कैलाश चौधरी को राजनीति में विनम्रता केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव से सीखनी चाहिए। आखिर बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी क्या चाहते हैं?

राजस्थान के बाड़मेर जैसलमेर संसदीय क्षेत्र से केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी भाजपा के उम्मीदवार है। यहां कांग्रेस ने उम्मेदाराम विश्नोई को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन शिव विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी ने नामांकन दाखिल कर भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। नामांकन से पहले रविंद्र भाटी को मनाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने व्यक्तिगत तौर पर प्रयास किए। यहां तक कि रविंद्र भाटी को अपने साथ हवाई जहाज में भी घुमाया। मुख्यमंत्री से वार्ता के बाद रविंद्र भाटी ने नरम रुख अपनाया था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के व्यवहार की वजह से रविंद्र भाटी भाजपा से संतुष्ट नहीं है। कैलाश चौधरी के रूखे व्यवहार को लेकर पहले भी शिकायत रही है। खुद चौधरी ने एक वीडियो में स्वीकार किया कि पिछले पांच वर्षों में उनसे गलतियां हुई है, लेकिन इन गलतियों की सजा देवतुल्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं दी जानी चाहिए। चौधरी का यह कहना रहा कि इस बार मैं चुनाव हारता है तो इसका नुकसान नरेंद्र मोदी को होगा। कैलाश चौधरी अब भले ही पीएम मोदी का चेहरा आगे करे, लेकिन चौधरी को राजनीति में विनम्रता केंद्रीय मंत्री और अलवर से भाजपा के उम्मीदवार भूपेंद्र यादव से सीखनी चाहिए। कैलाश चौधरी तो लगातार दूसरी बार बाड़मेर से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भूपेंद्र यादव तो पहली बार अलवर से चुनाव लड़ रहे है। अलवर में 19 अप्रैल को ही मतदान होना है। चुनाव प्रचार की शुरुआत में यादव ने कांग्रेस के जिला प्रमुख बलवीर छिल्लर, पूर्व सांसद डॉ. करण सिंह यादव, पूर्व मंत्री राजेंद्र यादव, सहित कई पूर्व विधायकों और प्रभावशाली नेताओं को भाजपा में शामिल करवा दिया। यादव को पता था कि अलवर संसदीय क्षेत्र से जीत आसान नहीं है, क्योंकि हाल ही के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को 1 लाख 15 हजार 911 मत ज्यादा मिले। यह बात अलग है कि 2019 में यहां से बाबा बालक नाथ 3 लाख 29 हजार 971 मतों से जीते थे। यादव ने अब प्रचार में बढ़त हासिल कर ली है। यादव का प्रयास है कि अलवर के सभी 11 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं से सीधा संवाद किया जाए। यादव की विनम्रता से अलवर के मतदाता भी प्रभावित है। पूरे चुनाव में यादव ऐसा कोई बयान नहीं दे रहे है जिससे विवाद हो। विधायक बनने के बाद भले ही बाबा बालक नाथ को मंत्री न बनाया गया हो, लेकिन यादव ने अपनी विनम्रता से बाबा जी को संतुष्ट कर रखा है। कुछ लोग यादव को बाहरी प्रत्याशी बता रहे है, लेकिन कांग्रेस से भाजपा में आए नेता ही इस आरोप का जवाब दे रहे है। कहा जा सकता है कि अलवर में यादव को चुनौती देने वाला कोई बड़ा नेता नहीं है। कांग्रेस के नेता भी जुबान संभाल कर बोल रहे है। इसके विपरीत बाड़मेर में कैलाश चौधरी का व्यवहार भूपेंद्र यादव जैसा होता तो अब तक रविंद्र भाटी के अहम को संतुष्ट किया जा सकता था। 
आखिर चाहते क्या है?:
बाड़मेर-जैसलमेर की राजनीति में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि आखिर निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी क्या चाहते हैं? भाटी की मांग अभी तक भी सार्वजनिक नहीं हुई है। यह सही है कि विधानसभा के चुनाव में भाटी ने शिव से भाजपा का टिकट मांगा था, लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय उम्मीदवार बनकर विधायक चुन लिए गए। विधायक बनने के बाद भाटी के समर्थकों में कुछ ज्यादा ही जोश नजर आ रहा है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री से लंबी वार्ता के बाद भी रविंद्र भाटी संतुष्ट नहीं हुए है। भाटी के समर्थकों को लगता है कि जिस प्रकार विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को हराया, उसी प्रकार लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को हराया जा सकता है। जो समर्थक शिव से विधायक बनने का सपना देख रहे है वे चाहते हैं कि रविंद्र भाटी सांसद बन जाए। हालांकि भाजपा के बड़े नेता अभी भी भाटी से समझौते की उम्मीद में हे। बाड़मेर में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। नामांकन 8 अप्रैल तक वापस लिया जा सकता है। यदि भाटी की उम्मीदवार बनी रहती है तो चुनाव में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती होगी। 

S.P.MITTAL BLOGGER (05-04-2024)

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