राजस्थान में मतदान कम होना बताता है कि भाजपा नेताओं की योजनाओं पर अमल नहीं हुआ। हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने की घोषणा का क्या हुआ? तो क्या 12 संसदीय क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता सिर्फ मोदी के भरोसे बैठे रहे।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को राजस्थान के 12 संसदीय क्षेत्रों में भी मतदान हुआ। उम्मीद थी कि 2019 के मुकाबले में मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा, लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 12 संसदीय क्षेत्रों में 57.87 प्रतिशत ही मतदान हुआ। जबकि पिछले चुनाव में 63.71 प्रतिशत रहा था। यानी गत बार के मुकाबले में छह प्रतिशत मतदान कम हुआ। राजस्थान में कांग्रेस मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने में शुरू से ही इच्छुक नहीं दिखी। लेकिन मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए भाजपा नेताओं ने अति उत्साह दिखाया। खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने दावा किया कि इस बार सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर पांच लाख मतों का रहेगा। यानी भाजपा के उम्मीदवार 5 लाख मतों से जीत दर्ज करेंगे। इसके लिए भाजपा ने प्रत्येक बूथ पर 370 वोट बढ़ाने की तैयारी की। चूंकि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया, इसलिए भाजपा ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य अपने कार्यकर्ताओं को दिया, लेकिन गत बार के मुकाबले इस बार 6 प्रतिशत मतदान कम होना बताता है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने बूथ स्तर पर मेहनत नहीं की। हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का काम भाजपा के कार्यकर्ता करते तो मतदान करीब 75 प्रतिशत होना चाहिए था। जाहिर है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने 2019 के मुकाबले में बहुत कम मेहनत की। जिन नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास बूथ की जिम्मेदारी थी, उन्हें अब यह बताना चाहिए कि आखिर 370 वोट क्यों नहीं बढ़ाए जा सके? ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के कार्यकर्ता अब स्वयं का बड़ा नेता समझने लगे हैं। अधिकांश नेताओं को यह मुगालता रहा कि मतदाता मोदी के नाम पर अपने आप वोट डालने आ जाएंगे। भाजपा के रणनीतिकार माने या नहीं, लेकिन कांग्रेस विचारधारा वाले वोटों का प्रतिशत अच्छा रहा है। यानी जिस मतदाता को कांग्रेस को वोट देना था, उसने अपने साधनों से बूथ पर पहुंच कर वोट दिया। जबकि भाजपा की विचारधारा वाले वोट को भाजपा के कार्यकर्ता घरों से निकलने में ज्यादा सफल नहीं हुए। भाजपा स्वयं को कैडर बेस पार्टी का दावा तो करती है, लेकिन चुनाव में संबंधित उम्मीदवार ही अपने तरीके से बूथ पर एजेंटों को बैठाने का काम करता है। अलवर और बीकानेर में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अर्जुनराम मेघवाल भाजपा के उम्मीदवार है, लेकिन अलवर में भी 59.79 प्रतिशत मतदान हुआ जो 2019 के मुकाबले में 7 प्रतिशत कम है। इसी प्रकार बीकानेर में 53.96 प्रतिशत मतदान हुआ जो गत बार के मुकाबले में 5.28 प्रतिशत कम है। जबकि इन दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजस्थान में भाजपा लगातार तीसरी बार सभी सीटें जीतती है या नहीं यह तो चार जून को नतीजे आने पर ही पता चलेगा, लेकिन कम मतदान भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। राजस्थान में शेष 13 संसदीय क्षेत्रों में द्वितीय चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा के कार्यकर्ता 19 अप्रैल को हुए कमत मतदान से सबक लेंगे। यदि भाजपा कम मतदान को अपने पक्ष में मानती है तो फिर हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने और हर सीट पर पांच लाख मतों के अंतर से जीत के दावे क्यों किए जाते हैं?
10 सीटों पर बदले उम्मीदवार:
19 अप्रैल को जिन 12 संसदीय क्षेत्रों में मतदान हुआ उनमें से 10 में भाजपा ने उम्मीदवार बदले हैं। बीकानेर और सीकर को छोड़कर भाजपा ने मौजूदा सांसदों का टिकट काटकर नए चेहरों को उम्मीदवार बनाया। जानकारों का कहना है कि नए चेहरे भी मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में सफल नहीं हुए। भाजा के लिए यह भी चुनौती थी कि 12 में से 7 संसदीय क्षेत्रों में गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले। भाजपा ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य विधानसभा चुनाव में पार्टी की कमजोर स्थिति को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य रखा था। जिन संसदीय क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति कमजोर रही, उनमें श्रीगंगानगर, सीकर, जयपुर ग्रामीण, अलवर, करौली धौलपुर, नागौर और झुंझुनू है।
क्यों नहीं दिखा उत्साह:
सवाल उठता है कि हर बूथ पर 370 वोटों को बढ़ाने का जो लक्ष्य रखा गया, उसको लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह क्यों नहीं दिखा। असल में उम्मीदवारों के चयन में भी कई संसदीय क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा गया। राजसमंद से मेवाड़ राजघराने की महिमा कुमारी और जयपुर ग्रामीण से राव राजेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाए जाने से कार्यकर्ताओं में नाराजगी रही। ये दोनों ही उम्मीदवार राज घरानों से संबंधित है। जबकि यहां किसी कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाया जाता तो ज्यादा उत्साह देखने को मिलता। यह सही है कि राजस्थान में भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व नए प्रयोग कर रहा है। इन प्रयोगों के तहत ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रही है। लेकिन भाजपा संसदीय दल के नेता रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ और प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश पूनिया का भी अपेक्षित सम्मान नहीं किया जा रहा है। यह सही है कि संगठन में नए लोगों को अवसर मिलना चाहिए, लेकिन पुराने नेताओं की लगातार उपेक्षा कई बार हानिकारक हो सकती है। फिर भी मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने दावा किया है कि प्रदेश की सभी 25 सीटें भाजपा जीतेगी। उन्होंने कहा कि कम मतदान से भाजपा की जीत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सीएम शर्मा का मानना है कि जिन लोगों को भाजपा को वोट देना था, वे अपने घरों से निकले हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं ने पूरी मेहनत की है।
S.P.MITTAL BLOGGER (20-04-2024)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9929383123To Contact- 9829071511