बजरी पर रॉयल्टी वसूली को लेकर हनुमान बेनीवाल और राजपूत समाज आमने-सामने। राजस्थान में दो बड़ी जातियों के बीच टकराव पर गहलोत सरकार को मूकदर्शक बने नहीं रहना चाहिए। बजरी लीज धारक और सेवाभावी मेघराज सिंह रॉयल की जैसलमेर की सूर्यागढ़ होटल में ही ठहरे थे गहलोत समर्थक विधायक।

26 जून को में राजपूत समाज की ओर से अजमेर कलेक्ट्रेट पर एक बड़ा प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में राजपूत विकास परिषद, क्षत्रिय प्रतिभा एवं शोध संस्थान, राजवंश संस्थान, क्षत्रिय महासभा, परमवीर मेजर शैतान सिंह राजपूत छात्रावास आदि संस्थानों से जुड़े सैकड़ों लोग शामिल रहे। समाज के लोग पहले कुंदन नगर स्थित राजपूत छात्रावास पर एकत्रित हुए और फिर जुलूस के रूप में कलेक्ट्रेट पर पहुंचे। प्रदर्शन के बाद राजपूत प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम ज्ञापन देकर आरएलपी के अध्यक्ष और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल पर कार्रवाई करने की मांग की है। आरोप रहा कि राजपूत समाज के प्रतिष्ठित सेवाभावी मेघराज सिंह रॉयल को लेकर बेनीवाल अभद्र भाषा का उपयोग कर रहे हैं जिसे राजपूत समाज बर्दाश्त नहीं करेगा। प्रतिनिधियों ने बेनीवाल के उन समर्थकों पर भी कार्यवाही की मांग की है जो राजपूत समाज पर प्रतिकूल टिप्पणी का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। समर्थक ऐसी भाषा बेनीवाल की उपस्थिति में ही बोल रहे हैं और बेनीवाल चुप है। इससे  एक जाति विशेष की हौसला अफजाई हो रही है। जबकि राजपूत समाज में नाराजगी है। अजमेर जैसे प्रदर्शन प्रदेश भर में हो रहे हैं। इससे हनुमान बेनीवाल और राजपूत समाज आमने सामने हो गए हैं। असल में विगत दिनों नागौर से लेकर हनुमानगढ़ तक बेनीवाल ने रैलियां कर बजरी रॉयल्टी वसूली का विरोध किया। बेनीवाल का आरोप रहा कि सामंती सोच वाले लोग रॉयल्टी वसूली के नाम पर किसानों को परेशान कर रहे हैं। मालूम होगी रैलियों में समर्थकों ने जेसीबी से बेनीवाल पर फूलों की वर्षा की थी। रैलियों से समर्थकों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ है। बेनीवाल की रैलियों के बाद राजपूत समाज के प्रदर्शन भी शुरू हुए हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार राजपूत समाज के मेघराज सिंह रॉयल और उनके साझेदारों के पास ही प्रदेश में बजरी पर रॉयल्टी वसूलने का ठेका है। पूर्व में इस ठेके के लिए मेघराज सिंह की फर्म ने 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि राज्य सरकार को जमा करवाई थी। तब एनजीटी ने बजरी खनन पर रोक लगा दी थी। इसलिए सरकार ठेके की क्रियान्वित नहीं कर सकी, लेकिन मिलीभगत से बजरी की चोरी होती रही।  इससे प्रदेश में एक नया बजरी माफिया पनप गया। नदियों से बजरी निकालने के लिए जेसीबी और डंपर की खरीदे गए। तब यह आरोप लगा कि राजनीतिक संरक्षण में बजरी की चोरी हो रही है। इससे उपभोक्ताओं को महंगी बजरी मिल रही है, लेकिन माफिया से लेकर पुलिस, खान आदि विभागों के कार्मिक मालामाल हो गए हैं। अब जब 2022 में एनजीटी ने बजरी खनन पर रोक हटाई तो गहलोत सरकार ने खनन के लिए लाइसेंस जारी कर दिए। राजपूत समाज के मेघराज सिंह और उनके साझेदारों के पास ही अधिकांश लाइसेंस है। चूंकि लाइसेंसधारी को सरकार में शुल्क जमा कराना होता है इसलिए अब किसी को भी चोरी नहीं करने दी जाती। इससे उन लोगों को परेशानी हो रही है जो अब तक की चोरी कर मालामाल हो रहे थे। भले ही यह मुद्दा बजरी पर रॉयल्टी वसूली का है लेकिन राजस्थान की दो बड़ी जातियों में टकराव की स्थिति हो गई है। अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को  इस टकराव पर मूकदर्शक नहीं रहना चाहिए। यदि जल्द ही इस टकराव को खत्म नहीं किया गया तो प्रदेश में कानून व्यवस्था बिगड़ने का संकट उत्पन्न हो जाएगा। यह सही है कि जुलाई-अगस्त 2020 में जब गहलोत सरकार के सामने राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ था, गहलोत समर्थक विधायक जैसलमेर में मेघराज सिंह रॉयल की होटल सूर्या गढ़ में ही ठहरे थे। कहा जा सकता है कि गहलोत सरकार बचाने में सूर्या गढ़ होटल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। चूंकि मेघराज सिंह सेवाभावी प्रवृत्ति के इंसान हैं इसलिए उनके संबंध हर मुख्यमंत्री से रहते हैं। भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी अच्छे संबंध रहे।

S.P.MITTAL BLOGGER (26-06-2023)
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