जब किसी प्रदेश में क्षेत्रीय दल की सरकार होती है तो ऐसी ही जिद सामने आती है। जैन तीर्थ सम्मेद शिखर पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से ही हेमंत सोरेन की सरकार चल रही है। कोई भी सरकार जैन मुनियों के धैर्य की परीक्षा न लें।

झारखंड स्थित जैन तीर्थ स्थल को धार्मिक स्थल ही बनाए रखने की मांग को लेकर देशभर में जैन समाज धरना प्रदर्शन कर रहा है। राजस्थान के जयपुर में दिगम्बर जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने गत 3 जनवरी को अपने प्राण त्याग दिए। मुनि सुज्ञेय सागर 9 दिनों से आमरण अनशन पर थे, लेकिन किसी ने भी उनके अनशन की सुध नहीं ली। 3 जनवरी को मुनि सुज्ञेय सागर के निधन के साथ ही जयपुर में ही मुनि समर्थ महाराज ने अन्न जल त्याग दिया है। यानी सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अनेक जैन मुनि अपने प्राण त्यागने के लिए तैयार हैं। जैन समाज के देशव्यापी आंदोलन और जैन मुनियों के प्राण त्यागने के सिलसिले के बाद भी झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार पर कोई असर नहीं हुआ है। सोरेन सरकार ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सम्मेद शिविर को पर्यटन स्थल घोषित करने की अपनी जिद पर सोरेन सरकार कायम है। सवाल उठता है कि सोरेन सरकार पर जैन समाज के आंदोलन और जैन मुनियों के बलिदान का असर क्यों नहीं हो रहा? असल में हेमंत सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल है। मुख्यमंत्री सोरेन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश के दूसरे राज्यों में रह रहे लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। यही वजह है कि हेमंत सोरेन को आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। हेमंत सोरेन उनके राजनीतिक की सोच झारखंड तक ही सीमित है। यदि झारखंड में किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की सरकार होती तो देश के अन्य हिस्सों में हो रहे आंदोलन का असर पड़ता। लेकिन फिर भी किसी भी सरकार के जैन मुनियों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। यह सही है कि झारखंड सरकार के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को भी अभ्यारण घोषित किया है। इसके बाद ही सोरेन सरकार ने सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किया है। जैन समाज के लाखों लोग प्रतिवर्ष सम्मेद शिखर जाते हैं। उनका मकसद पर्यटन का नहीं बल्कि धार्मिक होता है। अनेक जैन मुनि सम्मेद शिखर पर  मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठिन तपस्या करते हैं। इसी भावना से उनके अनुयायी भी पहुंचते हैं। जैन मुनि तो सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अपने त्याग भी त्याग कर रहे हैं। ऐसे में केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वे जन भावनाओं को देखते हुए समस्या के समाधान के लिए प्रयास करें। केंद्र को यदि कोई सख्त कदम उठाना पड़े तो वह भी उठाया जाना चाहिए। 
कांग्रेस अपनी स्थिति स्पष्ट करें:
सम्मेद शिखर के प्रकरण में कांग्रेस पार्टी को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही चल रही है। झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं। 2019 में हुए चुनाव में जेएमएम को 30 भाजपा को 25 तथा कांग्रेस को 16 सीटें मिलीं। बाद में जेएमएम और कांग्रेस ने मिल कर सरकार बनाई। यानी सोरेन सरकार ने सम्मेद शिखर को जो पर्यटन स्थल घोषित किया है, उसमें कांग्रेस की भी सहमति रही है। मंत्रिमंडल का निर्णय सामूहिक होता है। ऐसे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अपनी राय देश के समक्ष रखनी चाहिए। जेएमएम कांग्रेस और भाजपा माने या नहीं लेकिन सम्मेद शिखर का मामला जैन समाज ही नहीं बल्कि सनातन संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण है। जैन मुनियों के साथ सनातन संस्कृति को मानने वाले साधु संत भी खड़े हैं। भारत जैसे सनातन धर्मी देश में मुनियों का बलिदान यदि किसी धार्मिक स्थल को बचाने के लिए होता है तो यह बहुत ही शर्मनाक बात है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (05-01-2023)
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