सरदार पटेल जब मुंबई के अस्पताल में भर्ती थे, तभी पीएम नेहरू ने गृह मंत्रालय का प्रभार छीन लिया था। नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाते तो बगावत हो जाती। सरदार पटेल को नीचा दिखाने में नेहरू ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। अब पटेल को नेहरू का परम मित्र बताने से पहले कांग्रेस को अपनी काली करतूते देख लेनी चाहिए।
अहमदाबाद में हो रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रथम दिन 8 अप्रैल को सोनिया गांधी, राहुल गांधी मल्लिकार्जुन खडग़े आदि बड़े नेताओं ने भारत के उपप्रधानमंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और पटेल को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का परम मित्र बताया। कांग्रेस के नेताओं का कहना रहा कि इस मित्रता के कारण ही नेहरू जी अनेक बार सरदार पटेल के निवास पर भी गए। कांग्रेस का कहना रहा कि आज भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही पटेल की विरासत पर हक जता रहे हो, लेकिन पटेल ने अपने जीवनकाल में नेहरू जी को पूरा मान सम्मान दिया। नेहरू जी और सरदार पटेल के बीच मतभेद को लेकर देश को बेवजह गुमराह किया जा रहा है। कांग्रेस आज सरदार पटेल के प्रति हमदर्दी जताई, लेकिन इतिहास गवाह है कि नेहरू ने पटेल को नीचा दिखाने की कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर 1950 को मुंबई के अस्पताल में हुआ। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि नेहरू ने 10 दिसंबर को एक पत्र लिखकर पटेल से गृह मंत्रालय का प्रभार छीन लिया। पटेल के तत्कालीन सचिव वी शंकर (आईसीएस) ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यदि यह पत्र में सरदार पटेल को दिखाता तो उन्हें बहुत पीड़ा होती, इसलिए मैंने इस पत्र की जानकारी पटेल को नहीं दी। वी शंकर ने अपनी पुस्तक में इस बात पर भी अफसोस जताया कि मृत्यु के अगले ही दिन नेहरू ने पटेल के परिवार से सरकारी कार भी छीन ली। नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल के एम मुंशी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पटेल के अंतिम संस्कार में मंत्रियों को भाग लेने से रोका गया। यहां तक कि तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से भी कहा गया कि वह पटेल के अंतिम संस्कार में भाग न ले। नेहरू नहीं चाहते थे कि मृत्यु के बाद पटेल को सम्मान मिले। कांग्रेस आज भले ही पटेल और नेहरू के बीच मित्रता का दावा करे, लेकिन वीपी मेनन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि हैदराबाद की रियासत को मिलाने के लिए नेहरू हमले के पक्ष में नहीं थे। जबकि पटेल का कहना रहा कि यदि हैदराबाद पर हमला नहीं किया गया तो पाकिस्तान में चला जाएगा। इस बैठक में नेहरू और पटेल के बीच इतना विवाद हुआ कि पटेल बैठक को छोड़ कर चले गए। हालांकि बाद में पटेल की नीति के अनुरूप चलते हुए हैदराबाद को भारत में शामिल किया गया। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना आजाद ने अपनी पुस्तक आजादी की कहानी में लिखा है कि मेरे बाद यदि सरदार पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष होते तो देश को ज्यादा फायदा होता। नेहरू की नीतियों ने देश को बर्बाद कर दिया। मौलाना आजाद ने यह बात तब लिखी जब उन्हें नेहरू का मित्र माना जाता है। आजादी के आंदोलन में सक्रिय पत्रकार दुर्गादास ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यदि नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाया जाता तो कांग्रेस में बगावत हो जाती इस सच्चाई को महात्मा गांधी भी समझते थे, इसलिए न चाहते हुए भी गांधी जी, नेहरू को समर्थन देते रहे। गांधी जी का कहना रहा कि नेहरू कांग्रेस में कभी भी दूसरे नंबर पर लाया गया तो बगावत हो जाएगी, जिसका फायदा अंग्रेज शासक उठा लेंगे। कांग्रेस में बगावत होने का मतलब आजादी को रोकना था। आचार्य कृपलानी को भी इस बात का अफसोस रहा कि मई 1946 को कांग्रेस की बैठक में उन्होंने सरदार के बजाए नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाया। उस समय यह तय था कि जो भी नेता कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा वहीं देश का प्रधानमंत्री होगा। उस समय देश में 15 प्रदेश कांग्रेस कमेटियां थी। 12 प्रदेश कमेटियों ने सरदार पटेल को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया। नेहरू के समर्थन में एक भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी नहीं थी। एक दो कमेटियों ने आचार्य कृपलानी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया, लेकिन तब महात्मा गांधी चाहते थे कि नेहरू को ही कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाए। गांधी जी ने इसकी जिम्मेदारी मुझे दी और मैंने बैठक में नेहरू जी के नाम का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही मैंने सरदार पटेल का वह पत्र भी बैठक में रखा जिसमें अध्यक्ष पद से नाम वापस लेने की बात लिखी गई थी। आचार्य कृपलानी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि तब नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का मुझे अफसोस है।
कभी सम्मान नहीं:
देश में नेहरू और उनके परिवार के सदस्यों ने 55 वर्षों तक शासन किया, लेकिन सरदार पटेल को कभी भी सम्मान नहीं दिया गया। यदि नेहरू गांधी के परिवारों में पटेल के प्रति सम्मान होता तो पटेल की भूमिका को प्रमुखता के साथ प्रदर्शित किया जाता। इतिहास गवाह है कि विभाजन के समय पांच सौ रियासतों को भारत में मिलाने में सरदार पटेल की मुख्य भूमिका रही। तब नेहरू को सिर्फ जम्मू कश्मीर रियासत को मिलाने का दायित्व सौंपा गया था। नेहरू ने तब शेख अब्दुल्ला के सामने समर्पण करते हुए 370 जैसे प्रावधानों को माना। वहीं पटेल ने किसी भी रियासत की शर्त को स्वीकार नहीं किया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही सरदार पटेल की भूमिका को प्रमुखता के साथ प्रदर्शित किया गया। गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा को लगाकर भी सम्मान दिया गया।
S.P.MITTAL BLOGGER (09-04-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511