राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव मजाक बने।

राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव मजाक बने।
सरकार की लापरवाही पर निर्वाचन विभाग भी नाराज।
क्या यह सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट की आपसी खींचतान का नतीता है? नहीं हो सकेगी सरकार की हार-जीत।  आचार संहिता के बाद भी विज्ञापनों का प्रसारण।

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यूं तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत का करने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को देते हैं, लेकिन अब गहलोत के शासन में ही पंचायती राज संस्थाओं की दुर्गति सबसे ज्यादा हो रही है। गहलोत सरकार के नकारात्मक और असहयोग पूर्ण रवैए पर राज्य निर्वाचन आयुक्त पीएस मेहरा ने भी नाराजगी जताई है। राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर राज्य सरकार ही किसी आईएएस की नियुक्ति करती है। अब यदि ऐसा आईएएस ही सरकार की कार्यशैली की आलोचना करे तो हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव की घोषणा तीन माह पहले ही हो जानी चाहिए थी, लेकिन ईवीएम खरीदने के लिए धन राशि नहीं देने, ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों का पुर्नगठन समय पर नहीं करने आदि कारणों से तीन माह विलम्ब से चुनाव की घोषणा हो सकी है। 26 दिसम्बर को निर्वाचन आयुक्त मेहरा ने जो घोषणा की है, वह भी आधी अधूरी है। आयुक्त ने सिर्फ ग्राम पंचायतों के सरपंच और उपसरपंच के चुनाव की ही घोषणा की है। जिला परिषद और पंचायत समितियोंके सदस्यों के चुनाव का कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ। यानि सरपचं तो चुन लिया जाएंगे, लेकिन प्रधान और जिला प्रमुख नहीं। ऐसे में पंचायती राज का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। गंभीर बात तो यह है कि एक हजार 971 सरपंचों के चुनाव भी नहीं हो पा रहे हैं। असल में 16 नवम्बर के बाद राज्य सरकार ने जिला पंचायत समितियों का पुर्नगठन किया उस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने पुर्नगठन प्रक्रिया को दोषपूर्ण माना। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस सरकार ने अपने राजनीति स्वार्थों की पूर्ति के लिए नियमों के विरुद्ध पंचायत समितियों का पुर्नगठन किया है। अब हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में 6 जनवरी को सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही तय होगा कि जिला परषिद और पंचायत समितियों के सदस्यों के चुनाव कब होंगे।
खींचतान का नतीजा:
सूत्रों की माने तो पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव मजाक बनने के पीछे सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच चल रही आपसी खींचतान है। पायलट ही पंचायती राज विभाग के मंत्री हैं, इसलिए अपने विभाग की संस्थाओं के चुनाव का दायित्व भी पायलट पर है। लेकिन सरकार की ओर से पायलट की कोई भूमिका देखने को नहीं मिली है। मुख्यमंत्री के अधीन आने वाले वित्त विभाग द्वारा ईवीएम खरीदने के लिए निर्वाचन विभाग को बजट नहीं देने और पंचायत समितियों के दूसरी बार पुर्नगठन करने को लेकर पायलट की नाराजगी बताई गई। पंचायती राज विभाग में मुख्यमंत्री कार्यालय के दखल से भी पायलट बेहद नाराज बताए जाते हैं। चूंकि पायलट और गहलोत के बीच पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव को लेकर तालमेल नहीं रहा, इसलिए सिर्फ सरपंचों के चुनाव की घोषणा हो सकी है। आमतौर पर सरपंच के साथ ही जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्य के चुनाव भी होते हैं। इससे चुनाव का खर्च भी कम होता है। अब राजस्थान में  अलग अलग चुनाव होने से खर्चा भी डबल होगा।
सरकार की हार जीत भी नहीं:
सिर्फ सरपंचों के चुनाव से गहलोत सरकार की हार जीत का भी पता नहीं चलेगा। सरपंच के चुनाव पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं होते हैं। जबकि जिला परिषद और पंचायत समिति के सदस्य के चुनाव में उम्मीदवार को पार्टी का चुनाव चिन्ह मिलता है। पार्टी आधार पर ही प्रधान और जिला प्रमुख का चुनाव होता है। यानि अभी जो चुनाव की घोषणा की है उसमें गहलोत सरकार को राजनीतिक परीक्षा से गुजरना नहीं पड़ेगा।
सरपंच के चुनाव तीन चरणों में:
निर्वाचन विभाग के अनुसर प्रदेश की 9 हजार 171 ग्राम पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में होंगे। पहले चरण में 3 हजार 691 सरपंचों के 8 जनवरी 2020 को नामांकन तथा 9 जनवरी को नाम वापसी। 17 जनवरी को मतदान के बाद मतगणना होगी। दूसरे चरण में 3 हजार 237 सरपंचों के लिए 13 जनवरी को नामांकन तथा 14 जनवरी को नाम वापसी। 17 जनवरी को मतदान व मतगणना। तीसरे चरण में 2 हजार 243 सरपंचों के लिए 20 जनवरी को नामांकन व 21 जनवरी को नाम वापसी तथा 29 जनवरी को मतदान व मतगणना।
आचार संहिता के बाद भी विज्ञापन का प्रसारण:
26 दिसम्बर को पंचायतीराज संस्था के चुनाव की घोषणा होने के साथ ही प्रदेश भर में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है। लेकिन इसके बावजूद भी 27 दिसम्बर को प्रादेशिक न्यूज चैनलों और प्रचार के अन्य माध्यमों में सरकार की योजनाओं के विज्ञापन प्रसारित होते रहे। निर्वाचन विभाग के नियमों के मुताबिक ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण अब आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन राज्य में धड़ल्ले से ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण हो रहा है। देखना है कि निर्वाचन विभाग ऐसे विज्ञापनों के प्रसारण पर कब रोक लगाता है।
एस.पी.मित्तल) (27-12-19)
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