पुष्कर मेले की पहचान तो पशुओं से ही है।
प्रतिवर्ष कार्तिक माह में भरने वाले पुष्कर मेले में पशुओं की खरीद फरोख्त का ग्रामीणों के लिए खास महत्व होता है। पुष्कर मेले का वर्ष भर पशुपालक इंतजार करते हैं। इस बार भी पुष्कर मेले का आयोजन 26 अक्टूबर से 10 नवंबर तक होना था, लेकिन राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर पुष्कर मेले में पशुओं की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी है। सरकार के पशुपालन विभाग का मानना है कि अधिक संख्या में पशुओं के आने से लम्पी स्किन डिजीज फैलेगी। इस रोग को देखते हुए पशुपालन विभाग कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। पुष्कर मेले में पशुओं की खरीद फरोख्त पर रोक लगने से पशु पालक निराश है। पशुओं में किसी भी प्रकार के रोग के इलाज की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार में बैठे अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। सवाल यह भी है कि लम्पी रोग सिर्फ गोवंश में देखा गया, तब ऊंट, घोड़े और अन्य पशुओं की आवक पर रोक क्यों लगाई जा रही है? पशुपालन विभाग भी जानता है कि मेले में गोवंश के साथ ही ऊंट और घोड़ों की खरीद फरोख्त भी बड़ी संख्या में होती है। सरकार ने जो आदेश निकाला है, उससे ग्रामीणों का करोड़ों रुपए का कारोबार प्रभावित होगा। ऊंट पालन से रेबारी समाज जुड़ा हुआ है। यह समाज आर्थिक दृष्टि से कमजोर है। ऊंट की बिक्री पर ही कई परिवारों का जीवन यापन टिका है। इसी प्रकार पुष्कर मेले में घोड़ों की बिक्री और खरीद का काम भी होता है। पशुपालन विभाग पुष्कर मेले का जो निमंत्रण पत्र छपवाता है, उसमें भी पुष्कर पशु मेले का ही उल्लेख होता है। अब यदि पशुओं को रोक दिया जाएगा तो फिर पुष्कर मेले का कोई महत्व नहीं रहेगा। पशुओं की खरीद फरोख्त को रोक कर विभाग ने पशुपालकों के हितों पर कुठाराघात किया है। कोरोना काल के बाद राजस्थान में भी सभी धार्मिक स्थल खोल दिए गए हैं। इन धार्मिक स्थलों पर जर्बदस्त भीड़ हो रही है। लेकिन वहीं लम्पी रोग की आड़ लेकर पुष्कर मेले के महत्व को कम किया गया है। पुष्कर मेला राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक भी है। मेले में जब पशुपालक अपने पशुओं का सजाकर लाते हैं तो मेले के सौंदर्य में चार चांद लगते हैं। मेले के दौरान खुद पशुपालन विभाग पशुओं की अनेक प्रतियोगिताएं करवाता है। इससे पशुपालक भी प्रोत्साहित होते हैं। पुष्कर के पशु मेले का कितना महत्व रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कार्तिक एकादशी से जब धार्मिक मेला शुरू होता है। उससे पहले ही पशु मेला भर चुका होता है। यानी पुष्कर में पशु मेले को ज्यादा महत्व दिया गया है। इस बार पंचतीर्थ स्नान 4 नवंबर से शुरू होगा। सरकार ने पशुओं की खरीद फरोख्त पर रोक लगाने का जो निर्णय लिया उसका चौतरफा विरोध भी हो रहा है। अच्छा हो कि पशुपालन विभाग अपने इस निर्णय पर पुनॢवचार करें। इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी एक सकारात्मक पहल करनी चाहिए।
पशुपालन विभाग माने या नहीं लेकिन राजस्थानी संस्कृति में रंगे पशु पालक और सजे धजे ऊंट घोड़े, बैल, गाय आदि पशु विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होते हैं। विदेशी पर्यटक पशुपालकों और पशुओं के फोटो अपने कैमरे में कैद करते हैं। ऐसे फोटो का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी महत्व होता है। चूंकि पुष्कर का बड़ा भाग रेतीला है, इसलिए विदेशी पर्यटक काफी समय पशुपालकों और उनके पशुओं के बीच बीताते हैं। पुष्कर मेले में पशुओं न आने से विदेशी पर्यटकों का मजा भी कम हो जाएगा। इसी प्रकार पशुओं के काम आने वाली सामग्री बनाने वाले लघु उद्यमी भी निराश हैं। मेले के दौरान पुष्कर में बड़ी संख्या में ऐसी दुकानें सजती है जिन पर पशुओं के उपयोग की सामग्री बेची जाती है। अब जब पशु और पशुपालक ही नहीं आएंगे तब ऐसे छोटे कारोबारियों को भी नुकसान होगा।