कांग्रेस ने राजस्थान में 25 में से तीन सीटें समझौते में दी। इससे कांग्रेस के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है । कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध नहीं किया-विजयन।
देश में राजस्थान उन प्रदेशों में माना जाता है, जिसमें कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। तीन माह पहले तक राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। मौजूदा समय में भी प्रदेश में कांग्रेस के 70 विधायक है, लेकिन फिर भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 25 में से 3 सीटें समझौते में दे दी है। ताजा फैसले के अनुसार बांसवाड़ा डूंगरपुर पर भी कांग्रेस ने भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के उम्मीदवार राजकुमार रोल को समर्थन देने की घोषणा की है। असल में भाजपा ने चुनाव से पहले ही इस संसदीय क्षेत्र की रणनीति बनाते हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता महेंद्र जीत सिंह मालवीय को शामिल कर लिया था। अब मालवीय ही भाजपा के उम्मीदवार है। भाजपा की इस रणनीति से कांग्रेस चारों खाने चित हो गई। लाख कोशिश के बाद भी कांग्रेस का कोई भी नेता मालवीय के सामने चुनाव लडऩे को तैयार नहीं हुआ। कांग्रेस ने अर्जुन बामनिया को उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन बामणिया ने अंतिम दिन चार अप्रैल को नामांकन ही नहीं किया, अब कांग्रेस ने बीएपी के उम्मीदवार को समर्थन देकर अपनी इज्जत बचाई है। इससे पहले सीकर और नागौर की सीट भी वाम दल और आरएलपी को दी गई। गत लोकसभा चुनाव में वाम दल के उम्मीदवार अमराराम चौधरी को मात्र 31 हजार 462 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस के सुभाष महरिया ने चार लाख 74 हजार 948 मत हासिल किए। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस ने सीकर से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई। कांग्रेस ने वाम दल के उम्मीदवार अमराराम चौधरी को ही समर्थन देने की घोषणा की। यानी कांग्रेस ने चुनाव शुरू होने से पहले ही सीकर में स्वयं को मैदान से बाहर कर लिया। इसी प्रकार नागौर की सीट भी कांग्रेस ने आरएलपी को दी है। अब आरएलपी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल ही उम्मीदवार हो गए है। कांग्रेस अब नागौर में बेनीवाल को जिताने का काम कर रही है, जबकि हाल ही के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने कांग्रेस को हराने का काम किया था। 25 में से तीन सीटें समझौते में देने से राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब राजस्थान जैसे मजबूत गढ़ में कांग्रेस की यह स्थिति है, तब अन्य राज्यों का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। कांग्रेस भले ही राजस्थान में वाम दलों से समझौता करे, लेकिन केरल में वाम दल और कांग्रेस आमने सामने है। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के समय कांग्रेस ने कोई प्रभावी विरोध नहीं किया। कांग्रेस संसद में चुप रही तो संसद के बाहर कोई आंदोलन नहीं किया। कांग्रेस वोटों के लिए अपने मूल्यों से समझौता करती है। विजयन ने यह बयान केरल में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए दिया है। मालूम हो कि कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेता राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ रहे है। केरल में राहुल गांधी सहित कांग्रेस के 20 अन्य उम्मीदवारों को मुसलमानों के वोट न मिले इसलिए मुख्यमंत्री विजयन अनुच्छेद 370 का मुद्दा उछाल रहे है। एक तरह से केरल में वाम दल मुसलमानों के मुद्दे पर कांग्रेस को एक्सपोज कर रहे हैं। इसे कांग्रेस का दिशाहीन रवैया ही माना जाएगा कि हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस अनुच्छेद 370 पर नरम रुख रखती है, तो वहीं केरल, पश्चिम बंगाल आदि मुस्लिम बाहुल्य राज्यों में कांग्रेस का रवैया अलग होता है। केरल में वाम दल कांग्रेस को हराने का काम कर रहे है, तो वहीं राजस्थान के सीकर में कांग्रेस वामदल उम्मीदवार का समर्थन कर रही है।
S.P.MITTAL BLOGGER (08-04-2024)
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