अशोक गहलोत भी जानते हैं जिधर गांधी परिवार, उधर कांग्रेस। तो क्या अब गहलोत को गांधी परिवार से संवाद के लिए मध्यस्थों की जरुरत पड़ रही है?

12 अक्टूबर को दिल्ली में शाही ट्रेन के शुभारंभ पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नदारत रहे। जबकि इस ट्रेन का रख रखाव राजस्थान पर्यटन विभाग निगम के द्वारा ही किया जाएगा। धर्मेन्द्र राठौड़, सीएम गहलोत की मेहरबानी से ीह निगम के अध्यक्ष बने हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार से खींचतान के चलते सीएम गहलोत 12 अक्टूबर को शाही ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के लिए उपस्थित नहीं हुए। गहलोत इन दिनों जिन हालातों   में सरकार चला रहे हैं, उसमें दिल्ली दौरा बहुत मायने रखता है। गहलोत यदि दिल्ली जा कर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से नहीं मिलते तो कांग्रेस की राजनीति में अनेक सवाल खड़े होते। 25 सितंबर से पहले तक गहलोत का गांधी परिवार में जबरदस्त प्रभाव था। गहलोत सिर्फ दिल्ली आने की सूचना देते थे और गांधी परिवार इंतजार करता था, लेकिन गहलोत ने जब जयपुर में विधायक दल की बैठक नहीं होने दी, तब से गहलोत, गांधी परिवार से आउट हो गए हैं। अब हालात इतने खराब हैं कि गांधी परिवार से संवाद के लिए गहलोत को मुकुल वासनिक, जितेंद्र प्रसाद जैसे छोटे नेताओं को मध्यस्थ बनाना पड़ रहा है। 25 सितंबर को गहलोत ने भले ही गांधी परिवार को अपमानित किया हो, लेकिन गहलोत गांधी परिवार से बाहर नहीं होना चाहते। गहलोत अच्छी तरह जानते हैं कि जिधर गांधी परिवार है, उधर ही कांग्रेस होगी। गांधी परिवार के बिना कांग्रेस का कोई वजूद नहीं होगा। गहलोत का प्रयास है कि वे मुख्यमंत्री पद पर भी रहें और गांधी परिवार खुश हो जाए। गहलोत को इस प्रयास में कितनी सफलता मिलेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में गांधी परिवार अब गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहता है। यह बात अलग है कि विधायकों का बहुमत बता कर गहलोत अभी भी मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं। गहलोत के बगावती रुख को देखते हुए गांधी परिवार फिलहाल शांत है। जहां तक प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट का सवाल है तो पायलट अब अशोक गहलोत से लड़ने के मूड में नहीं है, क्योंकि यह लड़ाई अब गांधी परिवार और गहलोत के बीच हो गई है। गांधी परिवार के भरोसे पर पायलट शांत है। पायलट अब गांधी परिवार और अशोक गहलोत की लड़ाई में ही अपना भविष्य देख रहे हैं। गहलोत के अब उस अभिमान की भी हवा निकल गई है, जिसमें प्रचारित किया जा रहा था कि अगले विधानसभा चुनाव पायलट के बगैर ही गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रिपीट हो जाएगी। जबकि इतिहास गवाह है कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते सरकार कभी भी रिपीट नहीं हुई। 2013 में तो गहलोत के शासन में कांग्रेस को 200 में से मात्र 21 सीटें मिली। लेकिन गांधी परिवार की मेहरबानी से गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। गांधी परिवार ने पार्टी के हित में पहली बार मुख्यमंत्री पद छोड़ने का आग्रह किया, लेकिन गहलोत ने इस आग्रह को ठुकरा दिया। गांधी परिवार की कमजोर स्थिति का ही फायदा अब गहलोत उठा रहे हैं। गांधी परिवार अब राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक करने की स्थिति में नहीं है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (13-10-2022)
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