राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का संघ और राम मंदिर निर्माण को बदनाम करने का प्लान धरा रह गया। हाईकोर्ट के न्यायाधीश फरजंद अली ने संघ के प्रांत प्रचारक निंबाराम के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द किया। गहलोत की पुलिस ने निंबाराम पर एक निजी कंपनी से 20 करोड़ रुपए मांगने का आरोप लगाया था।

गत वर्ष जून माह में राजस्थान के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री अशोक गहलोत के अधीन काम करने वाली पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो के आधार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक निंबाराम को फंसाने वाला एक मुकदमा दर्ज किया था। गहलोत की पुलिस का आरोप रहा कि जयपुर में ग्रेटर नगर निगम की सफाई ठेका कंपनी बीवीजी के प्रतिनिधियों से मेयर सौम्या गुर्जर के पति राजाराम ने 20 करोड़ रुपए की मांग की है। यह राशि 267 करोड़ रुपए के बकाया भुगतान के लिए मांगी गई। इसके लिए मेयर के पति राजाराम, कंपनी के प्रतिनिधियों को संघ प्रचारक निंबाराम के पास भी ले गए। वायरल वीडियो के आधार पर पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि 20 करोड़ रुपए पहले राम मंदिर निर्माण में सहयोग देने और जयपुर स्थित प्रताप फाउंडेशन को चंदा देने की बात कही गई। चूंकि यह मामला सीधे संघ प्रचारक से जुड़ गया, इसलिए सीएम गहलोत सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर प्रतिकूल टिप्पणियां की। गहलोत का तो यहां तक कहना रहा कि राम मंदिर में कैसे कैसे सहयोग लिया जा रहा है, इसका अंदाजा दर्ज एफआईआर से लगाया जा सकता है। पुलिस ने संघ प्रचारक निंबाराम को गिरफ्तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संघ और राम मंदिर के निर्माण को बदनाम करने के प्लान को देखते हुए ही एफआईआर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट में पुलिस ने खुद माना कि इस मामले में रुपयों का लेन देन नहीं हुआ है और न ही पुलिस के पास वायरस वीडियो की मूल रिकॉर्डिंग व रिकॉर्डिंग वाला मोबाइल है। निंबाराम के वकील जीएस गिल ने कहा कि पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है। राजनीतिक द्वेषता के चलते निंबाराम को फंसाया गया है। बातचीत सिर्फ राम मंदिर निर्माण में सहयोग से संबंधित थी, लेकिन जांच एजेंसियों ने बेवजह मुकदमा दर्ज किया। संबंधित कंपनी के प्रतिनिधियों ने भी 20 करोड़ रुपए की राशि मांगने से इंकार किया है। एफआईआर रद्द करने के प्रकरण में सबसे खास बात यह है कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश फरजंद अली ने अंतिम बहस 27 फरवरी को सुनी थी और आदेश 20 मार्च को रिलीज हुआ। न्यायाधीश अली ने 20 मार्च को हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित मुख्यपीठ में बैठे थे, जबकि 27 फरवरी को अंतिम बहस जयपुर स्थित बेंच में की थी। 27 फरवरी से पहले ही मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीश अली को एक मार्च से जोधपुर पीठ में सुनवाई करने के आदेश जारी कर दिए थे। चूंकि न्यायाधीश अली ने इस मामले में पहले भी सुनवाई की, इसलिए जोधपुर जाने से पहले 27 फरवरी को सभी पक्षों को बुलाकर अंतिम बहस सुनी। निंबाराम के खिलाफ एफआईआर रद्द होने से संघ और राम मंदिर निर्माण को बदनाम करने का प्लान धरा रह गया है। सवाल उठता है कि सीएम गहलोत और कांग्रेस के नेताओं ने एफआईआर दर्ज होने पर जो बयान दिए थे, क्या उन पर अब माफी मांगी जाएगी? सीएम गहलोत मोदी सरकार पर तो जांच एजेंसियों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हैं, लेकिन उनके अधीन काम करने वाली पुलिस क्या कर रही है, यह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती। भ्रष्टाचार मामलों में मोदी सरकार की जांच एजेंसियों की कार्यवाही पर अदालतें भ्रष्टाचारियों को जेल भेज रही है, जबकि गहलोत सरकार के अधीन काम करने वाली पुलिस की एफआईआर को हाई कोर्ट रद्द कर रहा है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (21-03-2023)
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