पाकिस्तान की मस्जिद में नमाजियों पर बम और भारत के अजमेर में ख्वाजा का करम बरस रहा था। यही फर्क है दोनों मुल्कों में। इस फर्क को राहुल, अखिलेश, अशोक गहलोत, ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं को समझना चाहिए। कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तान को भी अफगानिस्तान जैसा इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है।
30 जनवरी को जब भारत के अजमेर में 240 पाकिस्तानी नागरिकों पर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन का करम बरस रहा था, तभी पाकिस्तान के पेशावर पुलिस हैड क्वार्टर की मस्जिद में नमाजियों पर बम बरस रहे थे। इस गोला बारी में साठ पाकिस्तानी नागरिक मारे गए, जबकि 160 बुरी तरह जख्मी हुए। मृतको में ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं क्योंकि यह मस्जिद पुलिस हैडक्वाटर की ही है। इसके विपरीत भारत के अजमेर में सूफी संत ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में सरकारी तौर पर आए 240 पाकिस्तानियों ने 30 जनवरी को ही दरगाह की मस्जिदों में सुकून के साथ नमाज पढ़ी और पवित्र मजार पर चादर पेश की। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति दरगाह आता है, उस पर ख्वाजा का करम बरसा है। यानी 30 जनवरी को जब पेशावर की मस्जिद में बम बरस रहे थें, तब अजमेर में पाकिस्तानियों पर ख्वाजा का करम बरस रहा था। 30 जनवरी को हुई दोनों घटनाएं बताती है कि भारत और पाकिस्तान में कितना फर्क है। भारत में भारत का मुसलमान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से आने वाले मुसलमान भी सुरक्षित हैं। हो सकता है कि सरकारी तौर पर आए 240 पाकिस्तानियों में पुलिस के अधिकारी भी शामिल हों। यदि ऐसे अधिकारी पेशावर की अपनी मस्जिद में नमाज पढ़ रहे होते तो उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। अच्छा हुआ कि ऐसे अधिकारी ख्वाजा साहब के उर्स में शरीक होने के लिए अजमेर आ आए। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी, महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला जैसे भारतीय राजनेता अपनी राजनीतिक स्वार्थों के खातिर देश में मुसलमानों के साथ भेदभाव होने का आरोप लगाते हैं। ऐसे नेताओं को 30 जनवरी की पेशावर और अजमेर की घटनाओं का फर्क समझना चाहिए। पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है और वहां मस्जिद में नमाज पढ़ते वक्त भी मुसलमान सुरक्षित नहीं है, जबकि मौजूदा समय में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो सनातन संस्कृति में विश्वास रखते हैं, लेकिन भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से मुसलमान भी सुरक्षित है। यानी भारत का हर नागरिक स्वयं को सुरक्षित मानता है। ख्वाजा साहब के उर्स में स्वयं पीएम मोदी ने भी अपनी ओर से चादर भेजी है। इतना ही नहीं कि पीएम मोदी ने ख्वाजा साहब को भारत की महान अध्यात्मिक परंपराओं का प्रतीक बताया है। राहुल गांधी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक के नेता बताएं कि पेशावर की मस्जिद में नमाजियों को मौत के घाट उतारने वाले कौन थे? क्या किसी गैर इस्लामिक धार्मिक संगठन ने मस्जिद में गोलियां चलाईं? राहुल से लेकर ओवैसी तक के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि पेशावर की मस्जिद में गोलियां चलाने वाले लोग तहरीक-ए-तालिबान संगठन के हैं। इसी कट्टरपंथी संगठन का शासन अभी अफगानिस्तान पर है और यह संगठन चाहता है कि पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की तरह इस्लामिक स्टेट बने। यह संगठन अभी पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र नहीं मानता है। पाकिस्तान को अफगानिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए ही मस्जिदों में धमाके हो रहे हैं। सब जानते हैं कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम राष्ट्र से ज्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं, लेकिन भारत में ऐसे मुसलमान भी हैं जो सूफी संतों के अनुयायी भी हैं, जबकि तहरीक-ए-तालिबान जैसे कट्टरपंथी संगठन सूफी विचारधारा को स्वीकार नहीं करते हैं। पहले पाकिस्तान ने ही इस संगठन को अफगानिस्तान में मजबूत किया और अब यह संगठन पाकिस्तान के लिए मुसीबत बन गया है। पाकिस्तान की सेना भी इस कट्टरपंथी से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। राहुल और ओवैसी माने या नहीं लेकिन यदि पाकिस्तान में तालिबान मजबूत होता है तो यह भारत के लिए बड़ा खतरा होगा। पूर्व में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था, तब भारत में भी कई मुस्लिम नेताओं ने तालिबान के पक्ष में बयान दिए थे। आज अफगानिस्तान की स्थिति देखी जा सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (31-01-2023)
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