तो क्या अरविंद केजरीवाल स्वयं को कानून से ऊपर समझते हैं? आखिर ईडी के समक्ष कब तक उपस्थित नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या राहुल गांधी अडानी समूह को लेकर पीएम मोदी पर आरोप लगाएंगे?
3 जनवरी को भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। दिल्ली के बहुचर्चित शराब घोटाले में बयान दर्ज करने के लिए ईडी ने तीसरी बार नोटिस जारी किया था। नोटिस के अनुरूप ईडी दफ्तर जाने के बजाए केजरीवाल ने एक पत्र भेजकर कह दिया कि यह नोटिस गैर कानूनी है। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि मुझे गिरफ्तार करने के लिए ईडी दफ्तर बुलाया जा रहा है। यानी केजरीवाल ने ईडी के समक्ष बयान देने से इंकार कर दिया। सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल स्वयं को देश के कानून से ऊपर समझते हैं? ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय का गठन देश के संविधान के मुताबिक हुआ है। ईडी को आर्थिक अपराध के मामलों की जांच करने का अधिकार है। अब यदि केजरीवाल जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थित नहीं होते हैं तो फिर उन्हें कानून तोडऩे का अपराधी भी माना जाएगा। केजरीवाल कोई साधारण नागरिक नहीं है बल्कि निर्वाचित राज्य सरकार के मुख्यमंत्री भी हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने देश के संविधान की शपथ ली है। ऐसे में केजरीवाल को नोटिस के अनुरूप ईडी के समक्ष उपस्थित होना ही चाहिए। अब यदि उन्हें गिरफ्तारी का डर सता रहा है तो फिर सवाल उठता है कि दिल्ली में शराब घोटाला क्यों किया? इस शराब घोटाले में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और केजरीवाल की पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह पहले ही जेल में है। लाख कोशिश के बाद भी दोनों की जमानत नहीं हो पाई है। इससे प्रतीत होता है कि जांच एजेंसियों के पास शराब घोटाले के पुख्ता सबूत हैं। केजरीवाल जब मुख्यमंत्री नहीं बने थे, तब उन्होंने भ्रष्टाचार को ही अपनी रणनीति का मुद्दा बनाया था। केजरीवाल ने कहा कि कि दिल्ली में सरकार बनने पर यदि भ्रष्टाचार का आरोप भी लग जाए तो मुझे चौराहे पर खड़ा कर जूते मारना। लेकिन अब केजरीवाल अपनी गिरफ्तारी से भी बचना चाहते हैं। जो केजरीवाल जूते खाने को तैयार थे, आज वे जांच एजेंसियों के समक्ष बयान दर्ज कराने के लिए भी उपस्थित नहीं हो रहे। जाहिर है कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए अपनाया था।
अडानी समूह को राहत:
3 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्य पीठ ने हिडनबर्ग के आरोपों के संदर्भ में अडानी समूह को बड़ी राहत दी है। पीठ ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें अमेरिका के न्यूज पोर्टल हिडनबर्ग की रिपोर्ट के आधार पर अडानी समूह के खिलाफ एसआईटी जांच की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिडनबर्ग के आरोपों की जांच सेबी कर रही है और सेबी एक विश्वसनीय संस्था है। जब भारत की एक संवैधानिक संस्था जांच कर रही है तो फिर अलग से एसआईटी के गठन की कोई जरुरत नहीं है। इससे पहले सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने आरोपों की जांच के लिए जो तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी गठित की उसी के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया है। सेबी की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण अपने एंजीओ के माध्यम से विदेशी न्यूज पोर्टल पर खबरे प्रकाशित करवाते हैं और फिर इन खबारो के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में आकर एसआईटी की जांच की मांग करते हैं। सेबी ने बताया कि विशेषज्ञों की कमेटी ने जो जांच की है उसमें भी अडानी समूह में आर्थिक गड़बडिय़ों को नहीं माना गया है। अलबत्ता यह बात सामने आई है कि आरोप लगाकर अडानी समूह के शेयरों में जो गिरावट हुई उसका फायदा उठाया गया। यानी एक गिरोह ने गिरावट के समय शेयर खरीदे और फिर भाव बढ़ने पर बेच दिए। इससे कुछ लोगों ने बड़ा मुनाफा कमाया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि इस मामले की भी जांच करवाई जाए। मालूम हो कि हिडनबर्ग के आरोपों के बाद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाए। राहुल गांधी का कहना रहा कि मोदी के संरक्षण के कारण ही अडानी समूह गलत काम कर रहा है। राहुल गांधी अपने भाषणों में भी अडानी और मोदी को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां करते रहे हैं, अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है, तब सवाल उठता है कि क्या अब भी राहुल गांधी अडानी समूह को लेकर पीएम मोदी पर आरोप लगाएंगे? मालूम हो कि राफेल के मामले में भी राहुल गांधी ने अमर्यादित टिप्पणी की थी, जिस पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-01-2024)
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