तो इस बार राजस्थान में अशोक गहलोत के दम (चेहरे) पर ही कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। गत बार गहलोत और पायलट दोनों का चेहरा था, तब 200 में से कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं। मतों का अंतर करीब डेढ़ लाख का ही रहा। सचिन पायलट अब विधानसभा चुनाव के परिणाम का इंतजार करेंगे, क्योंकि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस की कभी जीत नहीं हुई।
राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति की तस्वीर अब करीब करीब साफ हो गई है। कांग्रेस हाईकमान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम (चेहरे) पर ही आगामी विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट की चुनावों में सीमित भूमिका होगी। यानी जिन क्षेत्रों में पायलट का प्रभाव है, वहां प्रचार में थोड़ी भूमिका दी जाएगी। कुछ उम्मीदवारों के चयन में पायलट की राय को प्राथमिकता दी जा सकती है। अलबत्ता पायलट को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बना कर किसी राज्य का प्रभारी बनाया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया जा सकता है। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में भी चार माह बाद ही चुनाव होने हैं। पायलट के भी यह समझ में आ गया है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में अशोक गहलोत की बराबरी नहीं की जा सकती। पायलट भले ही अभी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो जाएं, लेकिन उनकी नजर विधानसभा चुनाव के परिणाम पर रहेगी। गत बार 2018 में पायलट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे और चुनावों में गहलोत की भी सक्रिय भूमिका थी। कहा जा सकता है कि दोनों के चेहरे सामने थे, तब कांग्रेस को 200 में से 99 सीटें मिली थीं। आरएलडी के सुभाष गर्ग को छोड़ कर कांग्रेस को 100 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। तब भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर करीब डेढ़ लाख का ही रहा। भाजपा को एंटी इनकम्बेंसी का भी सामना करना पड़ा। खुद सचिन पायलट ने गत पांच वर्षों में कई बार कहा कि हम सरकार में रहते क्यों हार जाते हैं, उन कारणों का पता लगाना चाहिए। पायलट का इशारा गहलोत की ओर ही है। यह सही है कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते राजस्थान में कांग्रेस की कभी जीत नहीं हुई। उल्टे गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 2013 में तो कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें ही मिल पाई। इससे पहले 53 सीटें मिली थीं। 2013 में 21 सीटें मिलने के बाद ही पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। तब पायलट ने निराशा और हताश कार्यकर्ताओं को लेकर ही भाजपा के खिलाफ संघर्ष किया। हालांकि अभी आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम के बारे में कुछ नहीं का जा सकता है, लेकिन यह तथ्य भी सही है कि गत विधानसभा चुनाव के छह माह बाद लोकसभा के चुनाव हुए थे, तब कांग्रेस को 165 विधानसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा। यानी लोकसभा के भाजपा उम्मीदवारों ने 165 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई। खुद मुख्यमंत्री गहलोत के पुत्र जोधपुर से चार लाख मतों से हार गए। अब जब पायलट ने हाईकमान के फैसले को स्वीकार कर लिया है, तब गहलोत के सामने जीत दिलाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। देखना होगा कि इस बार मुख्यमंत्री रहते अशोक कांग्रेस को जीत दिला पाते हैं या नहीं। यदि जीत नहीं मिली है तो एक बार फिर पायलट को ही राजस्थान में कांग्रेस की कमान सौंपी जाएगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (11-07-2023)
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