इसीलिए तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गांधी परिवार में कांग्रेस से अलग कर दिया है। लोकसभा चुनाव के बाद डोटासरा भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटेंगे।

राजस्थान विधानसभा के मौजूदा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की ओर से 16 फरवरी को हाईकोर्ट में जो जवाब दिया गया उसमें यह स्वीकार किया गया है कि कांग्रेस के गत शासन में कांग्रेस के जिन 81 विधायकों ने सामूहिक इस्तीफा तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंपा था, वह विधायकों की स्वेच्छा से नहीं था। इसलिए 90 दिन बाद विधायकों ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। यह बात अलग है कि इन 90 दिनों में विधानसभा अध्यक्ष की हैसियत से सीपी जोशी ने सामूहिक इस्तीफे पर कोई जांच पड़ताल नहीं की। मालूम हो 25 सितंबर 2022 को जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने राजस्थान के विधायकों की बैठक आयोजित की तब मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अशोक गहलोत ने खुली बगावत की। गहलोत के इशारे पर कांग्रेस के 81 विधायक शांति धारीवाल के सरकारी आवास पर एकत्रित हुए। धारीवाल ने कहा कि यदि गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया तो विधायक इस्तीफा दे देंगे। धारीवाल की इस घोषणा के बाद ही 81 विधायक विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचे और अपना इस्तीफा दे दिया। देवनानी के रहते हुए विधानसभा की ओर से भले ही अब हाईकोर्ट में जवाब दिया गया हो, लेकिन गांधी परिवार और तब की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को पता हो गया था कि गहलोत ने ही दबाव देकर विधायकों के इस्तीफे करवाए हैं। गहलोत ने गांधी परिवार के खिलाफ बगावत तब की जब गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा था। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इस बात का दुख रहा कि जिन अशोक गहलोत को सबसे भरोसेमंद मानते हुए अध्यक्ष बनाया जा रहा है। उन अशोक गहलोत ने ही बगावत कर दी है। चूंकि गहलोत दबाव की राजनीति कर रहे थे, इसलिए तब गांधी परिवार ने गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए रखा। लेकिन गत वर्ष दिसंबर में राजस्थान में कांग्रेस की हार  हो जाने के बाद गांधी परिवार ने गहलोत को कांग्रेस की मुख्यधारा से अलग कर दिया। गहलोत के विरोधी माने जाने वाले सचिन पायलट को तो कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया, लेकिन गहलोत को संगठन में कोई पद नहीं दिया। गहलोत को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दलों से तालमेल करने के लिए कांग्रेस समन्वय समिति का सदस्य नियुक्त किया। लेकिन यह समिति विपक्षी दलों से सीट शेयरिंग को लेकर कोई प्रभावी काम नहीं कर सकी, क्योंकि ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल आदि नेताओं ने अपने अपने प्रभाव वाले राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। यानी अब इस समिति का दिल्ली में कोई काम नहीं रहा। गहलोत के राजनीतिक जीवन में यह पहला अवसर है, जब विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस की मुख्यधारा से अलग हुए है। इससे पहले गहलोत को हार के बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाकर कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रखा गया। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस भले ही कभी भी चुनाव न जीती हो, लेकिन गांधी परिवार खासकर सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया। गहलोत तीन बार कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। इतना सब कुछ मिलने के बाद भी 25 सितंबर 2022 को गहलोत ने गांधी परिवार के खिलाफ खुली बगावत की। यही वजह है कि अग गहलोत का कांग्रेस में कोई महत्व नहीं है। 
डोटासरा भी हटेंगे:
सब जानते हैं कि गहलोत ने ही गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था। विधानसभा चुनाव की हार के बाद गांधी परिवार ने भले ही डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा हो, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद डोटासरा को भी अध्यक्ष पद से हटाने पर विचार हो रहा है। डोटासरा की जगह किसी युवा चेहरे को अवसर दिया जाएगा। गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी को राजस्थान की सभी 25 सीटों के परिणाम का आभास है। हालांकि इस बार कांग्रेस के उम्मीदवारों का चयन राष्ट्रीय स्तर से ही होगा। इसमें अशोक गहलोत की कोई भूमिका नहीं होगी। जानकार सूत्रों के अनुसार मौजूदा हालातों को देखते हुए गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी इस बार जोधपुर से अपनी दावेदारी नहीं जता रहे हैं। वैभव  गहलोत गत बार गजेंद्र सिंह शेखावत से तीन लाख मतों से पराजित हुए थे। तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री रहते हुए भी गहलोत अपने पुत्र को अपने गृह जिले से चुनाव नहीं जितवा सके। 

S.P.MITTAL BLOGGER (17-02-2024)
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