आखिर डोटासरा के अध्यक्ष रहते, राजस्थान कांग्रेस में यह क्या हो रहा है? इतनी बुरी गत तो कभी नहीं हुई। आदिवासी मतदाता जालौर-सिरोही में वैभव गहलोत को हराने का काम करेंगे। तो अब राजनीतिक रगड़ाई का मतलब सचिन पायलट के भी समझ में आ गया है।
कांग्रेस के इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने किसी संसदीय क्षेत्र में किसी क्षेत्रीय दल से गठबंधन की घोषणा की हो, लेकिन नामांकन दाखिल करने वाले कांग्रेस उम्मीदवार ने नाम वापस न लिया हो। कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने 7 अप्रैल को एक बयान जारी कर कहा कि बांसवाड़ा-डूंगरपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस अब भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के उम्मीदवार राजकुमार रोत को अपना समर्थन देगी। इसी प्रकार इसी संसदीय क्षेत्र के बागीदौरा विधानसभा के उपचुनाव में भी इसी पार्टी को समर्थन दिया जाएगा। लेकिन इस बयान के बाद भी कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद डोमर तथा उपचुनाव के उम्मीदवार कपूर सिंह ने 8 अप्रैल को अंतिम समय तक अपना नाम वापस नहीं लिया। कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों को तलाशने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन दोनों उम्मीदवार तीन बजे बाद ही सामने जाए। अब इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का गठबंधन धरा रह गया है। बीएपी ने भी कांग्रेस को लात मार दी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत ने साफ कहा है कि अब हम स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ेंगे। यानी दोनों चुनावों में बीएपी कांग्रेस का जमकर मुकाबला करेगी। कांग्रेस की इतनी बुरी गत गोविंद सिंह डोटासरा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए हो रही है। डोटासरा भले ही चुनावी मंचों पर डांस कर लोगों को आकर्षित करे, लेकिन रणनीति बनाने में डोटासरा पूरी तरह विफल रहे है। यदि एक प्रदेश अध्यक्ष अपने उम्मीदवार से नाम वापस नहीं करवा सकता तो फिर अध्यक्ष पद पर रहने का क्या मतलब है। डोटासरा माने या नहीं, लेकिन आज कांग्रेस की जो जग हंसाई हो रही है उसके जिम्मेदार डोटासरा ही है। बीएपी और कांग्रेस का गठबंधन टूटने से भाजपा को फायदा होगा। यह सही है कि अरविंद डामोर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव नहीं लड़ते तो भाजपा के सामने मुसीबत खड़ी हो सकती थी। असल में भाजपा ने इस सीट पर बहुत पहले ही रणनीति बना ली। कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता और विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय को पहले ही भाजपा में शामिल कर लिया। इसे मालवीय की ही रणनीति कहा जाएगा कि ऐन वक्त पर कांग्रेस और बीएपी का गठबंधन टूट गया। इस आदिवासी बाहुल्य सीट पर भले ही बीएपी का दबदबा हो, लेकिन भाजपा उम्मीदवार मालवीय का भी खासा प्रभाव है। जानकारों की माने तो कांग्रेस के कई नेता अंदर ही अंदर मालवीय का समर्थन कर रहे है। कांग्रेस के जो नेता बीएपी से गठबंधन के खिलाफ है, वे भी मालवीय को समर्थन दे रहे है। यह सही है कि गत लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत मात्र 52 हजार मतों से हुई थी। हाल ही के विधानसभा चुनाव में 8 में से पांच सीट कांग्रेस और दो बीएपी को मिली है। गत लोकसभा चुनाव में बीएपी के उम्मीदवार ने ढाई लाख मत प्राप्त किए थे।
खामियाजा गहलोत को भुगतना पड़ेगा:
बांसवाड़ा डूंगरपुर संसदीय सीट पर बीएपी से गठबंधन टूटने का खामियाजा कांग्रेस को जालौर-सिरोही में उठाना पड़ेगा। यहां से पूर्व सीएम अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत कांग्रेस के उम्मीदवार है। बेटे को सांसद बनवाने के लिए गहलोत को अपनी पचास साल की राजनीतिक प्रतिष्ठा दाव पर लगा दी है। नामांकन वापसी के अंतिम दिन गहलोत ने बसपा उम्मीदवार का नाम वापस करवा लिया, लेकिन गहलोत को तब झटका लगा, जब बीएपी के उम्मीदवार भीमराज भाटी ने नाम वापस लेने से इंकार कर दिया। भाटी ने स्पष्ट कहा है कि वह वैभव गहलोत को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। जानकारों का मानना है कि जालौर सिरोही में भी बड़ी संख्या में आदिवासी मतदाता है। यदि आदिवासी मतदाता एकजुट होकर बीएपी उम्मीदवार भाटी को वोट देंगे तो फिर वैभव गहलोत की जीत की राह कठिन हो जाएगी। वैभव ने 2019 का चुनाव अपने पिता के गृह जिले जोधपुर से लड़ा था और तब वे 3 लाख 71 हजार मतों से हार गए। लेकिन इस बार अशोक गहलोत ने कांग्रेस के लिए सुरक्षित माने जाने वाली जालौर सिरोही से बेटे को उम्मीदवार बनाया है।
समझ आ गया रगड़ाई का मतलब:
8 अप्रैल को पूर्व डिप्टी सीएम और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने सीकर संसदीय क्षेत्र में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। पायलट ने गठबंधन के उम्मीदवार कामरेड अमराराम को जीताने की अपील करते हुए कहा कि राजनीति में अमराराम की बहुत रगड़ाई हो चुकी है। अब तो उन्हें सांसद बन जाना चाहिए। सीकर के लोगों को अमराराम की रगड़ाई के बारे में पता है। पायलट ने कहा कि यह बात मैं मजाक में नहीं बल्कि गंभीरता के साथ कह रहा हंू। मालूम हो कि अगस्त 2020 में पायलट ने जब अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की थी, तब गहलोत ने कहा था कि पायलट मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे है, लेकिन राजनीति में अभी उनकी रगड़ाई नहीं हुई है। पायलट को रगड़ाई के बगैर ही बहुत कुछ मिल गया। तब सचिन पायलट ने गहलोत से रगड़ाई का मतलब बताने को कहा था। लेकिन अब जब पायलट अमराराम के लिए रगड़ाई की बात कह रहे है तब जाहिर है कि पायलट को रगड़ाई का मतलब समझ आ गया है।
S.P.MITTAL BLOGGER (09-04-2024)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511