजस्थान की जनता उठा रही है। सरकारी विभागों में रिश्वत के बिना कोई कार्य नहीं हो रहा है। प्रशासन शहरों और गांवों के संग अभियान में सरकार ने जो राहत की घोषणाएं की है, उन पर स्थानीय निकाय अमल नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि जरूरतमंद व्यक्तियों को पट्टे जारी नहीं हो रहे। चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में जरूरतमंद व्यक्तियों का प्राइवेट अस्पतालों में इलाज नहीं हो रहा है। गहलोत सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं पर अफसरशाही पानी फेर रही है। कांग्रेस हाईकमान को भी गहलोत की भूमिका को लेकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-10-2022)
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