यह तो सही है कि 1669 में काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ा था। मंदिर का तो इतिहास है, लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद का नहीं। सर्वे से सच्चाई तो सामने आएगी। 26 जुलाई को सायं पांच बजे तक सर्वे पर रोक। अब हाईकोर्ट में सुनवाई होगी।

वाराणसी की जिला अदालत के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 30 सदस्यीय टीम ने 24 जुलाई से काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का साइंटिफिक सर्वे का काम शुरू कर दिया है। एएसआई को आगामी 4 अगस्त को अपनी रिपोर्ट देनी है। इसी मंदिर परिसर में मुस्लिम समुदाय की ज्ञानवापी मस्जिद भी बनी हुई है। जो सर्वे हो रहा है उसका मस्जिद की उपस्थिति से कोई संबंध नहीं है। यही वजह है कि कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को भी सर्वे में शामिल करने के निर्देश दिए हैं। मुस्लिम पक्ष एएसआई के सर्वे का लगातार विरोध कर रहा है। सर्वे से मंदिर परिसर में बनी मस्जिद के इतिहास की भी जानकारी हो जाएगी, लेकिन यह ऐतिहासिक तथ्य है कि 1669 में अत्याचारी मुगल शासक औरंगजेब ने भारत के अन्य मंदिरों के साथ साथ वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भी तोडफ़ोड़ की थी। मंदिर को तोडऩे की घटना से कोई इंकार नहीं कर रहा है। जहां तक मंदिर निर्माणका सवाल है तो इतिहासकारों के अनुसार 2050 वर्ष पहले हिन्दू राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण करवाया था क्यों यही पर भगवान शिव के 12  ज्योर्तिलिंगों में से एक ज्योर्तिलिंग स्थापित था। ज्योर्तिलिंग की वजह से ही इस मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। काशी विश्वनाथ मंदिर के विवाद को अदालत में ले जाने वाली हिन्दू महिला रेखा पाठक, सीता साहू, लक्ष्मी देवी और  मंजू व्यास का कहना है कि मंदिर परिसर में जो मस्जिद बनी है, वह भी टूटे मंदिर के अवशेषों से बनी है। यह मस्जिद जबरन बनाई गई है। इस्लाम में विवादित स्थान पर मस्जिद को जायज नहीं माना गया है। ऐसे में मुस्लिम पक्ष को मस्जिद वाला स्थान स्वेच्छा से हिन्दू पक्ष को सौंप देना चाहिए। इसमें न्यायालय का तो कोई हस्तक्षेप होना ही नहीं चाहिए। मुस्लिम समुदाय भी जानता है कि अत्याचारी मुगल शासकों ने हिन्दुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर किसने आक्रमण किया। चूंकि काशी विश्वनाथ मंदिर से करोड़ों हिन्दुओं की आस्था जुड़ी है, इसलिए मुस्लिम पक्ष को हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। हिन्दुओं ने हमेशा मुसलमानों के प्रति उदार रुख अपनाया है। यही वजह है कि हिन्दू समुदाय के लाखों लोग मुस्लिम सूफी संतों की मजारों और दरगाहों में जाकर जियारत करते हैं। यह सही है कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत मौजूदा धर्म स्थलों को कानूनी संरक्षण मिला हुआ है, इसलिए कोई भी अदालत अब पुरान किसी धार्मिक स्थल को हटाने के आदेश नहीं दे सकती। ऐसे में वाराणसी में बनी ज्ञानवापी का हटना मुश्किल है। भले ही एएसआई के सर्वे में मस्जिद की इमारत में हिन्दू संस्कृति और धर्म के चिह्नों की बात साबित हो जाए। हालांकि पूर्व में कोर्ट द्वारा नियुक्त रिसीवर की रिपोर्ट में माना गया है कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का उपयोग हुआ है। काशी विश्वनाथ मंदिर का मामला कानून से ज्यादा दोनों पक्षों के धर्म से जुड़ा हुआ है। जिस मस्जिद की इमारत में दूसरे धर्म के चिह्न हो उस मस्जिद में नमाज कैसे पढ़ी जा सकती है? यह बात अलग है कि ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर अब राजनीति भी शुरू हो गई है। टीवी चैनलों पर बैठ कर दोनों ही पक्षों के लोग उकसाने वाली कार्यवाही कर रहे है। जबकि यह मामला झगड़े फंसद का है ही नहीं। दोनों पक्षों के धर्मगुरु आपस में बैठ कर मामले को निपटा सकते हैं। यदि मंदिर के अवशेषों से बनी मस्जिद में नमाज जायज है तो फिर हिन्दू पक्ष को अपने दावे पर पुनर्विचार करना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि अयोध्या में राम मंदिर का प्रकरण भूमि के मालिकाना हक से संबंधित था, इसलिए न्यायालय का हस्तक्षेप हुआ। जबकि वाराणसी के काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला पूरी तरह धार्मिक आस्था से जुड़ा है। 
सर्वे पर रोक:
ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई के सर्वे पर 26 जुलाई को शाम पांच बजे रोक लगा दी है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि मुस्लिम पक्ष इस मामले को हाईकोर्ट  ले जाए। कोर्ट की ओर से कहा गया कि मामले में 25 जुलाई को ही हाईकोर्ट सुनवाई करे। सुनवाई के दौरान एएसआई ओर से कहा गया कि सर्वे के दौरान खुदाई का काम नहीं किया जा रहा है। सर्वे में सिर्फ मंदिर परिसर की वीडियोग्राफी और पैमाइश का काम हो रहा है। लेकिन मुस्लिम पक्ष का कहना रहा कि यदि सर्वे के काम पर रोक नहीं लगाई जाती है तो मस्जिद में होने वाली धार्मिक गतिविधियां प्रभावित होंगी। मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि बनारस की जिला अदालत ने 21 जुलाई को आदेश दिया कि और आज 24 जुलाई को सर्वे का काम शुरू हो गया। ऐसे में हाईकोर्ट आने का मौका ही नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट का मानना रहा कि मुस्लिम पक्ष को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है। इसलिए सर्वे पर 26 जुलाई तक रोक लगाई जा रही है। 


S.P.MITTAL BLOGGER (24-07-2023)

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